Puraanic contexts of words like Kritaghna, Kritamaalaa, Kritayuga, Kritavarma, Kritaveerya, Kritasthalaa etc. are given here.

Remarks on Kritaghna

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Comments on Kritavarmaa

कृतकृत्य ब्रह्माण्ड २.३.७.२४१ ( प्रधान वानरों में से एक ) ।

 

कृतघ्न पद्म ५.९८.५९ ( कृतघ्न, विदैव तथा अवैशाख नामक प्रेतों के धनशर्मा द्वारा उद्धार की कथा ), ब्रह्मवैवर्त्त २.३१.४७ ( कृतघ्न के गण्डक बनने का उल्लेख ), २.५१.३३ ( विभिन्न ऋषियों द्वारा सुयज्ञ नृप हेतु कृतघ्न के लक्षण, भेद तथा दोषादि का निरूपण ), महाभारत शान्ति १६८+ ( गौतम नामक पापी तथा कृतघ्न पुरुष के वृत्तान्त द्वारा कृतघ्न पुरुष के सदा त्याग का कथन ), २७१.१२ ( कृतघ्न के प्रजारहित होने का उल्लेख ; कृतघ्न का प्रायश्चित्त न होने का उल्लेख ), अनुशासन १२ ( कृतघ्न की गति व प्रायश्चित्त का कथन ), वा.रामायण ४.३४.१०( लक्ष्मण द्वारा सुग्रीव को कृतघ्नता के दोषों का कथन ), स्कन्द ६.१९.१५ ( राजा विदूरथ द्वारा गयाशिर में प्रदत्त श्राद्ध से कृतघ्न प्रेत की मुक्ति का वर्णन ), लक्ष्मीनारायण १.४४२.५० (कृतघ्नता :१६ प्रकार की कृतघ्नता से प्राप्त नरकों का कथन ), ४.२९.३९ ( विप्र - पत्नी आत्मशेमुषी द्वारा कुथली नामक बाला को कृतघ्नता - स्वरूप का वर्णन ) । kritaghna

Remarks on Kritaghna

 

कृतञ्जय ब्रह्माण्ड १.२.३५.१२१( १७वें द्वापर में कृतञ्जय के व्यास होने का उल्लेख ), ३.४.४.६३ (१७वें द्वापर के वेदव्यास कृतञ्जय द्वारा धनञ्जय से ब्रह्माण्ड पुराण सुनकर तृणंजय को सुनाने का उल्लेख ), भागवत ९.१२.१३ ( बर्हि - पुत्र, रणंजय - पिता, इक्ष्वाकु वंश ), लिङ्ग १.२४.७६ ( १७वें द्वापर के व्यास रूप में कृतञ्जय का उल्लेख ), वायु ९९.२८७ ( धर्मी - पुत्र, व्रात - पिता, तुर्वस्वादि वंश ), १०३.६२ ( पापनाशक तथा पुण्यप्रद वायु पुराण के उपदेश प्रदान की परम्परा में धनञ्जय द्वारा कृतञ्जय को तथा कृतञ्जय द्वारा तृणञ्जय को उपदेश प्रदान करने का उल्लेख ), विष्णु ४.२२.६ ( धर्मी -पुत्र, रणञ्जय - पिता, इक्ष्वाकु वंश ) ; द्र. देवकृतञ्जय । kritanjaya

 

कृतद्युति भागवत ६.१४.२८ ( राजा चित्रकेतु की ज्येष्ठा पत्नी कृतद्युति को अङ्गिरा ऋषि की कृपा से पुत्र प्राप्ति, सपत्नी - प्रदत्त विष से पुत्र के मरण का वृत्तान्त ) ।

 

कृतधर्मा ब्रह्माण्ड २.३.६८.११ ( संकृति - पुत्र ), वायु ९३.११ ( संकृति - पुत्र, चन्द्र वंश ), विष्णु ४.११.१० ( कृतधर्म : धनक के ४ पुत्रों में से एक, यदु वंश ) ।

 

कृतध्वज नारद १.४६.३७ (धर्मध्वज - पुत्र, अमितध्वज - भ्राता, केशिध्वज - पिता ), भागवत ९.१३.१९ ( धर्मध्वज - पुत्र, केशिध्वज - पिता, मितध्वज - अनुज, मैथिल वंश ), वामन ९०.५ ( कुरुक्षेत्र में विष्णु का कृतध्वज नाम से वास ), विष्णु ६.६.७ (धर्मध्वज - पुत्र, केशिध्वज - पिता, मितध्वज - अनुज, मैथिल वंश) । kritadhwaja

 

कृतप्राप्ति ब्रह्माण्ड ३.४.१.९० ( सुतार वर्ग के १० देवों में से एक ) ।

 

कृतबन्धु ब्रह्माण्ड १.२.३६.५० ( तामस मनु के ११ पुत्रों में कनिष्ठतम ) ।

 

कृतमाला अग्नि २.४ ( मत्स्यावतार के वर्णन में कृतमाला नदी में तर्पण करते समय वैवस्वत मनु की अञ्जलि में मत्स्य के प्राकट्य का उल्लेख ), ब्रह्माण्ड १.२.१६.३६, २.३.३५.१७ ( मलय पर्वत से नि:सृत नदियों में से एक ), भागवत ५.१९.१८ ( भारतवर्ष की मुख्य नदियों में से एक ), ८.२४.१२ ( कृतमाला नदी में जल से तर्पण करते समय राजा सत्यव्रत की अञ्जलि में मत्स्य का आगमन, भगवान के मत्स्यावतार की कथा ), १०.७९.१६ ( तीर्थयात्रा प्रसंग में बलराम का कृतमाला व ताम्रपर्णी नदियों में स्नान कर मलय पर्वत पर गमन का उल्लेख ), ११.५.३९ ( कृतमाला प्रभृति नदियों के जलपान से अन्त:करण की शुद्धि का उल्लेख ), मत्स्य ११४.३० ( मलय पर्वत से नि:सृत नदियों में से एक ), वायु ४५.१०५ ( मलय पर्वत से नि:सृत नदियों में से एक ), विष्णु २.३.१३ ( वही) । kritamaalaa

 

कृतयुग ब्रह्माण्ड १.२.१६.६९ ( चार युगों में प्रथम ), १.२.२९.२४ ( कृतयुग का प्रमाण : ४ सहस्र दिव्य वर्ष ), २.३.७४.२२५ ( चन्द्र, सूर्य, तिष्य तथा बृहस्पति के एक राशि में होने पर कृतयुग के प्रारम्भ होने का उल्लेख ), भविष्य ४.१२२.१ ( कृतयुग का ब्राह्मयुग, त्रेता का क्षत्रिययुग, द्वापर का वैश्य युग तथा कलियुग का शूद्र युग के रूप में उल्लेख ), भागवत ९.१०.५२ ( राम के राज्य में त्रेतायुग के कृतयुग सदृश होने का उल्लेख ), ११.५.२१( कृतयुग आदि चारों युगों में भगवान् के भिन्न - भिन्न रंगों, नामों, आकृतियों तथा पूजा विधियों का कथन ), ११.१७.१० ( सत्य युग में प्रजा के जन्म से ही कृतकृत्य होने के कारण इस युग का कृतयुग नामोल्लेख ), १२.३.५२ ( कृतयुग में ध्यान मात्र से विष्णु की उपासना का उल्लेख ), मत्स्य १.३४ ( मत्स्यरूप धारी विष्णु द्वारा वैवस्वत मनु को कृतयुग के प्रारम्भ में नरेश के रूप में मन्वन्तराधिपति होने का कथन ), १४२.१७ ( चार युगों में से प्रथम कृतयुग का परिमाण ४ हजार दिव्य वर्षों का होने, चार सौ दिव्य वर्षों की उसकी संध्या तथा चार सौ दिव्य वर्षों के सन्ध्यांश के होने का कथन ), १४२.२४ ( मानुष वर्ष के अनुसार कृतयुग का परिमाण १७ लाख २८ हजार वर्ष होने का कथन ), १४४.८७ ( कलियुग सन्ध्यांश के व्यतीत हो जाने पर शेष प्रजा से कृतयुग के प्रारम्भ का कथन ), १४५.७ ( कृतयुग में देव , असुर, मनुष्य यक्ष, गन्धर्व तथा राक्षसों के शरीरों के विस्तार तथा ऊंचाई में समान होने का उल्लेख ), १६५.१ ( कृतयुग की व्यवस्था का कथन ), वायु ५७.२२ ( चार युगों में से प्रथम ), ५७.३७ ( कृतयुग का प्रमाण ४ सहस्र दिव्य वर्ष ), ५८.१०३ ( कृतयुग के प्रवृत्त हो जाने पर कलियुग की शेष प्रजाओं से ही कृतयुग की प्रजाओं की उत्पत्ति का उल्लेख ), ७८.३६ ( कृतयुग का ब्राह्मण युग, त्रेता का क्षत्रिय युग, द्वापर का वैश्य युग तथा कलियुग का शूद्रयुग के रूप में उल्लेख ), विष्णु ४.२४.१०२ ( चन्द्र, सूर्य, तिष्य तथा बृहस्पति के एक राशि में होने पर कृतयुग के प्रारम्भ का उल्लेख ), स्कन्द ७.१.१३.९ ( हिरण्यगर्भ की कृतयुग में सूर्य, त्रेता में सविता, द्वापर में भास्कर तथा कलियुग में अर्कस्थल नाम से प्रसिद्धि ), ७.१.७४.७ ( शतकल्पेश्वर लिङ्ग की ही कृतयुग में भैरवेश्वर नाम से प्रसिद्धि का उल्लेख ) । kritayuga

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कृतरथ विष्णु ४.५.२७ ( प्रतिक - पुत्र, देवमीढ - पिता, जनक वंश ) ।

 

कृतरात विष्णु ४.५.२७ ( महाधृति - पुत्र, महारोमा - पिता, जनक वंश ) ।

 

 कृतलक्षण मत्स्य ४५.२ ( माद्री व वृष्णि के पांच पुत्रों में से एक, वृष्णि वंश ) ।

 

कृतवर्मा गर्ग १.५.२४ ( कृतवर्मा के वरुण का अंश होने का उल्लेख ), ७.२०.३४ ( प्रद्युम्न व कौरवों के युद्ध में प्रद्युम्न - सेनानी कृतवर्मा का भूरिश्रवा से युद्ध ), ७.२४.१५ ( यादवों व यक्षों के युद्ध में कृतवर्मा द्वारा नलकूबर को पराजित करने का उल्लेख ), १०.४९.१९ ( यादवों व कौरवों के युद्ध में अनिरुद्ध - सेनानी कृतवर्मा का भूरि से युद्ध ), देवीभागवत ४.२२.३७ ( देवों के अंश वर्णन में कृतवर्मा के मरुद्गण का अंश होने का उल्लेख ), ब्रह्माण्ड २.३.६९.८ ( कनक के चार पुत्रों में से एक ), २.३.७१.१४० ( हृदीक के दस पुत्रों में से एक ), भविष्य ३.३.२६.८६ ( कृतवर्मा के अंशावतरण रूप अभय का नृहर द्वारा वध हो जाने पर कृतवर्मा में ही विलीन हो जाने का उल्लेख ), भागवत १.१४.२८ ( युधिष्ठिर द्वारा द्वारका से लौटकर आए अर्जुन से हृदीक कृतवर्मा प्रभृति वृष्णिवंशियों की कुशलता की पृच्छा ), ९.२३.२३ ( धनक के चार पुत्रों में से एक, यदु वंश ), ९.२४.२७ ( हृदीक के तीन पुत्रों में से एक, वृष्णि वंश ), १०.६१.२४ ( कृष्ण व रुक्मिणी - कन्या चारुमती का कृतवर्मा के पुत्र बली से विवाह होने का उल्लेख ), १०.८२.७ ( सूर्य ग्रहण के अवसर पर यदुवंशियों के कुरुक्षेत्र चले जाने पर अनिरुद्ध तथा कृतवर्मा के नगर रक्षा हेतु द्वारका में ही निवास का उल्लेख ), मत्स्य ४३.१३ ( कनक के चार पुत्रों में से एक, यदु वंश ), ४४.८१( हृदीक के दस पुत्रों में से एक, अन्धक वंश ), वायु ९४.८ ( धनक के चार पुत्रों में से एक ), ९६.१३९ (हृदीक के तीन पुत्रों में से एक ), विष्णु ४.१३.६५ ( कृतवर्मा द्वारा सत्राजित् से उसकी कन्या सत्यभामा को मांगना, सत्राजित् के न देने पर कृतवर्मा के वैरभाव को प्राप्त होने का कथन ), ४.१४.२४ ( हृदीक के तीन पुत्रों में से एक ), ५.३७.४६ ( यादवों के गृहयुद्ध में कृतवर्मा की मृत्यु ), स्कन्द ३.१.५.७७ ( अलम्बुसा नामक अप्सरा का अयोध्या महानगरी के राजा कृतवर्मा की पुत्री मृगावती के रूप में जन्म लेने का उल्लेख ), कथासरित् २.१.२९ ( इन्द्र के शाप से अलम्बुषा नामक अप्सरा का अयोध्याराज कृतवर्मा की पुत्री मृगावती के रूप में जन्म, सहस्रानीक के साथ मृगावती के विवाह हेतु कृतवर्मा की स्वीकृति ) । kritavarmaa /kritvarma

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कृतवाक् मत्स्य १४५.१०१( कृतवाच : तैंतीस मन्त्रकृत आङ्गिरसों में से एक ), लक्ष्मीनारायण १.१५७.१२१( कृतवाक् नामक विप्रर्षि के रैवत - पुत्र ककुद्मी के रूप में जन्म का कथन ) । kritavaak

 

कृतवीर्य गणेश १.५८.९ ( पुत्र - हीन कृतवीर्य का तप हेतु वन गमन, नरक में स्थित कृतवीर्य के पिता द्वारा ब्रह्मा से पुत्र प्राप्ति उपाय की पृच्छा ), १.५९.९ ( कृतवीर्य के पूर्व जन्म की कथा : साम नामक अन्त्यज द्वारा अन्त समय में गणेश नाम लेने से कृतवीर्य राजा बनना ), १.६८.१ ( पुत्र की इच्छा वाले राजा कृतवीर्य के स्वप्न में पिता रूप धारी गणेश द्वारा दर्शन, पुस्तक प्रदान करना व संकष्ट चतुर्थी व्रत का निर्देश ), १.७२.२ ( गणेश की कृपा से कृतवीर्य की रानी से उत्पन्न पुत्र का हस्त - पाद रहित होना ), ब्रह्माण्ड २.३.६९.८ ( कनक - पुत्र, कार्तवीर्य - पिता ), भविष्य ४.५२.७ ( हैहयराज कृतवीर्य द्वारा पुत्रायुष्य हेतु सम्पन्न स्नपन सप्तमी व्रत का वर्णन ), ४.१०६.११ ( हैहयराज, कार्तवीर्य - पिता, शीलधना - पति, मैत्रेयी - निर्दिष्ट अनन्त व्रत के प्रभाव से कृतवीर्य व शीलधना को कार्तवीर्य अर्जुन नामक पुत्र की प्राप्ति ), भागवत ९.२३.२३ ( धनक - पुत्र, कार्त्तवीर्य - पिता, यदुवंश ), मत्स्य ४३.१३ ( कनक के चार पुत्रों में से एक, कार्त्तवीर्य - पिता, यदु वंश ), ६८.६ ( वाराह कल्प के २६ वें कृतयुग में हैहयवंशीय कृतवीर्य नृपति के पूछने पर भगवान् सूर्य द्वारा सप्तमी स्नपन व्रत का वर्णन ), वायु ६८.३८ ( प्रवाही से उत्पन्न दस देवगन्धर्वों में से एक ), ९४.८ ( कनक - पुत्र, कार्त्तवीर्य - पिता ), विष्णु ४.११.१० ( धनक - पुत्र, कार्त्तवीर्य - पिता, यदु वंश ) । kritaveerya/ kritvirya

 

कृतशर्मा वायु ८८.१८१ ( ऐडिविड - पुत्र, शतरथ - पौत्र, विश्वमहत् - पिता, इक्ष्वाकु वंश ) ।

 

कृतशल्या लक्ष्मीनारायण ३.२३१.८२ ( चम्बावती नगरवासी तारकादर्श नामक जल्लाद तथा तत्पत्नी  कृतशल्या द्वारा हरिभक्ति से अभ्युदय व मोक्ष प्राप्ति का वर्णन ) ।

 

कृतशौच मत्स्य १३.४५ ( कृतशौच नामक पवित्र पीठ स्थान में सती देवी के सिंहिका रूप से विराजित होने का उल्लेख ), १७९.८७ ( मातृगण के साथ भगवान् नृसिंह के अन्तर्हित होने पर उस स्थान की कृतशौच तीर्थ नाम से प्रसिद्धि का उल्लेख ), वामन ९०.५ ( कृतशौच तीर्थ में विष्णु का नृसिंह नाम से वास ), स्कन्द ५.३.१९८.८२ ( कृतशौच तीर्थ में उमा की सिंहिका नाम से स्थिति का उल्लेख ) । kritashaucha

 

कृतस्थला ब्रह्माण्ड २.३.७.१५ ( मेनकादि ग्यारह अप्सराओं में से एक ), ३.४.३३.१९ ( गोमेदक महाशाला के अन्दर कृतस्थला प्रभृति अप्सराओं का गन्धर्वों के साथ ललिता देवी का ध्यान तथा अर्चन करते हुए निवास का कथन ), भागवत १२.११.३३ ( कृतस्थली : चैत्र मास में धाता नामक सूर्य के गणों में कृतस्थली अप्सरा, हेति राक्षस, वासुकी सर्प आदि का उल्लेख ), विष्णुधर्मोत्तर १.१९७.९ ( यक्ष - भार्या, रजतनाभ - माता ) । kritasthalaa

 

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