कृष्णा

टिप्पणी : कृष्णा के लिए पाञ्चालराज द्रुपद - पुत्री द्रौपदी का चरित्र द्रष्टव्य है । यज्ञीय भाषा में आलभन योग्य यज्ञीय पशु को द्रुपद या खूंटे से बांधते हैं । ऋग्वेद में द्रुपद से बद्ध शुनःशेप मोचन हेतु देवों की स्तुति करता है । लौकिक भाषा में अपराधी को द्रुपद से बांधा जाता था । डा. फतहसिंह के अनुसार द्रुपद का अर्थ है द्रुत गति वाला, हमारा मनोमय कोश । द्रुपद का विपरीत द्रोण है । द्रुपद यज्ञ  द्वारा यज्ञ वेदी रूपी कृष्णा या द्रौपदी की प्राप्ति करता है । जैसा कि कृष्ण शब्द की टिप्पणी के संदर्भ में उद्धृत किया गया है, ऐतरेय ब्राह्मण ४.२७, तैत्तिरीय ब्राह्मण १.१.३.२ आदि में उल्लेख आता है कि पृथिवी का जो यज्ञीय कृष्ण भाग था, उसे द्युलोक में चन्द्रमा में रख दिया गया , वही चन्द्रमा का कृष्ण भाग है । लेकिन प्रश्न यह है कि पृथिवी के जिस कृष्ण भाग को चन्द्रमा में स्थापित नहीं किया जा सका, उसका क्या होगा? वह भाग द्रुपद - पुत्री कृष्णा हो सकती है । शतपथ ब्राह्मण ७.२.१.७, तैत्तिरीय संहिता ५.२.४.२ आदि में निर्ऋति को कृष्णा कहा गया है । निर्ऋति का कार्य पापों से मुक्त करना होता है । शतपथ ब्राह्मण ९.२.३.३० में रात्रि को कृष्णा कहा गया है जो शुक्ल वत्सा (सूर्य रूपी? ) है । महाभारत आदि में उल्लेख आते हैं कि सारे महाभारत युद्ध का मूल द्रौपदी ही थी । यदि रात्रि को कृष्णा माना जाए तो द्रौपदी के ५ पतियों को निद्रा या समाधि की विभिन्न अवस्थाएं माना जा सकता है । सरस्वती रहस्योपठनषद् ३.२३ का कथन है कि अस्ति, भाति व प्रिय तो ब्रह्म रूप ( अन्तर्जगत ) हैं और नाम व रूप जगत ( बाह्य जगत ) रूप हैं । इसका अर्थ हुआ कि द्रौपदी के ३ पति युधिष्ठिर, भीम व अर्जुन क्रमशः अस्ति, भाति व प्रिय के प्रतीक हो सकते हैं तथा नकुल व सहदेव नाम व रूप के प्रतीक, जिन्हें अश्विनौ का अवतार कहा जाता है । हो सकता है कि यह ५ पति ५ कोशों के भी प्रतीक हों जिनमें मनोमय कोश को प्रिय का प्रतीक कह सकते हैं । ऋग्वेद १०.१२७ तथा अथर्ववेद १९. सूक्त रात्रि सूक्त हैं । कृष्णा या द्रौपदी के चरित्र की अन्य विशेषताओं की व्याख्या अपेक्षित है ।

 

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