Puraanic contexts of words like Kuru, Kurukshetra, Kurujaangal, Kula , kulaalchakra etc. are given here.



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कुरव स्कन्द १.२.६२.३५( पर्वतों पर कुरव जाति के क्षेत्रपालों की स्थिति का उल्लेख )

 

कुरु गर्ग ७.१९+ ( प्रद्युम्न का सेना सहित कुरुदेश में गमन, कुरुदेश की शोभा व प्रद्युम्न के कौरवों से युद्ध का वर्णन ), देवीभागवत ७.३०.८० ( उत्तरकुरु प्रदेश में औषधि देवी के वास का उल्लेख ), नारद १.५६.७४४( कुरु देश के कूर्म के पाणि मण्डल होने का उल्लेख ), ब्रह्म १.१६.४५( लोकशैल / मेरु के ४ पत्रों में से एक ), ब्रह्माण्ड १.२.१४.४७ ( आग्नीध्र के ९ पुत्रों में से एक, शृङ्गवान् के उत्तर में स्थित वर्ष कुरु को प्रदान करने का उल्लेख ), २.३.७.१९ ( अप्सराओं के १४ गणों में से सोम के तेज से उत्पन्न एक गण ), भागवत ५.२.१९ ( आग्नीध्र व पूर्वचित्ति के कुरु आदि नौ पुत्रों का उल्लेख, नारी - पति ), ९.२२.४ ( संवरण व तपती - पुत्र कुरु द्वारा कुरुक्षेत्र की स्थापना, परीक्षितादि - पिता ), १०.५४.५८ ( रुक्मिणी व कृष्ण के विवाह के आनन्दोत्सव में सम्मिलित राजवंशों में कुरुवंश का उल्लेख ), १०.८२.१३ ( सूर्य ग्रहण के अवसर पर कुरुक्षेत्र में एकत्र हुए विभिन्न देशों के नरपतियों में कुरुदेश के नरपतियों का उल्लेख ), १०.८४.५५ ( वसुदेव के यज्ञोत्सव में कुरुदेशीय राजाओं के सम्मिलित होने तथा वसुदेव द्वारा सम्मानित होने का उल्लेख ), मत्स्य ५०.२० ( संवरण - पुत्र, सुधन्वा , जह्नु, परीक्षित् तथा प्रजन - पिता, कुरु द्वारा कुरुक्षेत्र का कर्षण, कुरुवंशजों के कौरव नाम से प्रसिद्ध होने का कथन ), ११४.३४ ( मध्यदेश के जनपदों में कुरु जनपद का उल्लेख ), १२१.४९ ( गङ्गा द्वारा सिंचित आर्य देशों में कुरु देश का उल्लेख ), मार्कण्डेय ५६.१८/५९.१८ ( उत्तर कुरु वर्ष का वर्णन ), वामन २२.३ ( संवरण व तपती - पुत्र कुरु का सौदामिनी से परिणय, द्वैतवन में कुरु द्वारा अष्टाङ्ग धर्म की कृषि करने पर उस स्थान की कुरुक्षेत्र नाम से प्रसिद्ध, विष्णु के वरदान स्वरूप कुरुक्षेत्र के धर्मक्षेत्र होने का वृत्तान्त ), वायु ३३.४० ( आग्नीध्र व पूर्वचित्ति - पुत्र ), ३३.४४  ( उत्तर में स्थित शृङ्गवद् वर्ष के अधिपति के रूप में कुरु का उल्लेख ), ४५.११( कुरु वर्ष की शोभा का वर्णन ), ४५.२१ ( शैलराज जारुधि के उत्तरस्थ उत्तर कुरु का वर्णन ), ४५.१०९ ( मध्यदेश के जनपदों में से एक ), ६९.५५ ( अप्सराओं के १४ गणों में से सोम के तेज से उत्पन्न एक गण ), ८४.२३ , ४८ ( हिमालय के उत्तर में उत्तरकुरु तथा दक्षिण में दक्षिण कुरु का उल्लेख ), ९९.२१४ ( संवरण व तपती - पुत्र कुरु द्वारा प्रयाग का अतिक्रमण करके कुरुक्षेत्र की स्थापना, कुरु द्वारा कृष्ट होने से कुरुक्षेत्र नाम धारण, सुधन्वा, जह्नु, परीक्षित व अरिमर्दन - पिता, कुरु के वंशजों की कौरव नाम से प्रसिद्धि ), विष्णु १.१३.५ ( नड्वला व मनु - पुत्र, आग्नेयी - पति, अङ्ग आदि ६ पुत्रों के पिता ), २.१.१७ ( जम्बूद्वीपेश्वर आग्नीध्र के ९ पुत्रों में से एक, कुरु को शृङ्गवत् वर्ष प्राप्त होने का उल्लेख ), लक्ष्मीनारायण ३.७३.७६ ( शर्मिष्ठा व ययाति - पुत्र कुरु का पिता से जरा प्राप्ति को अस्वीकार करके हिमालय जाकर तप करना, कृषि द्वारा प्राप्त अन्न से आतिथ्य सत्कार, प्रसन्न विष्णु द्वारा कुरु को मोक्ष पद प्रदान तथा कुरु द्वारा कृष्ट क्षेत्र को कुरुक्षेत्र नाम से अभिहित करने का वर्णन ) । द्र. उत्तरकुरु kuru

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कुरुकुल्ला नारद १.८९.४३ ( ललिता सहस्रनाम के अन्तर्गत एक नाम ), ब्रह्माण्ड ३.४.३५.३८ ( नौकेश्वरी देवी का अपर नाम ) ।

 

कुरुक्षेत्र अग्नि ११५.६( कुरुक्षेत्र में वास/वस्त्र दान की प्रशंसा का उल्लेख ), कूर्म १.३७.३७ ( द्वापर में कुरुक्षेत्र तीर्थ की विशिष्टता का उल्लेख ), देवीभागवत ७.३८.२४ ( कुरुक्षेत्र में स्थाणु प्रिया नाम से देवी के वास का उल्लेख ), नारद २.६४ ( कुरु द्वारा कृष्ट होने पर ही ब्रह्मसर, रामहृद रूप से प्रसिद्ध स्थान का कुरुक्षेत्र नाम से प्रथित होना, कुरुक्षेत्र तीर्थ के माहात्म्य का कथन ), २.६५ ( कुरुक्षेत्र के अन्तर्गत वन, नदी, विभिन्न तीर्थों का वर्णन, यात्रा विधि का निरूपण ), पद्म ३.२६.१ ( कुरुक्षेत्र तीर्थ के संक्षिप्त माहात्म्य का कथन ), ब्रह्माण्ड २.३.४७.२ ( जमदग्नि - पुत्र परशुराम का कुरुक्षेत्र में जाकर पांच सरोवरों का निर्माण, रक्तपूरित सरोवरों में स्नान कर पितरों का तर्पण, स्यमन्तपञ्चक तीर्थ का निर्माण तथा तीर्थ में स्नान से मनुष्य के कृतकृत्य होने का कथन ), भागवत ३.३.१२ ( सैन्य सहित राजाओं के कुरुक्षेत्र में पहुंचने पर कुरुक्षेत्र की भूमि के कम्पित होने का उल्लेख ), ७.१४.३० ( धर्मादि श्रेय प्रापक पवित्र स्थानों में कुरुक्षेत्र का उल्लेख ), ९.१४.३३ ( पुरूरवा द्वारा कुरुक्षेत्र में सरस्वती नदी के तट पर उर्वशी के दर्शन का उल्लेख ),   मत्स्य २२.१८ ( श्राद्धादि हेतु कुरुक्षेत्र की प्रशस्तता का उल्लेख ), ५०.६७ ( शतानीक - पुत्र अधिसीमकृष्ण के शासन काल में कुरुक्षेत्र में यज्ञ अनुष्ठान के दो वर्षों में सम्पन्न होने का उल्लेख ), वामन २२ (राजर्षि कुरु द्वारा समन्तपञ्चक क्षेत्र में अष्टाङ्ग धर्मों की कृषि करने से उस क्षेत्र की कुरुक्षेत्र रूप से प्रसिद्धि ), ३२.२४ ( कुरु ऋषि द्वारा कृष्ट होने से ब्रह्मसर अथवा रामह्रद की ही कुरुक्षेत्र नाम से प्रसिद्धि का उल्लेख ), ३३.६ ( कुरुक्षेत्र तीर्थ के माहात्म्य का वर्णन ), ५७.९३ ( कुरुक्षेत्र द्वारा स्कन्द को पलासदा नामक गण प्रदान करने का उल्लेख ), ९०.५ ( कुरुक्षेत्र में विष्णु का कृतध्वज नाम से वास ), वायु ७७.६४ ( कुरुक्षेत्र में तिलदान से पितरों की अक्षय तृप्ति का उल्लेख  ), ९१.३१ ( उर्वशी का अन्वेषण करते हुए राजा पुरूरवा द्वारा कुरुक्षेत्र में उर्वशी के दर्शन करने का उल्लेख ), ९९.२१५ ( संवरण - पुत्र कुरु द्वारा प्रयाग का अतिक्रमण करके कुरुक्षेत्र की स्थापना, अनेक वर्षों तक कृष्ट करने से इन्द्र द्वारा वर प्रदान करने का उल्लेख ), ९९.२१५ ( शतानीक - पुत्र अधिसामकृष्ण द्वारा दो वर्ष तक कुरुक्षेत्र में यज्ञ करने का उल्लेख ), विष्णु ४.१९.७७ ( संवरण - पुत्र कुरु द्वारा धर्मक्षेत्र कुरुक्षेत्र की स्थापना का उल्लेख ), स्कन्द २.३.७.१ ( पञ्चधारा तीर्थ के संक्षिप्त माहात्म्य का कथन : प्रभास, पुष्कर, गया , नैमिष तथा कुरुक्षेत्र नामक पांच धाराओं का स्नान से उत्पन्न मलिनता की निवृत्ति हेतु ब्रह्मा के समीप गमन, ब्रह्मा के आदेशानुसार बदरिकाश्रम में प्रवेश मात्र से पंच धाराओं का निर्मल होकर स्व - स्व स्थान को गमन का वर्णन ), ३.१.२८.४३ ( उर्वशी की खोज करते हुए पुरूरवा का कुरुक्षेत्र पहुंचना और कमलयुक्त सरोवर पर क्रीडा करती हुई उर्वशी को देखना, पुरूरवा - उर्वशी वृत्तान्त ), ५.३.२१.५ ( गङ्गा के कनखल में , सरस्वती के कुरुक्षेत्र में तथा नर्मदा के सर्वत्र पुण्या होने का उल्लेख ), ५.३.६०.७० ( सूर्य ग्रहण के समय नर्मदा तटस्थ रवि तीर्थ तथा कुरुक्षेत्र तीर्थ गमन से समान फल प्राप्ति का कथन ), ५.३.१३९.१० ( इन्द्रिय ग्राम के निरोधपूर्वक सोमतीर्थ में वास से उस - उस स्थान के कुरुक्षेत्र, नैमिष तथा पुष्कर तीर्थ हो जाने का उल्लेख ), ५.३.१९५.४ ( तीर्थों की आपेक्षिक श्रेष्ठता के संदर्भ में भुव/ भूमि पर कुरुक्षेत्र के परमोत्कृष्ट होने का उल्लेख ), स्कन्द ६.८.८ ( विश्वामित्र का कुरुक्षेत्र का परित्याग करके हाटकेश्वर तीर्थ में निवास का उल्लेख ), ६.१९०.१२ ( पृथ्वी पर नैमिष, अन्तरिक्ष में पुष्कर तथा त्रिलोकी में कुरुक्षेत्र तीर्थ की विशेष रूप से व्यवस्थिति का उल्लेख ), ७.१.१०.९(कुरुक्षेत्र तीर्थ का वर्गीकरण वायु),  लक्ष्मीनारायण ३.७३.८२ (विष्णु का कुरु द्वारा कृष्ट क्षेत्र को कुरुक्षेत्र नाम से अभिहित करना तथा कुरुक्षेत्र के रम्य, पापतापनाशक व मोक्षप्रदायक होने का उल्लेख ), कथासरित् १२.५.२१८ ( कुरुक्षेत्र-निवासी राजा मलयप्रभ के पुत्र इन्दुप्रभ द्वारा तप से कल्पवृक्ष बनकर प्रजा को सन्तुष्ट रखने की कथा ) । kurukshetra

 

कुरुजाङ्गल ब्रह्माण्ड २३.१३.१०० ( श्राद्ध हेतु कुरुजाङ्गल की प्रशस्तता का उल्लेख ), भागवत १.१०.३४ ( द्वारका जाते हुए श्रीकृष्ण का कुरुजाङ्गल प्रभृति देशों से होते हुए पश्चिम आनर्त्त देश में पहुंचने का उल्लेख ), १.१६.१० ( राजा परीक्षित् के कुरुजाङ्गल देश में सम्राट् के रूप में निवास करते हुए कलियुग के प्रवेश का उल्लेख ), ३.१.२४ (  विदुर द्वारा कुरुजाङ्गल आदि प्रदेशों का अतिक्रमण करके यमुना तट पर उद्धव का दर्शन करने का उल्लेख ), मत्स्य २१.९, २८ ( कुरुक्षेत्र हेतु प्रयुक्त शब्द ), वामन ९०.१७ ( कुरुजाङ्गल तीर्थ में विष्णु का स्थाणु नाम से वास ), वायु ७७.९३ ( श्राद्ध हेतु कुरुजाङ्गल की प्रशस्तता का उल्लेख ) । kurujaangala/ kurujangala

 

कुरुजित् विष्णु ४.५.३१ ( कृति - पौत्र, अञ्जन - पुत्र, अरिष्टनेमि - पिता, मैथिल वंश ) ।

 

कुरुपाञ्चाल महाभारत कर्ण ४५.३५( कुरुपाञ्चाल निवासियों की अर्थोक्त विशेषता का उल्लेख )

 

कुर्व स्कन्द २.१.१०.८६ ( कुर्व ग्रामस्थ भीम नामक कुलाल को भगवद् भक्ति से वैकुण्ठ प्राप्ति का कथन ) ।

 

कुल अग्नि ३२५.४ ( गोचर का अपर नाम, कुल के शिव, शिखा, ज्योति तथा सवित्र नामक चार भेदों में प्रत्येक भेद के ४ -४ उपभेदों का कथन ), पद्म १.१९.३२५ ( शील गुण द्वारा कुल को धारण किए जाने का उल्लेख ), ब्रह्माण्ड २.३.१४.४१ ( कुलधर्म का अतिक्रमण करने वालों द्वारा प्रदत्त श्राद्ध दानवों को प्राप्त होने का उल्लेख ), वराह ८३.१ ( नैषध के पश्चिम में विशाखादि सप्त कुलपर्वतों का नामोल्लेख ), स्कन्द ७.१.१६२ (अष्टकुलेश्वर लिङ्ग के संक्षिप्त माहात्म्य का कथन ), लक्ष्मीनारायण २.१४०.७४ (स्वकुल : प्रासादों के वर्णनान्तर्गत स्वकुल नामक प्रासाद के स्वरूप का निरूपण ), कथासरित् १०.४.३ ( कुलधर : विपत्तियों से कभी बाधित न होने वाली सन्तुलित बुद्धि को दर्शाने हेतु राजा कुलधर के सेवक शूरवर्मा की कथा ) ; द्र. गोकुल । kula

 

कुल - पद्म ७.१९.७४( कुलभद्र ब्राह्मण द्वारा भूमि पर बिखेरे गए नैवेद्य के पक्षी द्वारा भक्षण का वृत्तान्त ), ब्रह्माण्ड ३.४.२५.९७ ( ललिता - सहचरी कुलसुन्दरी द्वारा चण्डबाहु कुक्कुर के वध का उल्लेख ), भागवत १०.५२.४२ ( कृष्ण को भेजे गए संदेश में रुक्मिणी का विवाह से पहले दिन कुलदेवी के दर्शन हेतु गिरिजा देवी के मन्दिर में जाने का कथन ), मत्स्य ११४.१७ ( भारतवर्ष में महेन्द्र, मलय, सह्य, शुक्तिमान् , ऋक्षवान्, विन्ध्याचल व पारियात्र नामक सप्त कुलपर्वतों का उल्लेख ), वा.रामायण ७.५९ प्रक्षिप्त सर्ग २.३८ ( कुलपति : कुत्ते को चोट पहुंचाने के फलस्वरूप राम द्वारा कुत्ते की इच्छानुसार सर्वार्थसिद्ध नामक भिक्षुक को कालञ्जर के मठ का कुलपति बनाने का वर्णन ), लक्ष्मीनारायण २.२१५.१३ ( कुलम्बायन राष्ट्र में विगोष्ठा नगरी - पति कालीमण्डलीन द्वारा श्री हरि की पूजा का उल्लेख ) ।

 

कुलक भागवत ५.२०.१६ ( कुश द्वीपवासी कुशल, कोविद, अभियुक्त और कुलक वर्ण के पुरुषों द्वारा अग्निस्वरूप भगवान् के पूजन का उल्लेख ), मत्स्य २७१.१३ ( क्षुद्रक - पुत्र, सुरथ - पिता, कलियुगीय इक्ष्वाकुवंशीय बृहद्बल वंश ) ।

 

कुलट ब्रह्मवैवर्त्त २.३१.४ ( वेश्या के कुलटा आदि प्रकारों का कथन ), २.३१.२७ ( कुलटा द्वारा देहचूर्णक नरक प्राप्ति का उल्लेख ), भविष्य ३.२.२१.३ ( विष्णुशर्मा ब्राह्मण के चार पुत्रों में से एक , शिव की आराधना से संजीवनी विद्या की प्राप्ति, विद्या प्रयोग से पञ्जर मात्र व्याघ्र को जीवित करना, व्याघ्र द्वारा विप्रों के भक्षण का वृत्तान्त ) ।

 

कुलाचल भागवत ३.१३.४१ ( शिखरों पर व्याप्त मेघमाला से कुलाचल / कुलपर्वत की शोभा के समान दांत पर रखी हुई पृथ्वी के साथ वराह विग्रह की शोभा का उल्लेख ), ३.२३.३९( कर्दम का देवहूति के साथ कुलाचलेन्द्र / मेरुपर्वत की घाटियों में विहार करने का उल्लेख ), ४.२८.३३ ( राजर्षि मलयध्वज का कृष्णोपासना हेतु कुलाचल / मलयपर्वत पर गमन का उल्लेख ), ८.४.८ ( राजा इन्द्रद्युम्न द्वारा कुलाचल / मलयपर्वत पर भगवद् आराधना करने का उल्लेख ) । kulaachala

 

कुलालचक्र गरुड ३.२८.१२९(कुलाल देव पूजा की व्यर्थता), मत्स्य १२४.६९ ( सूर्य व चन्द्रमा की गतियों के निदर्शन हेतु कुलालचक्र / कुम्हार के चाक से साम्य ), १२५.५२ ( सूर्य रथ के मण्डलाकार भ्रमण में कुलालचक्र से साम्य ),वायु १४.३८ ( जीव के कुलालचक्र सदृश संसार में भ्रमण का उल्लेख ), ५०.१४१, १४४, १५० ( सूर्य गति के निदर्शन हेतु कुलाल चक्र से साम्य ), विष्णु २.८.२९ ( सूर्य गति में कुलालचक्र से साम्य का उल्लेख ), लक्ष्मीनारायण ४.४६.४३ ( कथा श्रवण, सेवा तथा भक्ति आदि के प्रभाव से नरराज नामक कुलाल / कुम्भकार को कुटुम्ब सहित मोक्ष प्राप्ति का वर्णन ) । kulaalachakra

 

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