Puraanic contexts of words like Kuuta, Kuupa/well, Kuurma/tortoise etc. are given here.

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कूट गणेश २.१५.७ ( महोत्कट गणेश द्वारा पाषाण रूप कूट दैत्य के वध का उल्लेख ), २.९१.२ ( गणेश द्वारा कूट दैत्य का वध ), गर्ग ५.१२.११( ब्राह्मणोचित कर्म का परित्याग कर क्षत्रियोचित कर्म मल्ल विद्या में संलग्न होने से उतथ्य मुनि का स्व - पुत्रों को पृथ्वी पर मल्ल रूप में उत्पन्न होने का शाप, शापवश उतथ्य - पुत्रों का मथुरापुरी में चाणूर , मुष्टिक , कूट, शल्ल तथा तोशल नाम से उत्पन्न होना, कृष्ण के स्पर्श मात्र से मोक्ष प्राप्ति ), ब्रह्माण्ड २.३.१३.५८( महाकूट : श्राद्ध हेतु प्रशस्त स्थानों में से एक ), भागवत १०.४२.३७, १०.४४.२६ ( कंस के प्रधान मल्लों में से एक कूट मल्ल के बलराम द्वारा मारे जाने का उल्लेख ), वायु १.३९.५३( पञ्चकूट पर्वत पर दानवों के वास का उल्लेख  ), ७७.५७/२.१५.५६( महाकूट : श्राद्ध हेतु प्रशस्त स्थानों में से एक ), स्कन्द ३.२.२०.११( पार्वती के अनुरोध पर शिव द्वारा कूट मन्त्रों के बीजों का कथन; पांच कूटों की उत्पत्ति), ५.३.१५५.८९( मानकूट, तुलाकूट , कूट आदि कथन से अन्धतामिस्र नामक नरक प्राप्ति का उल्लेख ); द्र. अन्नकूट, कालकूट, गोविन्दकूट, चित्रकूट, तुङ्गकूट, त्रिकूट, देवकूट, मणिकूट, रत्नकूट, विकूट, हेमकूट । koota/ kuuta/ kuta

 

कूटयुद्ध ब्रह्माण्ड ३.४.२२.७४ (भण्ड - सेनापति कुरण्ड के कूट युद्ध में निपुण होने का उल्लेख ), ३.४.२५.४६ ( भण्ड - सेनानियों का कूट युद्ध द्वारा महेश्वरी को जीतने हेतु प्रस्थान ) ।

 

कूटशाल्मलि मत्स्य ९६.१०( सर्वफलत्याग व्रत के विधान में कूटशाल्मलि प्रभृति १६ फलों को ताम्र से निर्मित कराने का निर्देश ) ।

 

कूतनाकूतना ब्रह्माण्ड १.२.२४.२७ ( सहस्ररश्मि सूर्य की ४०० वृष्टिकारक रश्मियों के चित्रमूर्ति, चन्दन , साध्य, कूतनाकूतना तथा अमृत नामों का उल्लेख ) ।

 

कूति ब्रह्माण्ड २.३.३.६, २.३.४.२ (ब्रह्मा के मुख से उत्पन्न दर्श, पौर्णमास आदि १२ जयादेवों में से एक ), वायु ६६.६ ( ब्रह्मा के मुख से उत्पन्न तथा मन्त्रमय शरीर से युक्त दर्श, पौर्णमास आदि १२ जयादेवों में से एक ) ।

 

कूप अग्नि ६४ ( कूप, वापी, तडाग आदि की प्रतिष्ठा विधि का वर्णन ), २२७.३४(यस्तु रज्जुं घटं कूपाद्धरेच्छिन्द्याच्च तां प्रपां ।। स दण्डं प्राप्नुयान्‌मासं दण्ड्यः स्यात् प्राणिताड़ने ।),  गणेश २.१९.१ ( कूप व कन्दर दैत्यों द्वारा क्रमश: मण्डूक व बालक बनकर महोत्कट गणेश के वध का यत्न, परस्पर युद्ध से मृत्यु - विचारं चक्रतुर्मार्गे कूपोऽहं कूपतामियाम् ।।...मंडूकरूपः कूपस्थो भक्षयिष्यामि तत्क्षणात् ।।), नारद २.६५.८७(किंदुशू कूप का संक्षिप्त माहात्म्य -किंदुशूकूपमासाद्य तिलप्रस्थं प्रदाप्य च ।। गच्छेद्धि परमां सिद्धिं मृतो मुक्तिमवाप्नुयात् ।।), पद्म ३.१६.७३ ( कूप तीर्थ में स्नान तथा अर्चन से वाजपेय फल की प्राप्ति का उल्लेख ), ६.३८.२४( कूप के स्नान के आपेक्षिक रूप से अधम होने का कथन - अधमं कूपके स्नानं वाप्यां स्नानं च मध्यमम् ।तडागे चोत्तमं स्नानं नद्यां स्नानं ततः परम् । ), ६.१३४.२ ( वृत्र - निर्मित कूप से वेत्रवती नदी की उत्पत्ति का उल्लेख ), ब्रह्मवैवर्त्त २.८.१४(लोम की कूप से उपमा - कालेन महता तस्माद्बभूव वसुधा मुने ।।प्रत्येकं प्रतिलोम्नां च स्थिता कूपेषु सा स्थिरा ।।), २.३१.२२ ( शूद्र - भोग्या ब्राह्मणी द्वारा अन्धकूप नरक प्राप्ति का उल्लेख ), ४.९३.७६ ( सौ कूपों से वापी के श्रेष्ठ होने का उल्लेख ), ब्रह्माण्ड २.३.१३.३७ ( पाण्डुकूप नामक तीर्थ में श्राद्ध करने से अनन्त फल की प्राप्ति का उल्लेख ), २.३.१३.४१ ( वृष नामक कूप पर श्राद्ध करने से श्राद्ध के अक्षय फलदायी होने का कथन - देविकायां वृषो नाम कूपः सिद्धनिषेवितः ।समुत्पतन्ति तस्यापो गवां शब्देन नित्यशः ॥), भविष्य २.१.११.२ ( कूप प्रतिष्ठा का वृक्षयाग आदि में मेल का निषेध आदि -दृष्टिमात्रांतरे सेतौ कूपयागे समुत्सृजेत् ।। न कूपमुत्सृजेज्जातु वृक्षयागे कथंचन ।। ), भागवत ७.९.२८ ( संसार रूपी कूप में काल रूपी सर्प के दंशन हेतु तैयार रहने का उल्लेख - एवं जनं निपतितं प्रभवाहिकूपे।कामाभिकाममनु यः प्रपतन्प्रसङ्गात्। ), मत्स्य ५८.१, ५१ ( कूप प्रतिष्ठा विधान का वर्णन -कूपवापीषु सर्वासु तथा पुष्करिणीषु च। एष एव विधिर्दृष्टः प्रतिष्ठासु तथैव च।। ), २२७.९९(यस्तु रज्जुं घटं कूपाद्धरेद्भिन्द्याच्च तां प्रपाम्।स दण्डं प्राप्नुयान्माषं तच्च सम्प्रतिपादयेत् ।। ), महाभारत स्त्री ५.१३(कूपमध्य में महानाग के दर्शन का उल्लेख - वनमध्ये च तत्राभूदुदपानः समावृतः। वल्लीभिस्तृणनद्धाभिर्गूढाभिरभिसंवृतः।।) , ६.७( संसार रूपी वन के रूपक में देहधारियों के शरीर का ही कूप रूप में उल्लेख - स यस्तु कूपो नृपते स तु देहः शरीरिणाम्। यस्तत्र वसतेऽधस्तान्महाहिः काल एव सः।), वामन ९०.४८ ( कोशकार मुनि द्वारा स्वपुत्र निशाकर की जडता से क्रुद्ध होकर पुत्र को जलरहित कूप में फेंकना, माता द्वारा दस वर्ष उपरान्त कूप से पुत्र की प्राप्ति, पुत्र द्वारा मातापिता को अपनी जडता , मूकता आदि के हेतु का वर्णन ), वराह १६५.२९ ( मथुरा स्थित चतु:सामुद्रिक नामक कूप में पिण्डदान से प्रेत की मुक्ति की कथा ), शिव ४.२४.१५( गौतम द्वारा प्राणियों के उपकार हेतु जल प्राप्ति के लिए वरुण से प्रार्थना, वरुण के निर्देशानुसार हस्त प्रमाण गर्त /कूप के निर्माण पर जल प्राप्ति , अन्य मुनियों द्वारा आश्रम से गौतम के निष्कासन का वर्णन ), स्कन्द १.२.४.७८ (उत्तम कोटि के दानों में कूपदान का उल्लेख ), १.२.३६.१९ ( पातालगत प्रलम्ब नामक दानव के वध हेतु स्कन्द द्वारा शक्ति मोचन, शक्ति गमन से भू विवर का निर्माण, पातालगङ्गा के जल से भू विवर का आपूरित होना, स्कन्द द्वारा जलपूर्ण भू विवर को सिद्धकूप नाम से अभिहित करना, सिद्ध कूप में स्नान से समस्त पापों से मुक्ति का कथन ), १.२.३५.१२ ( स्तम्भेश्वर लिङ्ग के पश्चिम में गुह -निर्मित कूप में स्नान का संक्षिप्त माहात्म्य -तस्यैव पश्चिमे भागे शक्त्यग्रेण महात्मना॥ गुहेन निर्मितः कूपो गंगा तत्र तलोद्भवा॥ ), १.२.३९.१०० ( बर्करेश लिङ्ग की ईशा - दिशा में स्वस्तिक कूप के बनने के कारण का कथन - स्वस्तिकोनाम नागेंद्रः कुमारीं द्रष्टुमागतः॥ शिरसा गच्छता तेन यत्रोत्क्षिप्ता च भूरभूत्॥ ), १.२.४७.३०( कोलम्बा देवी की कूप प्रियता का कथन ), १.२.५६.१४ ( मोक्षेश्वर कूप में स्नान से प्रेतबाधा से मुक्ति का उल्लेख - कमण्डलोर्ब्रह्मणश्च समानीता सरस्वती ।।कूपेऽस्मिन्मोक्षनाथस्य लोकानां प्रेतमुक्तये ।।), १.२.५६.१७ ( जयादित्य कूप में स्नान से गर्भवास से मुक्ति का उल्लेख ), २.७.३. ( ७ सन्तानों में कूप का उल्लेख - कूपस्तडागमुद्यानं मण्डपं च प्रपा तथा ।। सद्धर्मकरणं पुत्रः संतानं सप्तधोच्यते ।।), २.७.२२.५६ ( पितृलोक का भ्रमण करते हुए धर्मवर्ण द्वारा अन्धकूप में पतित पितरों के दर्शन, पितरों द्वारा धर्मवर्ण से उद्धार हेतु प्रार्थना ), २.८.९.९ ( गया कूप - गयाकूपे विशेषेण पितॄणां दत्तमक्षयम् ।। ), ३.१.४९.४४(बाल्य यौवन वृद्ध आदि की अन्धकूप रूप में कल्पना - बाल्ययौवनवार्धक्यमहाभीमांधकूपके ।।), ४.२.६६.२ ( सौभाग्योदक कूप में स्नान कर अप्सरेश्वर लिङ्ग के दर्शन से सौभाग्य प्राप्ति का उल्लेख ), ४.२.८१.२७ ( धर्म तीर्थ के अन्तर्गत धर्म कूप में स्नान से इन्द्र की ब्रह्महत्या से मुक्ति की कथा - नर्मदायां सरस्वत्यां गौतम्यां सिंहगे गुरौ ।।स्नात्वा यत्फलमाप्येत धर्मकूपे तदाप्नुयात्।।), ४.२.९७.९२ ( श्राद्धपिंडों को पितृकूप में फेंकने से रुद्रलोक की प्राप्ति का उल्लेख - तदग्रे पितृकूपोस्ति पितॄणामालयः परः ।।तत्र श्राद्धं नरः कृत्वा पिंडान्कूपे परिक्षिपेत् ।। ), ४.२.९७.१२५ ( कालोद कूप के जलपान से जन्म - बन्धन आदि के भय से मुक्ति का उल्लेख ), ४.२.९७.१४१ ( भैरवेश तथा व्यासेश कूप का संक्षिप्त माहात्म्य ), ४.२.९७.१४७ (समस्त जडता के विनाशक के रूप में गौरीकूप का उल्लेख ), ४.२.९७.१६३ ( सिद्ध कूप पर सिद्धों के निवास का उल्लेख- तद्दक्षिणे सिद्धकूपः सिद्धाः संति सहस्रशः।।वायुरूपास्तु ये सिद्धा ये सिद्धा भानुरश्मिगाः ।। ), ४.२.९७.१६८ ( चतु:समुद्र कूप में स्नान से सागर स्नान के पुण्य की प्राप्ति का उल्लेख - चतुःसमुद्रकूपोस्ति तत्राब्धिस्नान पुण्यदः ।।ज्येष्ठा देवी तु तत्रास्ति नता ज्येष्ठपदप्रदा ।। ), ४.२.९७.१९१ ( पञ्चनदेश्वर लिङ्ग के पश्चिम भाग में मंगलोद कूप की स्थिति का उल्लेख -मंगलोदो महाकूपो मंगला पश्चिमे शुभः ।।), ५.३.४४.१८ ( धर्मारण्य में कूप की शूलभेद से तुलना-धर्मारण्ये यथा कूपं शूलभेदं च तत्समम् । ), ७.१.१४८( कुण्डल कूप के माहात्म्य का वर्णन- श्रावणे मासि संप्राप्ते तस्मिन्कूपे विधानतः ॥ यः स्नानं कुरुते देवि श्राद्धं तत्र विशेषतः ॥ ), ७.१.२३२ ( पाण्डव कूप के माहात्म्य का वर्णन ), ७.१.२५७ ( त्रित कूप के माहात्म्य का वर्णन - अथ देवैः समादिष्टा तस्मिन्कूपे सरस्वती ॥ निर्गत्य वसुधां भित्त्वा पूरयामास वारिणा ॥ ), ७.१.२५८ ( शशापान कूप के माहात्म्य का वर्णन -यस्माच्छशेन संयुक्तं पीतमेतज्जलाशयम् ॥चंद्रेण हि शशापानं तस्मादेतद्भविष्यति ॥ ), ७.१.३३९ ( हुंकार कूप के माहात्म्य का वर्णन - हुंकारं कुरुते तत्र भूयोभूयश्च भामिनि ॥ अथ हुंकारशब्देन तस्य गर्तः प्रपूरितः ॥ ), योगवासिष्ठ ६.२.६.५८ ( इन्द्रियों की कूप से उपमा - घनमोहप्रबन्धीनि दुष्कूपगहनानि च ।महावकरतुच्छानि कुपुराणीन्द्रियाणि च ।।), लक्ष्मीनारायण १.५५०.२ ( तुण्डी ऋषि द्वारा निर्मित मुक्तिदायक कूप का कथन- जलं हूंकारमात्रेण पूरितं कूपगं तदा ।तटोपरितो वहति चमत्कारकरं यतः ।।),.७०.१७ ( कौशिक - पुत्र जाड्यमघ के कूप में पतन व रक्षण का उल्लेख - भक्षयित्वाऽऽमलकानि कूपे गत्वा जलं शुभम् ।पिबत्येव सदा वृक्षमूलेनाऽऽयाति याति च ।।),  कथासरित् १.४.१२० ( जीवित ब्राह्मण को जलवा देने के आरोप में योगनन्द द्वारा मन्त्री शकटाल को पुत्रों सहित अन्धकूप में फिंकवा देने का उल्लेख ), १०.१.१०१ ( ईश्वरवर्मा नामक वैश्यपुत्र की वंचना हेतु मकरकरी नामक वेश्या द्वारा गुप्त कूप में जाल बंधवाने आदि की कथा ), १०.४.१०२ ( शश द्वारा सिंह को द्वितीय सिंह दिखलाने के लिए कूप पर ले जाने की कथा ), १८.२.३६ ( कितवों द्वारा डाकिनेय नामक कितव को अन्धकूप में फेंकने का प्रसंग ) ; द्र. गयाकूप, शशपानकूप, हिंकारकूप, सप्तसामुद्रकूप । koopa/kuupa/kupa

 

कूपक ब्रह्माण्ड ३.४.२१.८२ ( भण्ड के सेनानी पुत्रों में से एक ) ।

 

कूपकर्ण भागवत १०.६३.८ ( शोणितपुर में बाणासुर के योद्धा कूपकर्ण के साथ बलराम के युद्ध का उल्लेख ) ।

 

कूपलोचन ब्रह्माण्ड ३.४.२१.८२ ( भण्ड के पुत्रों में से एक ) ।

 

कूप्यवाल लक्ष्मीनारायण २.२७०.८८ ( कूप्यवाल नामक काष्ठहारक की सनत्कुमार द्वारा हस्ति से रक्षा, काष्ठहारक द्वारा सनत्कुमार तीर्थ के निर्माण का वर्णन ) ।

 

कूपेश लक्ष्मीनारायण २.२१४.१०२ ( रायकूपेश : हवाना नगरी के राजा रायकूपेश द्वारा श्रीहरि का सत्कार ) ।

 

कूबर शिव २.५.८.१० ( शिव रथ में उदय व अस्त अद्रियों के कूबर बनने का उल्लेख ),  लक्ष्मीनारायण २.२४५.४९ ( जीवरथ में धर्म व वैराग्य को कूबर बनाने का निर्देश ) ; द्र. नलकूबर ।


 कू्र्च  पद्म ६.३.४९ ( जलंधर द्वारा ब्रह्मा की कूर्च ग्रहण करने पर जलंधर नाम धारण), ६.९.३६(सुदर्शन चक्र की अर्चियों से ब्रह्मा के कूर्च के दग्ध होने का उल्लेख), ६.९६.२७(जलंधर द्वारा ब्रह्मा का कूर्च ग्रहण करने पर ब्रह्मा के नेत्रों से अश्रु प्रकट होना), विष्णुधर्मोत्तर ३.३४१.६६(उशीरकूर्च दान से पापमोचन व चामरज कूर्च से श्री प्राप्ति का उल्लेख), नृसिंह उशीरकूर्चकं दत्त्वा सर्वपापैः प्रमुच्यते । दत्त्वा गोबालजं कूर्चं सर्व्वान् तापान् व्यपोहति । दत्त्वा चामरकं कूर्चं श्रियमाप्नोत्यनुत्तमाम्

कूर्च उपरि संदर्भाः



कूर्दिनी ब्रह्माण्ड ३.४.४४.६८ ( ३६ वर्ण शक्ति देवियों में से एक ) ।

 

कूर्म अग्नि ( समुद्र - मन्थन में मन्दराचल को आधार प्रदान करने हेतु श्री हरि द्वारा कूर्म रूप धारण ), ८७.५( शान्ति कला/तुर्यावस्था के २ प्राणों में से एक, अलम्बुषा नाडी में स्थित कूर्म वायु की प्रकृति का कथन ), २१४.१३( कूर्म वायु के  उन्मीलन का हेतु होने का उल्लेख ), कूर्म २.४५.२३( प्रलयाग्नि से वृक्षादि के नष्ट हो जाने पर भूमि के कूर्मपृष्ठ सदृश प्रतीत होने का उल्लेख ),२.४६.५४ (ऋषियों द्वारा कूर्म रूप परमात्मा की स्तुति ), गरुड १.८७.१७ ( तामस मन्वन्तर में कूर्म रूप श्रीहरि द्वारा भीमरथ नामक असुर के वध का उल्लेख ), ३.२४.८९(वायु कूर्म द्वय तथा शेष कूर्म द्वय का उल्लेख)नारद १.६६.११२( कूर्मेश की शक्ति कमठी का उल्लेख ), १.५६.७३९ ( पूर्वाभिमुख कूर्म के नाभि, मुख, बाहु, पाद आदि ९ मण्डलों में देशों का विन्यास ), पद्म ४.९.२ ( समुद्र - मन्थन प्रसंग में श्रीहरि द्वारा कूर्म रूप से मन्दराचल को धारण करने का उल्लेख ), ६.१२०.६३( कूर्म से सम्बन्धित शालग्राम शिला के लक्षणों का कथन ), ६.२३२.२ ( वही), ब्रह्मवैवर्त्त २.३०.१०९ ( नरक - भोग वर्णन के अन्तर्गत कूर्ममांस के भक्षक ब्राह्मण का कूर्मकुण्ड में वास, कूर्मों द्वारा भक्षण तथा कूर्म योनि प्राप्ति ), भविष्य ३.४.२५.८७ ( रैवत मन्वन्तर में कर्क राशि में स्थित होने पर पुराणपुरुष की कूर्म रूप से उत्पत्ति का उल्लेख ), ३.४.२५.१३६ ( कूर्म कल्प में महामत्स्य से कूर्म की, कूर्म से विष्णु की, विष्णु से ब्रह्मा की तथा ब्रह्मा से विराट् की उत्पत्ति का उल्लेख ), ४.८३.११८ ( वंश भरण हेतु ईश्वर के कूर्म रूप की पूजा का निर्देश ), भागवत ५.१८.२९ ( हिरण्मय वर्ष में भगवान के कूर्म रूप धारण करने का उल्लेख, अर्यमा आदि द्वारा कूर्म की स्तुति ), ६.८.१७( नारायण कवच में कूर्म भगवान से सभी निरयों से रक्षा करने की प्रार्थना ), ११.४.१८ ( कूर्मावतार में भगवान द्वारा अमृत मन्थन हेतु स्वपृष्ठ पर मन्दराचल धारण करने का उल्लेख ), मत्स्य १७.३३ ( श्राद्ध के लिए प्रशस्त कूर्म मांस से पितरों की ११ मास तक तृप्ति होने का उल्लेख ), ५३.४५ ( कूर्मकल्प के वृत्तान्त का आश्रय लेकर वामनपुराण की रचना का उल्लेख, अयन काल में कूर्म पुराण तथा कूर्म दान के महत्त्व का कथन ), ५८.१८( तडाग आदि निर्माण में सुवर्ण - निर्मित कूर्म आदि दान का निर्देश ), २४९.१६, २८ ( अमृतमन्थन हेतु देवों द्वारा पाताल स्थित कूर्म रूप भगवान् विष्णु से प्रार्थना, कूर्म भगवान् द्वारा मन्दर धारण की स्वीकृति ), २६६.५ ( कूर्मशिला : मूर्ति स्थापना हेतु मूर्ति के नीचे कूर्मशिला की स्थापना का निर्देश ), २९०.६( १५वें पौर्णमासी कल्प के कौर्म नाम का उल्लेख ), महाभारत आदि ६५.४१( कूर्म, कुलिक आदि नागों के कद्रू- पुत्र होने का उल्लेख ), शान्ति ३०१.६५ ( संसार रूपी घोर सागर में तमोगुण रूपी कूर्मों तथा रजोगुण रूपी मीनों की स्थिति का उल्लेख - तमःकूर्मं रजोमीनं प्रज्ञया संतरन्त्युत), ३१२.६( प्रलय काल में भूमि के कूर्म पृष्ठ रूप हो जाने का उल्लेख ), मार्कण्डेय १५.१८ ( कृतघ्न द्वारा मत्स्य, वायस, कूर्म प्रभृति योनियों की प्राप्ति का उल्लेख ), ५८/५५( भारतवर्ष को आक्रान्त करके पूर्वाभिमुख स्थित कूर्म रूपी जनार्दन के सन्निवेश का वर्णन, कूर्म के अङ्गों में नक्षत्रों व देशों का विन्यास ), वराह ४० ( पौषमास की शुक्ल द्वादशी में करणीय कूर्म द्वादशी व्रत का वर्णन ), वामन ९०.२ ( सन्निधान तीर्थ/कौशिकी? में विष्णु का कूर्म नाम से निवास - कौर्ममन्यत्सन्निधानं कोशिक्यां पापनाशनम्। ), ९०.३६ ( सुतल तीर्थ में विष्णु का कूर्म अचल नाम से वास ), विष्णु १.४.८ ( विष्णु भगवान द्वारा मत्स्य, कूर्म आदि अवतारों को ग्रहण करने का उल्लेख ), विष्णुधर्मोत्तर १.१७९.८ ( चतुर्थ तामस मन्वन्तर में कूर्म रूपी विष्णु द्वारा स्थल से पाताल जल में ले जाकर भीमरथ दैत्य का वध - समारूढं महाकायमादाय भगवान्हरिः ।।कूर्मरूपधरो वेगात्पातालजलमाविशत् ।। ), ३.११९.८ ( षधि समारम्भ काल में कूर्म रूप भगवान की पूजा का निर्देश - औषधस्य समारम्भे कूर्मं स्त्रीरूपमेव वा ।। ), ३.१२०.९( २७ नक्षत्रों में पूजनीय देवताओं में से एक - गवां कूर्मं नरं चैव तथा नारायणं हरिम् ।।रामं कृष्णं च वरदं कृत्तिकादिषु पूजयेत् ।। ), स्कन्द १.२.१०.४ ( ब्रह्मलोक से पतन पर राजा इन्द्रद्युम्न का चिरजीवियों मुनि, गृध्र, बक तथा उलूक के साथ मानसरोवर वासी मन्थरक नामक कूर्म के समीप गमन, कूर्म द्वारा राजा से पृष्ठदाह तथा चिरजीविता हेतु का वर्णन ), ४.१.२९.४३ ( कूर्मयाना : गङ्गा सहस्रनामों में से एक ), ४.२.७०.६९  ( काशीस्थ देवियों में से एक कौर्मी शक्ति के पूजन व स्तुति से क्षेत्र सिद्धि प्राप्ति का कथन - कौर्मी शक्तिर्महालक्ष्मी दक्षिणे पाशपाणिका ।।बध्नाति विघ्नसंघातं क्षेत्रस्यास्य प्रतिक्षणम्।।  ), ५.३.१३.४४ ( कूर्म कल्प का १६वें कल्प के रूप में उल्लेख ), ६.२७१.२४५ ( ब्रह्मलोक से पतन पर राजा इन्द्रद्युम्न का चिरजीवी मार्कण्डेयादि के साथ मानसरोवर वासी मन्थरक नामक कूर्म के समीप गमन, कूर्म द्वारा इन्द्रद्युम्न के यज्ञ में पृष्ठदाह के वृत्तान्त का कथन, इन्द्रद्युम्न के पूछने पर कूर्म द्वारा चिरजीविता के हेतु का वर्णन ), ७.१.११.१८ ( कूर्मरूप से संस्थित भारत में नक्षत्र - ग्रह विन्यास का कथन ), ७.१.१०५.४८ ( १५वें कल्प तथा प्रजापति की पूर्णिमा के रूप में कूर्म कल्प का उल्लेख ), ७.४.२०.८ ( कूर्मपृष्ठ आदि दैत्यों द्वारा दुर्वासा के स्नान में विघ्न, कृष्ण द्वारा दैत्यों के हनन का वृत्तान्त ), हरिवंश २.८०.४६ ( रजत - निर्मित कूर्म - द्वय को घृत में स्थापित करके ब्राह्मण को दान देने का निर्देश ), २.११०.३४(वीणा की आकृति की कूर्म से तुलना - मम वीणाकृतिं कूर्मं गजचर्मचयोपमम् ॥), लक्ष्मीनारायण १.१५५.५४ ( अलक्ष्मी के कूर्म पृष्ठ सदृश नखों का उल्लेख ), १.२०९.३९( कूर्मोद्धार : बदरीवन के अनेक तीर्थों में से एक ), १.३७०.११३ ( नरक में कूर्म कुण्ड प्रापक कर्मों का उल्लेख ), १.४९५.३३ ( अभक्ष्य भक्षण से भयभीत अग्नि का गुप्त स्थानों पर छिपना, देवों द्वारा कुंकुमवापी सरोवर पर स्थित कूर्म से अग्नि के आगमन के विषय में पूछना, कूर्म के बतलाने पर अग्नि द्वारा कूर्म को वंश अवृद्धि का शाप देने का वर्णन ), २.११०.७२ (श्रीहरि द्वारा कूर्म ऋषि को कारुराज्य प्रदान करने का उल्लेख ), २.११०.८२ ( कूर्म ऋषि को कर्वरीजलपान देश का गुरु बनाने का उल्लेख ), २.११८.९२ ( नौकाविहार करते हुए सन्तारण प्रभृति हरि भक्तों का जल में निमग्न होना, श्रीहरि द्वारा कूर्म रूप धारण कर स्वभक्तों के उद्धार का वृत्तान्त ), २.१५८.७१ ( कूर्मशिला अर्चन विधि का कथन ), ३.१६४.२८ ( चतुर्थ तामस मन्वन्तर में समुद्रतल स्थित भीमरथ नामक दैत्य के वध हेतु श्री हरि द्वारा कूर्म रूप धारण करने का कथन ), ३.१७०.१४ ( श्रीहरि के विविध धामों में १३वां धाम ), कथासरित् १०.४.१६८ ( कूर्म - हंस कथा में कम्बुग्रीव नामक कूर्म को उसी के मित्र हंसों द्वारा अन्य सरोवर पर ले जाना, बोलने से लकडी के छूट जाने पर कूर्म का गिरना और मृत्यु को प्राप्त होना ), १०.५.७९ ( साधनहीन और वित्तहीन होने पर भी बुद्धिमान मित्रों द्वारा कार्यसिद्धि को दर्शाने वाली काक - कूर्म - मृग -आखु कथा में मन्थर नामक कूर्म का संदर्भ ), १२.१५.६ ( विष्णुस्वामी ब्राह्मण के पुत्रों का यज्ञ हेतु कूर्म लाने के लिए समुद्र तट पर वास ) । kuurma/koorma/kurma


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