Puraanic contexts of words like Kaikeyi, Kaitabha, Kailasa, Kokaamukha, Kokila etc. are given here.

कैकेय भागवत ९.२३.३ ( शिबि के चार पुत्रों में से एक, अनु वंश ), मत्स्य ४५.१९ ( कैकेय की दस कन्याओं के सत्राजित् की पत्नियां होने का उल्लेख ), महाभारत भीष्म ६.४५.५२/६.४३.४९(कैकेय का कृपाचार्य से युद्ध), ६.६९.११/६.६५.११(श्येन व्यूह में अक्षौहिणीपति कैकेय के दक्षिणपक्ष में होने का उल्लेख), द्रोण ७.२२.१७(कैकेय बृहत्क्षत्र के पलालधूम वर्ण वाले अश्वों का उल्लेख), ७.१२५.५/७.१०१(द्रोण व कैकेय बृहत्क्षत्र का युद्ध, द्रोण द्वारा बृहत्क्षत्र का वध), कर्ण ८.९.६(सात्यकि द्वारा कैकेय विन्द व अनुविन्द से युद्ध व उनका वध करने का वृत्तान्त), स्कन्द ३.३.३.३३  ( कैकेय द्विज की विधवा कुमार्गगामिनी कन्या की कथा ), द्र. केकय। kaikeya

 

कैकेयी गरुड २.२.२०.१९?( कृष्ण - पत्नी भद्रा का अपर नाम ), ३.२०.८१(नल-पुत्री भद्रा का कैकेयी/भद्रा रूप में जन्म, कृष्ण की पति रूप में प्राप्ति), देवीभागवत ६.२७.१ ( संजय राजा - पत्नी, दमयन्ती - माता , पुत्री दमयन्ती के नारद से तथाकथित विवाह का प्रसंग ), १२.६.३५ ( गायत्री सहस्रनाम में से एक ), भागवत १०.५८.५६ ( कैकेयराज की पुत्री होने से कैकेयी उपाधि धारण करने वाली भद्रा का श्रीकृष्ण द्वारा पाणिग्रहण का उल्लेख ), महभारत १३.१२३.२(कैकेयी सुमना का शाण्डिली से स्वर्गलोक प्राप्ति विषयक प्रश्न), वा.रामायण १.१८.१३ ( दशरथ - पत्नी, भरत - माता ), २.३५.३ ( राम वनगमन प्रसंग में सारथी सुमन्त्र का कैकेयी को समझाना तथा वाग्बाणों से कैकेयी के हृदय को विचलित करने की चेष्टा का वर्णन ), २.३६.१० ( राम वन गमन प्रसंग में दशरथ द्वारा राम के साथ सेना और कोष भेजने के आदेश देने पर कैकेयी द्वारा विरोध का उल्लेख ), २.३६.१८ ( राम वन गमन प्रसंग में मन्त्री सिद्धार्थ द्वारा कैकेयी को समझाने का वर्णन ), २.३७.२१ ( राम वनगमन प्रसंग में सीता के वल्कल वस्त्र धारण करने पर गुरु वसिष्ठ द्वारा कैकेयी को फटकारने का वर्णन ), स्कन्द २.४.२५.२४ ( कलहा का दशरथ - भार्या कैकेयी का रूप होने का वृत्तान्त ), लक्ष्मीनारायण १.४२५.९८ ( धर्मदत्त के दशरथ नाम से जन्म लेने पर सौराष्ट्रीय कलहा के दशरथ - पत्नी कैकेयी के रूप में जन्म ग्रहण का उल्लेख ) । kaikeyee/kaikeyi

Remarks on Kaikeyi

 

कैटभ ब्रह्म २.४८.१० ( कैटभ राक्षस के पुत्रों अश्वत्थ और पिप्पल द्वारा ब्राह्मणों का भक्षण, ब्राह्मणों द्वारा रवि - पुत्र शनि से सहायता की प्रार्थना, शनि द्वारा कैटभ - पुत्रों को भस्म करने का वृत्तान्त ), ब्रह्माण्ड १.२.३७.२ ( मधु तथा कैटभ नामक दानवों के मेद से आकीर्ण होने के कारण पृथ्वी द्वारा मेदिनी नाम धारण करने का उल्लेख ), ३.४.२९.७५ ( भण्डासुर द्वारा छोडे गए महासुरास्त्र से मधु, कैटभ प्रभृति सहस्रों महादानवों की उत्पत्ति का उल्लेख ), भागवत ३.२४.१८ ( कैटभ असुर का संहार करने के कारण श्रीहरि का कैटभार्दन नामोल्लेख ), ६.१२.१ ( प्रलयकालीन जल में कैटभ असुर द्वारा श्रीहरि पर प्रहार के समान वृत्रासुर द्वारा इन्द्र पर प्रहार का कथन ), १०.४०.१७ ( मधु तथा कैटभ असुरों के संहारार्थ भगवान् के हयग्रीव अवतार ग्रहण करने का उल्लेख ), मत्स्य १७० ( मधु तथा कैटभ असुरों की उत्पत्ति व स्वरूप का कथन, ब्रह्मा के साथ वार्तालाप, भगवान् द्वारा मधु व कैटभ के वध का वृत्तान्त ), १७८.६ ( महासागर में निवास करने वाले मधु व कैटभ असुरों के प्राणहर्त्ता के रूप में श्रीहरि का उल्लेख ), वायु २५.३० ( मधु तथा कैटभ नामक भ्राताओं द्वारा ब्रह्मा के पद्म का कम्पन तथा पद्मपत्रों का भञ्जन, भयभीत ब्रह्मा द्वारा विष्णु से रक्षा की प्रार्थना, विष्णु द्वारा मुख से विष्णु तथा जिष्णु की उत्पत्ति, विष्णु द्वारा कैटभ तथा जिष्णु द्वारा मधु के वध का वृत्तान्त ) । kaitabha

 

कैतव ब्रह्म २.१०१ ( राजा प्रमति द्वारा अक्ष क्रीडा में इन्द्र व विश्वावसु की पराजय, चित्रसेन की विजय, चित्रसेन द्वारा प्रमति का बन्धन, प्रमति - पुत्र सुमति का मुनि से पिता की बन्धन मुक्ति के उपाय पूछना, मुनि द्वारा कैतव दोष का कथन तथा गौतमी पर ईश्वर आराधना से प्रमति की मुक्ति के उपाय का कथन, सुमति द्वारा कैतव दोष से पिता को मुक्त करने पर उर्वशी तीर्थ की कैतव तीर्थ के नाम से प्रसिद्धि का वृत्तान्त ) । kaitava

 

कैरात ब्रह्माण्ड २.३.५.३६ ( अर्जुन द्वारा कैरात में मूक के वध का उल्लेख ), ३.४.१६.१८ ( ललिता देवी के घोडों में कैरात प्रभृति राज्यों के घोडों का उल्लेख ), मत्स्य १९९.१६ ( काश्यप प्रवर प्रवर्तक ऋषियों में से एक ), १९६.७ ( कैराति : गोत्र प्रवर्तक आङ्गिरस ऋषियों में से एक ) ।

 

कैलास गणेश १.४०.५ ( त्रिपुर द्वारा शिव से कैलास मांगना, शिव का मन्दार शिखर को जाना ), ब्रह्माण्ड १.२.१८ ( कैलास पर्वत के परित: वन, सरोवर, नदी व पर्वत का वर्णन ), १.२.२०.५० ( सप्तम तल पाताल में विराजमान महात्मा कुण्डली की कैलास से समता का उल्लेख ),  १.२.२५.२४ ( कैलास के रमणीय शिखर पर आसीन शिव द्वारा पार्वती के पूछने पर नीलकण्ठत्व के हेतु का कथन ), २.३.१३.३६ ( कैलास स्थित मतङ्ग वापी में स्नान से पक्षियों के भी स्वर्ग गमन का कथन ), २.३.२५.९ ( भार्गव / परशुराम - कृत शिवस्तुति में शिव का कैलासवासी रूप से  उल्लेख ), २.३.४१.१८ ( कार्त्तवीर्य का पुत्रों सहित वध करके परशुराम का कृतकार्य हो शिव, पार्वती, स्कन्द  तथा विनायक के दर्शन हेतु कैलास पर गमन का कथन ), ३.४.१०.२७ ( अमृत वितरण हेतु विष्णु के मोहिनी रूप धारण करने के वृत्तान्त को शिव से निवेदित करने के लिए नारद मुनि का कैलास गमन तथा शिव से समस्त वृत्तान्त का निवेदन ), भागवत ४.६.८ ( देवों, प्रजापतियों तथा पितरों के साथ ब्रह्मा का शिव धाम कैलास पर्वत पर गमन तथा कैलास की भव्यता का वर्णन ), ५.१६.२७ ( सुवर्ण गिरि मेरु के दक्षिण में कैलास और करवीर पर्वतों की स्थिति का उल्लेख ), ९.४.५५ ( भगवान् के चक्र से संतप्त दुर्वासा ऋषि का रक्षा हेतु कैलासवासी शंकर की शरण में जाने का उल्लेख ), १०.१०.२ ( कुबेर - पुत्रों के कैलास के रमणीय उपवन में मदोन्मत्त होकर भ्रमण करने का उल्लेख ), मत्स्य ५४.३ ( कैलास शिखर पर आसीन शिव से नारद का व्रत - उपवास सम्बन्धी प्रश्न तथा शिव द्वारा विविध व्रतों का कथन ), ६२.२ ( कैलास शिखरासीन शिव से उमा का व्रत सम्बन्धी प्रश्न तथा शिव द्वारा अनन्त तृतीया व्रत की विधि व माहात्म्य का कथन ), १२१.२ ( हिमालय के पृष्ठ  भाग के मध्य में कैलास पर्वत की स्थिति तथा उस पर शिव के निवास का कथन ), १२१.३ ( कैलास के पाद से मन्दोदक नामक सरोवर के प्राकट्य का कथन ), १२१.५ ( कैलास की पूर्वोत्तर दिशा में चन्द्रप्रभ नामक पर्वत की स्थिति का कथन ), १२१.१० ( कैलास के दक्षिण - पूर्व में हेमशृङ्ग पर्वत की स्थिति का कथन ), १२१.१४ ( कैलास के पश्चिमोत्तर में ककुद्मान पर्वत की स्थिति का कथन ), १२१.१९ ( कैलास के पश्चिम में वरुण पर्वत की स्थिति का कथन ), १२१.२४ ( कैलास के उत्तर में हिरण्यशृङ्ग पर्वत की स्थिति का कथन ), १६३.८५ ( हेमगर्भ,  हेमसख तथा पर्वतराज कैलास को हिरण्यकशिपु द्वारा प्रकम्पित करने का उल्लेख ), १८३.१ ( पार्वती द्वारा शिव से कैलास प्रभृति स्थानों का परित्याग कर अविमुक्त क्षेत्र में निवास का कारण पूछने पर शिव द्वारा अविमुक्त क्षेत्र के माहात्म्य का वर्णन ), वामन ९०.३३ ( कैलास पर विष्णु का वृषभध्वज नाम से वास ), वायु ३५.९ ( मेरुमूल के दक्षिण में कैलास पर्वत की स्थिति का उल्लेख ), ३५.२४ ( मानसरोवर के दक्षिणस्थ पर्वतों में कैलास का उल्लेख ), ३८.३३ ( दक्षिण दिशा की द्रोणियों में पञ्चकूट और कैलास शिखरों के मध्य की वनभूमि का उल्लेख ), ४१ ( देवकूट पर्वत के मध्यम शिखर पर स्थित कुबेर की सभा के स्थान, शोभा का वर्णन ), ४२.३२ ( अलकनन्दा नदी के त्रिकूट, कलिङ्ग , रुचक आदि पर्व शिखरों से होते हुए कैलास पर गिरने का उल्लेख ), ४७ ( कैलास पर्वत के परित: वन, सरोवर, नदी व पर्वतों का वर्णन ), ५०.३० ( कैलास के सुरम्य शिखर पर आसीन शिव से पार्वती द्वारा नीलकण्ठत्व का कारण पूछना, शिव द्वारा नीलकण्ठत्व के हेतु का कथन ), विष्णु २.२.४२ ( कैलास पर्वत के विस्तार तथा स्थिति का उल्लेख ), शिव १.१७.९२(ज्ञान कैलास का उल्लेख), १.१९.६१(अहिंसा लोक में ज्ञान कैलास पुर का कथन), ५.१.७ ( पुत्रप्राप्त्यर्थ तप हेतु कृष्ण के शिव के निवास कैलास जाने का उल्लेख), ६.१+ ( शिवपुराण के अन्तर्गत कैलास संहिता का आरम्भ ), स्कन्द ७.१.३ ( कैलास पर्वत की शोभा का वर्णन ), हरिवंश ३.८४.४ ( तपस्या हेतु कृष्ण के कैलास पर्वत पर गमन का उल्लेख तथा कैलास की महिमा का वर्णन ), लक्ष्मीनारायण २.१४०.१२( कैलास प्रासाद के लक्षण), २.१४०.२८( कैलास नामक प्रासाद के स्वरूप का कथन), २.१४१.५३ ( कैलास मेरु नामक प्रासाद के स्वरूप का कथन ), ३.४५.१५ ( शम्भु भक्ति से युक्त लोगों को कैलास नामक शिव स्थान की प्राप्ति का उल्लेख ), ४.२.१० ( राजा बदर के कैलास नामक विमान का कथन ), कथासरित् १५.१.४४ ( शिव के निवास स्थान कैलास के लङ्घन से विद्याओं के नष्ट हो जाने, अतएव त्रिशीर्ष गुफा से होकर कैलास के उत्तर में पहुंचने का कथन ), १५.१.६१ ( ऋषभ देव द्वारा तप से कैलास के उत्तर व दक्षिण पार्श्व द्वय का साम्राज्य प्राप्त करना ), १५.१.६६ ( कैलास को भेदकर शिव द्वारा त्रिशीर्ष गुफा का निर्माण, कैलास के निवेदन करने पर गुफा के दक्षिण द्वार पर महामाय तथा उत्तर द्वार पर कालशक्ति, चण्डिका तथा अपराजिता को रक्षार्थ नियुक्त करने का उल्लेख ), १५.१.८७ ( गुफा के मध्य से निकलकर नरवाहनदत्त द्वारा कैलास के उत्तर भाग के दर्शन, कालरात्रि से विजय प्राप्ति का आशीर्वाद प्राप्त करके नरवाहनदत्त का मन्दरदेव से युद्ध, मन्दरदेव की पराजय, नरवाहनदत्त को हिमालय के उत्तर भाग के राज्य की प्राप्ति का वृत्तान्त ) । kailaasa/ kailasa

 

कैवर्त गणेश १.५७.२ ( दुष्ट कैवर्त्त की बुद्धि के मुद्गल मुनि के दर्शन से परिवर्तित होने की कथा ), लक्ष्मीनारायण ३.११३.९६ ( राजा वैवर्त का मृत्यु पश्चात् स्व अनुज कैवर्त्त के पुत्र रूप में जन्म लेने का वृत्तान्त ) ।

 

कैवल्य दृ. केवल

 

कैशिक नारद १.५०.५६ ( गान विद्या में ग्राम का नाम? ), ब्रह्माण्ड २.३.७०.३७ ( ज्यामघ व शैब्या - पौत्र, विदर्भ - पुत्र, चिदि - पिता, क्रोष्टु वंश ), मत्स्य ४४.३६ ( वही), विष्णु ४.१२.३७ ( ज्यामघ व शैब्या - पौत्र, विदर्भ - पुत्र, क्रथ, रोमपाद - भ्राता ), ४.१२.३९ ( रोमपाद के पौत्र धृति का पुत्र, चिदि - पिता ), हरिवंश २.४७.४४ ( रुक्मिणी स्वयंवर प्रसंग में विदर्भराज कैशिक द्वारा श्रीकृष्ण के सत्कार का उल्लेख ), २.५० ( विदर्भराज कैशिक द्वारा क्रथ भ्राता सहित कृष्ण को राज्य का समर्पण, कृष्ण के राजेन्द्र पद पर  अभिषेक का वृत्तान्त ) । kaishika

 

कोकनद वामन ५७.७४( यक्षों द्वारा कुमार को प्रदत्त १५ गणों में से एक ), ९०.३८( धरातल में विष्णु का कोकनद नाम से वास ) ।

 

कोका ब्रह्म १.११०.४( ऊर्जा व स्वधा उपनाम वाली सोम की कला में पितरों की आसक्ति, सोम के शाप से ऊर्जा का कोका नदी होने व पितरों के उसमें निमग्न होने का वर्णन ) । kokaa

 

कोकामुख पद्म ३.३८.६७( कोकामुख तीर्थ में स्नान से जातिस्मरत्व प्राप्ति का उल्लेख ), ब्रह्म १.१२१.६९( नारद द्वारा कोकामुख नदी में स्नान करने पर माया के कारण रूप परिवर्तन, कोकामुख तीर्थ में कामदमन की मुक्ति की कथा ), वराह १२२( कोकामुख तीर्थ का माहात्म्य : चिल्ली व मत्स्य को उत्तम गति की प्राप्ति की कथा ), १४०( कोकामुख तीर्थ के श्रेष्ठत्व का कथन तथा तदन्तर्वर्ती गुह्य स्थलों का वर्णन ), लक्ष्मीनारायण १.५६८.३( मत्स्य के कोकामुख क्षेत्र में पतन से राजपुत्र बनने व चिल्ली के राजकन्या बनने का वृत्तान्त ) । kokaamukha/ kokamukha

 

कोकावराह स्कन्द ४.२.६१.२०६( किटीश्वर के समीप कोकावराह के पूजन से अभिलषितार्थ प्राप्ति का उल्लेख ), ४.२.८३.६२( कोकावराह तीर्थ का संक्षिप्त माहात्म्य ) ।

 

कोकिल गरुड १.२१७.१९( भ्रातृ - भार्या प्रसंग से प्राप्त योनि ), नारद १.२०.४०( अवकोकिला : अन्त समय में विष्णु अर्चन से निषाद कुलोत्पन्न अवकोकिला का राजा सुमति की पत्नी सत्यमति बनने का वृत्तान्त ), १.५०.६२ ( कोकिला द्वारा पञ्चम स्वर के वादन का उल्लेख - पुष्पसाधारणे काले कोकिला वक्ति पञ्चमम् ।। अश्वस्तु धैवतं वक्ति निषादं वक्ति कुंजरः ।। ), १.१२४.१८ ( कोकिला व्रत विधि में कोकिला रूपी गौरी की पूजा से सुख सौभाग्य की प्राप्ति का कथन ), ब्रह्मवैवर्त्त २.३१.१० ( पुंश्चली/वेश्यागामी द्वारा कोकिल योनि प्राप्ति का उल्लेख ), ४.८५.११८ ( मसी चोर के कोकिल होने का उल्लेख ), भविष्य ४.११ ( शत्रुघ्न - पत्नी कीर्तिमाला - कृत कोकिला व्रत की विधि व महत्त्व का कथन ), मत्स्य १५४.२५२( काम को भस्म करने के पश्चात् शिव द्वारा कामाग्नि  को विभक्त कर आम्रवृक्ष, वसन्त ऋतु, चन्द्र, पुष्प, भ्रमर तथा कोकिलमुखों में स्थापित करने का उल्लेख ), मार्कण्डेय १५.११( भ्रातृभार्या से बलात्कार करने के फलस्वरूप कोकिल योनि प्राप्ति का उल्लेख ), योगवासिष्ठ ६.२.११६.७३ ( अनुचरी द्वारा विपश्चित् को काक, कोकिल आदि पक्षियों को दिखलाकर अन्योक्ति  द्वारा विशेष अभिप्राय के सूचन का वर्णन ) । kokila/kokilaa

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