Puraanic contexts of words like Kusha, Kushadhwaja, Kushanaabha, Kushala/efficient, Kushasthali, Kushaagra, Kushika etc. are given here.

कुशक स्कन्द ७.१.१७३.२ (कुशकेश्वर लिङ्ग का संक्षिप्त माहात्म्य :समस्त पापों से मुक्त होकर शिवलोक की प्राप्ति ) ।

 

कुशध्वज देवीभागवत ९.१६.२ ( रथध्वज - पुत्र, धर्मध्वज - भ्राता, मालावती - पति, वेदवती - पिता ), ब्रह्माण्ड २.३.६४.१९ (मैथिल भानुमान् के भ्राता तथा काशीराज के रूप में कुशध्वज का उल्लेख ), ब्रह्मवैवर्त्त ४.१७.२०९ ( वेदवती और तुलसी नामक कन्याओं के पिता के रूप में कुशध्वज का उल्लेख ), भविष्य ४.६५.३ ( विदर्भराज कुशध्वज को ब्राह्मण हत्या से बारह दुष्ट योनियों की प्राप्ति, पूर्वकृत तारक द्वादशी व्रत से मुक्ति का वर्णन ), भागवत ९.१३.१०( सीरध्वज - पुत्र, धर्मध्वज - पिता, निमि वंश ), वायु ८९.१८ ( मैथिल भानुमान के भ्राता तथा काशी के राजा के रूप में कुशध्वज का उल्लेख ), विष्णुधर्मोत्तर १.२२१.२० ( बृहस्पति - पुत्र, वेदवती - पिता, दैत्येश्वर शम्भु का कुशध्वज से वेदवती को मांगना, कुशध्वज के मना करने पर शम्भु द्वारा कुशध्वज का वध ), स्कन्द १.२.९.२८ ( राजा इन्द्रद्युम्न से अपने पूर्व जन्मों का वर्णन करते हुए गृध्र द्वारा एक जन्म में राजगृह में काशीश्वर - पुत्र कुशध्वज के रूप में जन्म धारण करने का कथन ), स्कन्द ५.२.३५.२ ( इन्द्र द्वारा प्रजापति त्वष्टा के पुत्र कुशध्वज के वध का उल्लेख ), ६.२७१.२१३ ( राजा इन्द्रद्युम्न से अपने पूर्व जन्मों का वर्णन करते हुए गृध्र द्वारा एक जन्म में राजगृह में कोटीश्वर - पुत्र कुशध्वज नाम से जन्म धारण करने का कथन ), वा.रामायण १.७०.२ ( जनक - भ्राता कुशध्वज का सांकाश्या नगरी में वास, सीता - राम विवाह में कुशध्वज का आगमन ), १.७२.४ ( विश्वामित्र द्वारा भरत व शत्रुघ्न हेतु कुशध्वज की कन्याओं का वरण ), ७.१७.८ ( बृहस्पति- पुत्र, वेदवती - पिता, शम्भु दैत्य द्वारा कुशध्वज का वध ), लक्ष्मीनारायण १.३३४.१८ ( वृषध्वज - पुत्र, धर्मध्वज - भ्राता, वेदवती - पिता ) । kushadhwaja

 

कुशनाभ पद्म १.८.७६ ( वैवस्वत मनु के १० पुत्रों में से एक ), ब्रह्माण्ड २.३.६६.३२ ( अजक - सुत कुश के चार पुत्रों में से एक ), भागवत ९.१५.४ ( वही), मत्स्य ११.४१ ( वैवस्वत मनु के दस पुत्रों में से एक ), वायु ९१.६२ ( अजक - सुत कुश के चार पुत्रों में से एक ), विष्णु ४.७.८ ( बलाकाश्व - सुत कुश के चार पुत्रों में से एक ), हरिवंश १.२७.१२ ( कुश के चार पुत्रों में से एक, पुरु वंश ), वा.रामायण १.३२.३ ( महाराज कुश के चार पुत्रों में से एक कुशनाभ द्वारा महोदय नामक नगर का निर्माण, कुशनाभ तथा घृताची नामक अप्सरा से १०० कन्याओं की उत्पत्ति ), कथासरित् १२.१९.७१ ( तापस वेश धारी राजा द्वारा मार्ग में कुशनाभ मुनि के दर्शन, मुनि द्वारा राजा को अभीप्सित कन्या की प्राप्ति का आश्वासन ) । kushanaabha

 

कुशप्लवन ब्रह्माण्ड २.३.५.५५ ( इन्द्रहन्ता पुत्र की प्राप्ति हेतु दिति द्वारा कुशप्लवन में तप का उल्लेख ), वा.रामायण १.४६.८ ( इन्द्रहन्ता पुत्र की प्राप्ति हेतु दिति द्वारा कुशप्लव नामक तपोवन में तप का उल्लेख ) ।

 

कुशरीर वायु २३.१६९ ( १५ वें द्वापर के विष्णु के अवतार वेदशिरा के चार पुत्रों में से एक ) ।

 

कुशल पद्म ६.२१३.८, ६.२१४.२९ ( स्व - पत्नी दुराचारा के दुराचरण से पीडित होकर कुशल नामक ब्राह्मण द्वारा विषपान, मृत्यु, राक्षस योनि की प्राप्ति, पुत्र द्वारा किए गए श्राद्ध से राक्षस योनि से मुक्त होकर देवत्व प्राप्ति का वृत्तान्त ), ब्रह्माण्ड १.२.१४.२२ ( क्रौंच द्वीपाधिपति द्युतिमान् के सात पुत्रों में से ज्येष्ठ पुत्र कुशल के नाम पर कौशल देश के नामकरण का उल्लेख ), १.२.३२.२८( कुशल - अकुशल कर्म के अनुसार धर्म - अधर्म की परिभाषा ), भागवत ५.२०.१६ ( कुशद्वीप के ४ प्रकार के निवासियों में से एक ), वराह ८८.३(क्रौञ्च द्वीप के वर्षों में से एक, अपर नाम माधव),  वायु ६७.९४ ( इन्द्रहन्ता पुत्र की प्राप्ति हेतु दिति द्वारा कुशल नामक वन में दारुण तप का उल्लेख ), विष्णु २.४.४८ ( क्रौंच द्वीपाधिपति द्युतिमान् के सात पुत्रों में से एक ), स्कन्द ४.१.४०.६४ ( ब्राह्मण आदि ४ वर्णों से कुशलता पृच्छा का विधान ) । kushala

 

कुशला वायु ३३.२१( क्रौंच द्वीपाधिपति द्युतिमान् के सात पुत्रों में से एक ), लक्ष्मीनारायण २.२५७.३४, २.२५८ ( आनर्त नामक राजा तथा कुशला नामक योगिनी के संवाद द्वारा गृहस्थ की मोक्ष प्राप्ति का वर्णन ), २.२५८.९६ ( ब्रह्मा द्वारा सोम के यज्ञ से कुशला को उत्पन्न करने का उल्लेख ), २.२९७.८५( कृष्ण द्वारा कुशला पत्नी के गृह में ताम्बूल भक्षण के विशिष्ट कार्य का उल्लेख ) । kushalaa

 

कुशलीमुख वायु ६७.७९ ( बाष्कल के चार पुत्रों में से एक ) ।

 

कुशवती ब्रह्माण्ड २.३.७.२२ ( अप्सराओं के १४ गणों में से बर्हि नामक अप्सरा गण के कुशवती में उत्पन्न होने का उल्लेख ) ।

 

कुशस्तम्ब वायु ९१.६२ ( कुश - पुत्र, गाधि- पिता ) ।

 

कुशस्थली गर्ग ८.४.३० ( ज्योतिष्मती द्वारा आनर्त देश में कुशस्थली के राजा रेवत की भार्या से रेवती नाम से जन्म धारण करने का कथन ), पद्म १.४६.१६ ( अन्धक वध हेतु शिव का कैलास से कुशस्थली आगमन का उल्लेख ), ब्रह्माण्ड २.३.६१.२० ( आनर्त - पुत्र रेव की राजधानी के रूप में कुशस्थली पुरी का उल्लेख ), भागवत १.१०.२७ ( श्रीकृष्ण के निवास से कुशस्थली / द्वारका की पवित्रता तथा महानता का उल्लेख ), वायु ८८.१९९ (राम - आत्मज कुश द्वारा विन्ध्य पर्वत के शिखर पर कुशस्थली नामक राजधानी निर्मित करने का उल्लेख ), विष्णु ४.१.९१ ( राजा रैवत की नगरी के रूप में कुशस्थली का उल्लेख ), स्कन्द २.२.१३.२ ( शिव - कृत आराधना से कण्टकाकीर्ण कुशस्थली का वृन्दावन सदृश मनोरम बनने का कथन ), ५.१.५.५ ( कुशस्थली की शोभा का वर्णन, कपालपाणि शिव का कुशस्थली वन में प्रवेश, वृक्षों द्वारा शिव को पुष्प निवेदन, प्रसन्न शिव द्वारा वर प्रदान, वृक्षों द्वारा शिव के नित्य निवास रूप वर की प्राप्ति ), ५.१.२४.३५ ( वाल्मीकि द्वारा कुशस्थली में आकर शिव की आराधना, आराधना से कवित्व प्राप्ति तथा रामायण महाकाव्य की रचना का कथन ), ५.१.३१.१७ ( अवन्ती क्षेत्रान्तर्गत कुशस्थली नगरी में राम द्वारा रामेश्वर देव की स्थापना, कुशस्थली माहात्म्य का कथन, अपर नाम उज्जयिनी ), ५.१.४१.२९ ( ब्रह्मा द्वारा विष्णु को कुश आसन प्रस्तुति से कुशस्थली नाम हेतु का कथन ), ५.१.६२.२५ ( कुशस्थली में कृष्ण द्वारा गोमती की आराधना से गोमती का आगमन तथा गोमती कुण्ड की स्थापना ), हरिवंश २.५५.१०२ (गरुड द्वारा कृष्ण के निवास योग्य स्थल के निरीक्षण हेतु कुशस्थली जाना तथा पुरी निर्माण हेतु उस स्थान की उपयुक्तता का वर्णन ) । kushasthali

 

कुशाग्र भागवत ९.२२.६ ( बृहद्रथ -पुत्र, ऋषभ -पिता ), मत्स्य ५०.२८ ( बृहद्रथ -पुत्र, वृषभ - पिता, पूरु वंश ), वायु ९९.२२३ ( बृहद्रथ - पुत्र, ऋषभ - पिता ), विष्णु ४.१९.८२ ( बृहद्रथ - पुत्र, वृषभ - पिता ) । kushaagra

 

कुशाम्ब गर्ग ७.२२.२१ ( कौशाम्बी - अधिपति कुशाम्ब द्वारा प्रद्युम्न को भेंट प्रदान न करना, प्रद्युम्न सेना से युद्ध में पराजय होने पर कुशाम्ब द्वारा प्रद्युम्न को भेंट प्रदान करना ), १०.२८( बल्वल दैत्य के चार मन्त्रियों में से एक ), १०.३१.१३ ( बल्वल दैत्य के मन्त्री व सेनानी कुशाम्ब का  साम्ब सेना से युद्ध , साम्ब द्वारा कुशाम्ब के वध का वर्णन ), ब्रह्माण्ड २.३.६६.३२ ( कुश के चार पुत्रों में से एक ), भागवत ९.१५.४ ( कुशाम्बु : अजक -सुत कुश के चार पुत्रों में से एक, गाधि - पिता ), ९.२२.६ ( उपरिचर वसु के कुशाम्ब आदि पुत्रों का चेदि देश का राजा होने का उल्लेख ), विष्णु ४.१९.८१ ( वसु - पुत्र, मागध नरेश ), ४.७.८ ( कुश के चार पुत्रों में से एक, गाधि - पिता ), हरिवंश १.२७.१२ ( कुश के चार पुत्रों में से एक, पुरूरवा वंश ), वा.रामायण १.३२.३, ६ ( महाराज कुश के चार पुत्रों में से एक कुशाम्ब द्वारा कौशाम्बी नगरी के निर्माण का उल्लेख ), लक्ष्मीनारायण २.७४.१२ ( किम नदी के तट पर स्थित कुशाम्बा नगरी वासी कौशिकाम्ब ऋषि के योगोपदेश से अन्त्यज का स्त्री सहित मुक्ति प्राप्ति का वृत्तान्त ) । kushaamba

 

कुशावती वायु ४४.१८ ( केतुमाल देश की अनेक नदियों में से एक ), स्कन्द ७.४.१४.४८( पञ्चनद तीर्थ में पुलह के पावनार्थ कुशावती नदी के आगमन का उल्लेख ), वा.रामायण ७.१०८.४ ( राम द्वारा कुश के लिए कुशावती नामक नगरी के निर्माण का उल्लेख ) ।

 

कुशावर्त भागवत ५.४.१० ( ऋषभदेव के भरत - प्रधान सौ पुत्रों में से एक ), मत्स्य २२.६९ ( पितर श्राद्ध हेतु कुशावर्त की प्रशस्तता का उल्लेख ) ।

 

कुशाश्व वायु ९१.६२ ( कुश के ४ पुत्रों में से एक ), वा.रामायण १.४७.१५ ( सृंजय - पौत्र, सहदेव - पुत्र, सोमदत्त - पिता, इक्ष्वाकु वंश ) ।

 

कुशि वायु ९१.६२ ( विरोचन - पुत्र बलि के १०० पुत्रों में प्रधान ४ पुत्रों में से एक ) ।

 

कुशिक ब्रह्माण्ड २.३.६६.३३ ( कुश के चार पुत्रों में से एक कुशिक को तप के फलस्वरूप इन्द्र के अंशरूप कौशिक / गाधि नामक पुत्र की प्राप्ति का उल्लेख ), वायु १.१५७ ( एक विप्रर्षि ), २१.३२ ( १३ वें कल्प का नाम ), २३.२२३ ( २८ वें द्वापर में विष्णु के अवतार नकुली के चार पुत्रों में से एक ), शिव ३.५.४९ ( अठ्ठाइसवें द्वापर में लकुली नाम से शिव के अवतार ग्रहण करने पर चार शिष्यों में से एक ), स्कन्द ३.२.९.५५ ( कुशिक गोत्र के ऋषियों के ३ प्रवरों से युक्त होने का उल्लेख ), हरिवंश १.२७.१२ ( कुश के चार पुत्रों में से एक कुशिक को तप के फलस्वरूप इन्द्र के अंशरूप कौशिक / गाधि नामक पुत्र की प्राप्ति का उल्लेख, पुरूरवा वंश ) । kushika

कुशिक पुराण कथा के अनुसार कुशिक ने तपस्या करके इन्द्र को अपने पुत्र कौशिक (गाधि ) के रूप में प्राप्त किया । जब मनुष्य का व्यक्तित्व एकीकृत हो जाता है तो दैवी त्रिलोकी स्तर का प्राण कुशिक कहलाता है । उससे निचले स्तर पर यह बहुत से, कुशिका: हो जाते हैं। मानुषी त्रिलोकी के स्तर पर आने पर यह कुशिकास: कहलाते हैं। यह प्राण शरीर की प्रत्येक कोशिका में सोए पडे हैं। इन्हें जगाने के लिए विश्वामित्र बनना पडेगा ।- फतहसिंह

 

कुशिकंधर वायु २३.१९३ (२० वें द्वापर में विष्णु के अट्टहास नाम से अवतार ग्रहण करने पर चार पुत्रों में से एक ), शिव ३.५.२७ ( बीसवें द्वापर में अट्टहास नाम से शिव के अवतार ग्रहण करने पर चार शिष्यों में से एक ) ।

Make a free website with Yola