गणेश पुराण में क्रौञ्च गन्धर्व के मूषक बन जाने की कथा भी महत्त्वपूर्ण हो जाती है क्योंकि कहा जाता है कि मूषक पृथिवी के रस को जानता है लेकिन साथ ही साथ मूषक शब्द में मुष् धातु चोरी के अर्थ में है अतः मूषक जिस रस का ग्रहण करता है, वह चोरी है उसने उस रस को उत्पन्न करने के लिए कोई प्रयत्न नहीं किया है हम सबकी भी यही स्थिति है हम रसों के अनधिकारी होते हुए भी उनकी प्रकृति से चोरी कर रहे हैं अपने प्रयत्न से हमने रस उत्पन्न नहीं किए हैं और गणेश पुराण में गजानन गणेश मूषक पर नियन्त्रण करने के लिए उसको अपना वाहन बना लेते हैं निषाद स्वर हस्ती का स्वर है अतः इस कथा में यह महत्त्वपूर्ण हो जाता है कि निषाद हस्ती द्वारा क्रौञ्च रूप मूषक का नियन्त्रण किया जा रहा है दूसरे शब्दों में क्रौञ्च रूप मूषक हस्ती रूप निषाद की प्रतिष्ठा है जिसका उल्लेख वाल्मीकि रामायण के श्लोक में किया जा रहा है - मा निषाद प्रतिष्ठां इत्यादि यह महत्त्वपूर्ण है कि पुराणों में क्रौञ्च को प्रतिष्ठा के रूप में ही प्रदर्शित किया गया है स्कन्द कार्तिकेय की भी प्रतिष्ठा क्रौञ्च पर्वत ही है अतः साधना में क्रौञ्च रूप को मारना नहीं है, उसके ऊपर गणेश की भांति नियन्त्रण करना है (यह उल्लेखनीय है कि वाल्मीकि रामायण में निषाद ने पुरुष क्रौञ्च की हत्या की है, स्त्री क्रौञ्च की नहीं) गणेश पुराण की कथा में क्रौञ्च गन्धर्व मूषक क्यों बना, यह भी जानना महत्त्वपूर्ण है क्रौञ्च गन्धर्व सौभरि ऋषि की पत्नी मनोमयी पर आकृष्ट हो गया और उसके साथ बलात्कार करना चाहा जिस पर ऋषि ने उसको मूषक बनने का शाप दे दिया क्योंकि मूषक भी चोरी करता है, वह भी चोरी कर रहा था गन्धर्व की निरुक्ति गं - धारयति, जो ज्ञान को धारण करता है, के रूप में की जा सकती है लेकिन क्रौञ्च गन्धर्व अपने ज्ञान की उपेक्षा कर मनोमयी प्रकृति पर आकृष्ट हो रहा है ऐसा प्रतीत होता है कि गणेश का क्रौञ्च रूपी वाहन मूषक धातु कोश के अर्थ क्रुञ्च - कौटिल्याल्पीभावे को चरितार्थ कर रहा है जबकि स्कन्द की प्रतिष्ठा क्रौञ्च पर्वत में क्रौञ्च का बृहद् रूप प्रकाशित होता है गणेश एकान्तिक साधना का और स्कन्द बृहत् साधना का प्रतीक हैं स्कन्द सारी पृथिवी की परिक्रमा करते हैं स्कन्द को हमारे व्यक्तित्व के, हमारी चेतना के सात स्कन्ध, सात कोश कहा जा सकता है जैमिनीय आरण्यक १६..१२ में उल्लेख आता है कि बृहस्पति ने ब्रह्मवर्चस प्राप्ति के लिए सामों में से क्रौञ्च साम का वरण किया बृहस्पति भी बृहती - पति है, बृहत् का रूप है

          पुराणों में क्रौञ्च द्वीप के अधिपति के रूप में प्रियव्रत - पुत्र घृतपृष्ठ का नाम लिया गया है और क्रौञ्च द्वीप के निवासी आपः के देवता वरुण या महादेव की उपासना करते हैं यह भी उल्लेख है ( देवीभागवत पुराण आदि) कि कुश द्वीप के परितः घृत समुद्र है, घृत समुद्र के परितः क्रौञ्च द्वीप, क्रौञ्च द्वीप के परितः क्षीर सागर, क्षीरसागर के परितः शाकद्वीप यह सर्वविदित ही है कि जल में रस अव्यक्त रूप से विद्यमान हैं रस विद्युत का रूप हैं अतः जब कहा जाता है कि क्रौञ्च द्वीप के निवासी आपः रूप वरुण की उपासना करते हैं, तो इसका तात्पर्य यही होगा कि जो रस अव्यक्त रूप में विद्यमान हैं, उनको प्रकट करना और इससे पहली स्थिति घृत की हो सकती है घृत क्या हो सकता है, इस संदर्भ में यह सोचा जा सकता है कि घृत के अणुओं में सर्वाधिक सममिति विद्यमान होती है, वह किसी ध्रुवीकरण से मुक्त होते हैं रसों में यह ध्रुवीकरण व्यक्त हो जाता है अतः साधना की पहली स्थिति ध्रुवीकरण से मुक्त होकर घृत अवस्था प्राप्त करने की है उसके पश्चात् दूसरी स्थिति मधु/आनन्द प्राप्त करने की है जैमिनीय ब्राह्मण .२२५ का कथन है कि घृतश्चुन्निधनं यजु निधन है जबकि मधुश्चुन्निधनं साम निधन है घृत और मधु की स्थितियों से ऐसा भी संकेत लिया जा सकता है कि यह सूर्य और चन्द्रमा की स्थितियां हैं पुराणों में गौरी शिव क्रमशः पूर्णिमा अमावास्या को क्रौञ्च पर्वत पर स्थित स्कन्द कार्तिकेय से मिलने आते हैं, ऐसा उल्लेख मिलता है ऐसा तभी हो सकता है जब क्रौञ्च में चन्द्रमा का समावेश हो गया हो सूर्य, पृथिवी चन्द्रमा के मिलन से ही संवत्सर बनता है

          वाल्मीकि रामायण युद्ध काण्ड ९६.२६ में उल्लेख आता है कि राम ने विराध राक्षस का निग्रह क्रौञ्च वन में किया विराध के संदर्भ में एक वैदिक मन्त्र महत्त्वपूर्ण है : 'सं श्रुतेन गमेमहि मा श्रुतेन विराधिषि ' अर्थात् श्रुत के अनुसार आचरण करे, श्रुत के साध विराध करे विराध क्या होता है, यह अज्ञात है यदि राध कोई आह्लाद की स्थिति है तो विराध उस आह्लाद में उन्मत्त होने की स्थिति हो सकती है महत्त्वपूर्ण तथ्य यह है कि क्रौञ्च किसी प्रकार से श्रुत ज्ञान से भी सम्बन्धित है   छान्दोग्य उपनिषद .२२. में उद्गीथ के संदर्भ में क्रौञ्च की भांति गाए जाने वाले उद्गीथ को बृहस्पति देवता का कहा गया है

          आपस्तम्ब श्रौत सूत्र २४.१३ में निर्देश है कि स्वर्गकामी के लिए उच्च स्वर में क्रौञ्च की भांति वषट् करे वषट् के बारे में कहा गया है कि ऊपर का सूर्य ही वौ है और नीचे छह ऋतुएं ही षट् हैं अतः सूर्य को पृथिवी पर अवतरित कराना ही वौषट् है लेकिन यह स्थिति ऊपर से नीचे आने की हुई, जबकि आपस्तम्ब श्रौत सूत्र का निर्देश नीचे से ऊपर जाने के संदर्भ में है

वर्ष नाम



अग्नि 119.14

कूर्म

गरुड 1.56.12

देवीभागवत 8.13.7

ब्रह्माण्ड 1.2.19.71

भागवत 5.20.21

लिङ्ग

विष्णु 2.4.48

कुशल

 

कुशल

आम

कुशल(क्रौञ्च)

आम

 

कुशल

मनोनुग

 

मन्दग

मधुररुह

मनोनुग(वामन)

मधुरुह

 

मल्लग

उष्ण

 

उष्ण

मेघपृष्ठ

उष्ण

मेघपृष्ठ

 

उष्ण

प्रधान

 

पीवर

सुधामक

पीवर

सुधामा

 

पीवर

अन्धकारक

 

अन्धकारक

भ्राजिष्ठ

अन्धकारक

भ्राजिष्ठ

 

अन्धकारक

मुनि

 

मुनि

लोहितार्ण

मुनि

लोहितार्ण

 

मुनि

दुन्दुभि

 

दुन्दुभि

वनस्पति

दुन्दुभिस्वन

वनस्पति

 

दुन्दुभि

 

पर्वत नाम

अग्नि 119.16

कूर्म 1.49.27

गरुड 1.56.13

देवीभागवत 8.13.9

ब्रह्माण्ड 1.2.19.66

भागवत 5.20.21

लिङ्ग 1.53.14

विष्णु 2.4.50

क्रौञ्च

क्रौञ्च

क्रौञ्च

शुक्ल

क्रौञ्च

शुक्ल

क्रौञ्च

क्रौञ्च

वामन

वामन

वामन

वर्धमान

वामनक

वर्धमान

वामनक

वामन

अन्धकारक

अधिकारिक

अन्धकारक

भोजन

अन्धकारक

भोजन

अन्धकारक

अन्धकारक

देवावृत्

देवाब्द/दिवावृत्

 

उपबर्हण

दिवावृत्

उपबर्हिण

दिवावृत्

रत्नशैल/स्वाहिनी

पुण्डरीक

विवेद

दिवावृत्

नन्द

द्विविद

नन्द

विविन्द

दिवावृत्

दुन्दुभि

पुण्डरीक

दुन्दुभि

नन्दन

पुण्डरीक

नन्दन

पुण्डरीक

पुण्डरीकवान्

 

दुन्दुभिस्वन

पुण्डरीकवान्

सर्वतोभद्र

दुन्दुभिस्वन

सर्वतोभद्र

दुन्दुभिस्वनः

दुन्दुभि

 

नदी नाम

अग्नि

कूर्म 1.49.29

गरुड 1.56.14

देवीभागवत 8.13.10

ब्रह्माण्ड 1.2.19.75

भागवत 5.20.21

लिङ्ग

विष्णु 2.4.55

 

गौरी

गौरी

अभया

गौरी

अभया

 

गौरी

 

कुमुद्वती

कुमुद्वती

अमृतौघा

कुमुद्वती

अमृतौघा

 

कुमुद्वती

 

सन्ध्या

सन्ध्या

आर्यका

सन्ध्या

आर्यका

 

सन्ध्या

 

रात्रि

रात्रि

तीर्थवती

रात्रि

तीर्थवती

 

रात्रि

 

मनोजवा

मनोजवा

वृत्तिरूपवती

मनोजवा

वृत्तिरूपवती/तृप्तिरूपवती

 

मनोजवा

 

कोभि

ख्याति

शुक्ला

ख्याति

पवित्रवती

 

क्षान्ति

 

पुण्डरीकाक्षा

पुण्डरीका

पवित्रवतिका

पुण्डरीका

शुक्ला

 

पुण्डरीका

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