Puraanic contexts of words like Krishaashva, Krishi/agriculture, Krishna etc. are given here.

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Krishna birth and Rohini constellation

कृशाश्व देवीभागवत ७.८.३८ ( बर्हणाश्व - पुत्र, प्रसेनजित् - पिता ), पद्म १.६.१४ ( दक्ष प्रजापति द्वारा कृशाश्व को दो कन्याएं प्रदान करने का उल्लेख ), १.४०.८७ ( साध्या द्वारा उत्पन्न साध्यगणों में से एक ), ब्रह्माण्ड १.२३३.१३ ( एक चरकाध्वर्यु ), १.२.३६.५० ( चतुर्थ तामस मनु का एक पुत्र ), १.२.३७.४६ ( दक्ष द्वारा स्वकन्या को कृशाश्व को प्रदान करने का उल्लेख ), २.३.६१.१५ ( सहदेव - पुत्र, सोमदत्त -पिता ), २.३.६३.६५ ( संहताश्व - पुत्र, धुन्धु वंश ), भागवत ६.६.२० ( दक्ष प्रजापति की दो कन्याओं अर्चि और धिषणा के पति, धूम्रकेश, वेदशिरा, देवल, वयुन और मनु के पिता ), ९.६.२५ ( बर्हणाश्व - पुत्र, सेनजित् - पिता, इक्ष्वाकु वंश ), मत्स्य ५.१४,१४६.१७ (  प्रजापति दक्ष द्वारा दो कन्याओं को कृशाश्व को प्रदान करने का उल्लेख ), ६.६ ( महर्षि कृशाश्व के पुत्रों के देवप्रहरण नाम से विख्यात होने का उल्लेख ), वायु ६३.४२ ( दक्ष द्वारा एक कन्या को कृशाश्व को प्रदान करने का उल्लेख ), ६६.७९ ( देवर्षि कृशाश्व के पुत्रगण के देवप्रहरण नाम से विख्यात होने का उल्लेख ), ८६.२० ( सहदेव - पुत्र, सोमदत्त - पिता, वैवस्वत मनु वंश ), विष्णु १.१५.१०४ ( दक्ष प्रजापति द्वारा दो कन्याओं को कृशाश्व को प्रदान करने का उल्लेख ), १.१५.१३७ ( देवर्षि कृशाश्व के पुत्रों के देवप्रहरण नाम से प्रथित होने का उल्लेख ), ४.१.५५ ( सहदेव - पुत्र, सोमदत्त - पिता ), ४.२.४६ ( अमिताश्व - पुत्र, प्रसेनजित् - पिता ), हरिवंश १.३.६५ ( राजर्षि कृशाश्व से प्रत्यङ्गिरस ऋचाओं तथा देव - आयुधों के प्राकट्य का उल्लेख ), वा.रामायण १.२१.१३ ( कृशाश्व व दक्ष - पुत्रियों जया व सुप्रभा के अस्त्र - शस्त्र रूप १०० पुत्रों को विश्वामित्र को प्रदान करने का कथन ) । krishaashva

 

कृषक लक्ष्मीनारायण १.२०४.७७ ( कृष्ण की कृषक रूप में व्याख्या ), २.१६३.२ ( द्युविश्राम नामक भगवद्भक्त कृषक के सिंह प्रधर्षित गोधन की श्रीकृष्ण द्वारा रक्षा का वर्णन ), २.२७०.३ ( कृष्ण द्वारा भगवद्भक्त देवानीक नामक कृषक की भीषण जलवृष्टि से रक्षा ), ३.८९.६१ ( विश्रामगुप्त नामक दरिद्र कृषक का धन पाकर अशान्त होने व धन त्याग कर सुखी होने का वृत्तान्त ) । krishaka

 

कृषि अग्नि १२१.४६ ( कृषि कार्य हेतु नक्षत्र विचार ), गर्ग ३.६.२१ ( कृषक द्वारा बीजों की कृषि के समान कृष्ण द्वारा मुक्ता कणों की कृषि करने का उल्लेख ), पद्म २.९७.५० ( मनुष्य द्वारा करणीय आध्यात्मिक कृषि का कथन ), ६.१८५.७५ ( कृषीवल :पथिक की गृध्र से रक्षा में असफलता पर कृषीवल का शाप से राक्षस बनना , गीता के ग्यारहवें अध्याय श्रवण से मुक्त की कथा ), भविष्य ४.३.३३ (द्विज द्वारा कृषि कार्य में दोष, विष्णु प्रोक्त ), वराह ७१.१२( गौतम द्वारा वर रूप में सस्य पंक्ति प्राप्ति का कथन ), वामन २२.२५ ( राजा कुरु द्वारा द्वैतवन में तप, सत्य, क्षमा, दया, शौच, दान, योग तथा ब्रह्मचर्य रूप धर्म के अष्टाङ्गों की कृषि करने का वृत्तान्त ), विष्णुधर्मोत्तर २.८२.१३ ( कृषि आरम्भ के लिए प्रशस्त तथा वर्जनीय नक्षत्रों का कथन ), ३.११८.१२( कृषि कर्म की प्रसिद्धि के लिए बलभद्र की पूजा का निर्देश ), ३.११९.६ ( कृषि कर्म आरम्भ में वराह अथवा संकर्षण की पूजा का उल्लेख ), स्कन्द १.२.४५.२५ ( कृषि के दोष देखकर नन्दभद्र वैश्य द्वारा कृषि का त्याग ), योगवासिष्ठ ६.२.४४.३( चित्तभूमि में समाधि बीज द्वारा कृषि का वर्णन ), लक्ष्मीनारायण १.२०४.१०९ ( कृष्ण की निरुक्तियों के संदर्भ में कृषि के विभिन्न अर्थ ), २.३०.८५ ( राजा कुरु द्वारा वन में तप, सत्य, शौच, दान, दया, क्षमा, योग तथा शील वृत्ति की कृषि का उल्लेख ), २.२०९.५१ ( वैश्य धर्म के रूप में कृषि कर्म का उल्लेख ), ४.१०१.९४ ( कृषीश्वरी : श्रीकृष्णनारायण की पत्नी दुर्गा की पुत्री ) ; द्र. सुकृष । krishi


 

कृष्टि लक्ष्मीनारायण १.३८२.१८२(मरीचि की ४ कन्याओं में से एक)।

 

कृष्ण अग्नि १२ ( श्रीकृष्ण के अवतार तथा विविध लीलाओं का संक्षिप्त वर्णन ), ११५.५७( प्रेतों में सित के जनक, रक्त के पितामह तथा कृष्ण के प्रपितामह होने का उल्लेख ), १८३ ( भाद्रपद मास के कृष्णपक्ष की रोहिणी नक्षत्र से युक्त अष्टमी तिथि में करणीय कृष्णजन्माष्टमी व्रत की विधि व माहात्म्य का वर्णन ), २७६ ( कृष्ण - पत्नियों व पुत्रों का संक्षिप्त नाम निर्देश ), कूर्म १.२५ ( जाम्बवती पत्नी से पुत्र प्राप्ति हेतु कृष्ण द्वारा उपमन्यु आश्रम में तपश्चरण, गिरिजा से वर प्राप्ति का वर्णन ), गरुड १.२८ ( गोपाल पूजा विधि का वर्णन ), १.१४४ ( कृष्ण चरित्र का वर्णन ), ३.२९.६२(पुत्रादि चुम्बन काल में वेणुहस्त कृष्ण के ध्यान का निर्देश), गर्ग १.१२ ( कृष्ण जन्म पर नन्द गृह में उत्सव ), १.१५( निरुक्ति, गर्ग द्वारा नामकरण ), १.१८ ( मृदा भक्षण प्रसंग में यशोदा द्वारा मुख में ब्रह्माण्ड का दर्शन ), २.१७+ ( गोप देवी रूप में राधा के प्रेम की परीक्षा ), २.२२.१७ ( हंस मुनि की पौण्ड्र असुर से रक्षा ), ३.३ ( गोवर्धन धारण द्वारा गोपों की वृष्टि से रक्षा ), ३.५.९ ( नन्द व गर्ग प्रोक्त कृष्ण निरुक्ति ), ३.९ ( कृष्ण के अङ्गों से विभिन्न सृष्टियां ), ४.५.१८( कृष्ण के जन्म का काल ), ४.२१ ( याज्ञिक विप्र - पत्नियों को दर्शन ), ४.२२ ( गोप - गोपियों को वैकुण्ठ धाम का दर्शन कराना ), ५.९ ( गुरु - पुत्र को यम लोक से लाने का उद्योग, पञ्चजन दैत्य का वध ), ५.१९  ( व्रज में प्रत्यागमन पर कृष्ण के स्वागत का वर्णन ), ५.२२ ( नारद - तुम्बुरु से संगीत सुनकर ब्रह्मद्रव रूप होना ), ६.४ ( रुक्मिणी से विवाह की कथा ), ६.६ ( रुक्मिणी का हरण ), ६.८.७ ( जाम्बवती, मित्रविन्दा, सत्या, भद्रा, लक्ष्मणा आदि से विवाह की कथा ), ८.६+ ( कृष्ण की गोकुल, मथुरा व द्वारका में लीला का संक्षिप्त वर्णन ), १०.२+ ( कृष्ण लीला का वर्णन ), १०.४१+ ( राधा से मिलन व रास, उग्रसेन के अश्वमेध का प्रकरण ), १०.४२.४२( कृष्ण स्वरूप का कथन ), १०.४५ ( गोपियों द्वारा स्तुति, आविर्भाव ), १०.५० ( कौरव वीरों द्वारा स्तुति ), १०.५९ ( कृष्ण सहस्रनाम :गर्ग - उग्रसेन संवाद प्रसंग ), १०.६० ( विभिन्न रूपों में परम धाम गमन ), १०.६१.४ ( कृष्ण के श्याम वर्ण का रहस्य ), देवीभागवत ४.२३ ( कृष्ण अवतार की कथा ), ९.२.२४ ( शब्द निरुक्ति के अनुसार कृष्ण के भक्ति दास्य प्रदाता व सर्वसृष्टा होने तथा कृष्णा शक्ति के साथ मिलकर सृष्टि कार्य करने का वर्णन ), नारद १.६६.९४( कृष्ण की शक्ति बुद्धि का उल्लेख ), १.८० ( कृष्ण सम्बन्धी मन्त्रों की अनुष्ठान विधि व विविध प्रयोग ), १.८०.४० ( कृष्ण व वृन्दावन के स्वरूप का चिन्तन  ; त्रिकालपूजन हेतु कृष्ण के ध्यान व अर्चन का स्वरूप तथा पूजा से प्राप्त फल ), १.८१ ( कृष्ण - मन्त्र - भेद निरूपण ), १.८२ ( राधा - कृष्ण युगल सहस्रनाम ), २.५५.४० (द्वादशाक्षर मन्त्र से कृष्ण पूजन का माहात्म्य तथा फल ), २.५८.४३ ( कृष्ण रूप ब्रह्म से ब्रह्माण्डोत्पत्ति का कथन ), २.५९ ( गोलोक में कृष्ण के स्वरूप का कथन ), पद्म १.२०.१११ ( कृष्ण व्रत का माहात्म्य व विधि ), ५.६९ (वृन्दावनादि षोडशदलात्मक श्रीकृष्ण क्रीडा किञ्जल्क /पद्म के कथनपूर्वक क्रीडा स्थान का  वर्णन, कृष्ण के सौन्दर्य का कथन ), ५.७० ( कृष्ण के पार्षद गणों का वर्णन, गोपीगण - मध्यवर्ती कृष्ण के स्वरूप का वर्णन ), ५.७०.६४(दक्षिण में कृष्ण वर्ण विष्णु की द्वारपाल रूप में स्थिति), ५.७२ ( कृष्ण की श्रेष्ठ सुन्दरियों का कथन ), ५.७४ ( अर्जुन का राधा स्वरूप दर्शन पूर्वक स्त्रीत्व प्राप्ति से श्रीकृष्ण संग का वर्णन ), ५.७७ ( कृष्ण तीर्थ, स्वरूप व गुण का वर्णन ), ५.८० ( कृष्णपद में चिह्न तथा विभिन्न मासों में अर्चना का वर्णन ), ५.८१( कृष्ण मन्त्रार्थ का वर्णन ), ५.८३ ( वृन्दावन में कृष्ण की दैनन्दिन लीला तथा राधा के साथ विलासादि का वर्णन ),  ६.८८ ( नारद का कृष्ण को कल्पवृक्ष - पुष्प उपहार स्वरूप प्रदान करना, कृष्ण का सत्यभामा को विस्मरण कर अन्य स्त्रियों को पुष्प प्रदान करना, रुष्ट सत्यभामा हेतु स्वर्ग से कल्पवृक्ष को लाना तथा सत्यभामा के गृह में आरोपण का वृत्तान्त ), ६.२४५ ( कृष्ण अवतार की कथा का वर्णन ),  ( अनिरुद्ध के विवाह प्रसंग में बाणासुर से संग्राम का वर्णन, शिव की पराजय, कृष्ण की स्तुति ), ६.२५२ ( कृष्ण के स्वधाम गमन का निरूपण ), ७.१२ ( फाल्गुन से लेकर वैशाख तक विभिन्न मासों में कृष्ण की पूजा विधि व माहात्म्य का वर्णन ), ब्रह्म १.७२.४३ ( कृष्ण जन्म वृत्तान्त, विष्णु का ही देवकी के गर्भ से कृष्ण रूप में प्राकट्य ), १.९३+ ( नराकसुर वध का वर्णन ), १.९४.२९ ( सत्यभामा का कृष्ण से पारिजात लाने का आग्रह, पारिजात प्राप्ति हेतु देवों से युद्ध, द्वारका में पारिजात के आरोपण का वर्णन ), १.१०२, १०३ ( कृष्ण कृपा से लुब्धक को स्वर्ग लोक प्राप्ति, कृष्ण का स्वर्गारोहण, आठों पटरानियों का अग्नि प्रवेश ), २.९१.५७( विष्णु के आहवनीय पर श्वेत, दक्षिणाग्नि पर श्याम व गार्हपत्य पर पीत वर्ण होने का उल्लेख ), ब्रह्मवैवर्त्त १.६.७१( कृष्ण द्वारा ब्रह्मा को सृष्टि हेतु आज्ञा देने का उल्लेख ), १.१८.९ ( मालावती प्रोक्त कृष्ण - स्तोत्र ), १.१९.३३ ( कृष्ण कवच में कृष्ण से प्राची दिशा की रक्षा की प्रार्थना ), १.३० ( कृष्ण के माहात्म्य का वर्णन ), २.२.२५ ( शब्द निरुक्ति द्वारा कृष्ण के भक्ति व दास्य प्रदायक तथा सर्वबीजस्वरूप होने का उल्लेख ), २.७.८५(कृष्ण के वैकुण्ठ में चतुर्भुज व गोलोक में द्विभुज होने का उल्लेख), २.१०.१४९(कृष्ण द्वारा सरस्वती को कौस्तुभ रत्न देने का उल्लेख), २.४९.५८(चतुर्भुज कृष्ण की पत्नियों महालक्ष्मी, सरस्वती आदि का कथन; द्विभुज कृष्ण की पत्नी राधा),  ३.७.१०९ ( पार्वती - कृत कृष्ण स्तोत्र का कथन ), ३.९.८ ( कृष्ण द्वारा पार्वती - पुत्र गणेश बनने का वृत्तान्त ), ३.३१ ( कृष्ण कवच का वर्णन ), ४.७ ( वसुदेव, देवकी व कंस का परस्पर वार्तालाप, कृष्ण जन्म आख्यान ), ४.९.५३ ( गोकुल में कृष्ण जन्मोत्सव का वर्णन ), ४.१२.१८ ( कवच में कृष्ण से चक्षुओं की रक्षा की प्रार्थना ), ४.१३ ( गर्ग मुनि - कृत कृष्ण के नामकरण व अन्नप्राशन संस्कार का वर्णन ), ४.१३.५७ ( कृष्ण नाम निरुक्ति ), ४.१९.१७ ( नागपत्नी सुरसा - कृत कृष्ण स्तुति तथा स्तोत्र का माहात्म्य ), ४.१९.७४ ( नागराज कालिय - कृत कृष्ण स्तोत्र तथा स्तोत्र माहात्म्य ), ४.१९.१७२ ( गोपों द्वारा दावानल से रक्षा हेतु कृष्ण की स्तुति तथा स्तोत्र माहात्म्य ), ४.७२ ( कृष्ण द्वारा कुब्जा का उद्धार, रजक मोक्ष, कंस वध, वसुदेव व देवकी के बन्धन व मोक्ष का वृत्तान्त ), ४.१२९ ( ब्रह्मा - कृत कृष्ण स्तुति  तथा कृष्ण के गोलोक गमन का वृत्तान्त ), ब्रह्माण्ड २.३.३१.३७ ( कार्य सिद्धि हेतु ब्रह्मा का परशुराम को शिव से कृष्ण मन्त्र प्राप्ति का परामर्श ) , २.३.३६.१० ( अगस्त्य द्वारा परशुराम को कृष्ण प्रेमामृत स्तोत्र तथा स्तोत्र माहात्म्य का कथन ), भविष्य १.७३.४० ( कृष्ण द्वारा साम्ब तथा १६ हजार रानियों को शाप प्रदान का उल्लेख ), ३.३.१.३२ ( कृष्ण का उदयसिंह रूप में जन्मोल्लेख ), ३.४.२५.८६ ( वैवस्वत मन्वन्तर के मध्य में कर्क राशि में कृष्ण के अवतरण का उल्लेख ), ४.५७ ( प्रत्येक मास की कृष्णाष्टमी में करणीय शिव व्रत का वर्णन ), भागवत १.८ ( उत्तरा के गर्भ की रक्षा के लिए कुन्ती द्वारा स्तुति ), १.९ ( भीष्म द्वारा मृत्यु से पूर्व कृष्ण की स्तुति ), १०.३ ( कृष्ण का प्राकट्य, पृथ्वी पर मंगल स्थिति ), १०.३ ( जन्म समय में वसुदेव व देवकी द्वारा स्तुति ), १०.९ ( उखल बन्धन, दाम का २ अङ्गुल ह्रस्व होना, यमलार्जुन का उद्धार ), १०.२१ ( वेणु संगीत की मधुरता का वर्णन ), १०.२६ ( कृष्ण की महिमा ), १०.२८ ( नन्द को वरुण से मुक्त कराना, गोपों को निज स्वरूप का दर्शन कराना ), १०.३५ ( गोपियों द्वारा कृष्ण के वैभव का वर्णन ), १०.३९ ( अक्रूर के साथ मथुरा गमन पर गोपियों की व्याकुलता ),१०.४०.१३ ( विराट रूप का न्यास ), १०.५० ( बलराम सहित जरासन्ध से युद्ध ), १०.५२ + ( रुक्मिणी हरण ), १०.५९ ( नरकासुर द्वारा कैद १६ सहस्र राजकुमारियों से विवाह ), १०.६१ ( कृष्ण के पुत्रों के नाम ), १०.६३ ( शिव से युद्ध ), १०.६९ ( विभिन्न रूपों में युगपद् उपस्थिति, नारद द्वारा दर्शन ), १०.७० ( नित्यचर्या का वर्णन ), १०.७१ ( युधिष्ठिर के राजसूय हेतु इन्द्रप्रस्थ आगमन ), १०.७३ ( जरासन्ध द्वारा बन्धित राजाओं द्वारा स्तुति ), १०.८४ ( मुनियों द्वारा स्तुति ), १०.८९ ( ब्राह्मण बालक की अर्जुन द्वारा प्राणरक्षा में असफलता पर स्वयं अनन्त से मिलना, प्राणरक्षा ), ११.६ ( देवों द्वारा कृष्ण से स्वधाम गमन की प्रार्थना ), ११.३० ( जरा द्वारा शर भेदन, परलोक गमन ), मत्स्य ४७ ( वसुदेव व देवकी - पुत्र, कंस भय से वसुदेव द्वारा कृष्ण को नन्दगोप के घर पहुंचाना, कृष्ण की भार्याओं व पुत्रों के नाम ), ५६ ( कृष्ण पक्ष की सभी अष्टमी तिथियों में करणीय शिव पूजन व व्रत की विधि तथा माहात्म्य ), १०१.५८ ( कृष्ण व्रत का संक्षिप्त माहात्म्य ), १७२.१( मनुष्यों में विष्णु के कृष्ण रूप की प्रधानता का उल्लेख ), लिङ्ग १.५०.१२ ( कृष्ण पर्वत पर गन्धर्वों के वास का उल्लेख ), १.६९.६४ ( कृष्ण के पुत्र, पत्नी तथा स्वर्ग गमन का वृत्तान्त ), वराह ४६ ( कृष्ण द्वादशी व्रत का माहात्म्य : द्वादशी व्रत के प्रभाव से अपुत्रवती देवकी का पुत्रवती होना ), वामन ६.२ ( ब्रह्मा के हृदय से प्रकट धर्म तथा दाक्षायणी के चार पुत्रों में से एक ), वायु २३.२३/१.२३.२२( ३२वें कल्प का नाम ; कृष्ण से श्वेत होने का कथन ), १.३९.५९( कृष्ण पर्वत पर गन्धर्वों के वास का उल्लेख ), ५०.२१( पाण्डुभौम नामक द्वितीय तल में कृष्ण प्रभृति असुरों के नगरों का उल्लेख ), ९६.१९४ ( परम प्रकाशमान् भगवान का ही योगेश्वर कृष्ण रूप में प्रादुर्भाव का उल्लेख ), ९६.२०१ ( जन्म समय में नक्षत्र, मुहूर्त आदि की स्थिति, वसुदेव द्वारा कृष्ण को नन्दगोप के घर पहुंचाने का वृत्तान्त ), ९६.२३३ ( कृष्ण की रुक्मिणी, सत्यभामा प्रभृति पटरानियों व उनके पुत्रों के नामों का कथन ), विष्णु ४.१३ ( स्यमन्तक मणि हरण के मिथ्या कलङ्क से मुक्ति की कथा ), ५.३ ( कृष्ण जन्म कालिक वृत्तान्त :गोकुल में स्थान्तरण ), ५.५( कृष्ण की बाललीला के अन्तर्गत पूतना वध का वृत्तान्त ), ५.१२ ( इन्द्र कोप से रक्षा हेतु कृष्ण द्वारा गोवर्धन धारण, इन्द्र द्वारा कृष्ण की स्तुति व अभिषेक ), ५.१९+ ( मथुरा में प्रवेश व विविध लीलाओं का वर्णन ), ५.२०.९४ ( कंस वध पर वसुदेव - कृत कृष्ण स्तुति ), ५.२१.१८ ( सान्दीपनि से विद्या ग्रहण, पञ्चजन असुर का वध ), ५.३७.६९ ( जरा व्याध द्वारा वेधन, परम धाम गमन ), विष्णुधर्मोत्तर २.८.२३( चतुष्कृष्ण पुरुष के लक्षण ), ३.४७.५( अज्ञान के कृष्ण व विद्या के शुक्ला होने का कथन ), शिव ५.१.७ ( पुत्र प्राप्ति हेतु कृष्ण का कैलास पर्वत पर गमन, कैलास पर तपोरत उपमन्यु ऋषि से कृष्ण का शिव - माहात्म्य के विषय में प्रश्न, उपमन्यु द्वारा शिव माहात्म्य का वर्णन ), ५.२ ( कृष्ण के प्रश्न करने पर उपमन्यु द्वारा शिवाराधना से कामनाओं की प्राप्ति करने वाले शिव भक्तों का वर्णन ), ५.१९.४१ ( गोलोक में सुशीला नामक गायों के पालक रूप में कृष्ण का उल्लेख ), ५.३३.१७ ( ७ प्रजापतियों में से एक ),   ७.२.१( उपमन्यु से कृष्ण को पाशुपत व्रत की प्राप्ति, तप से तुष्ट शिव से कृष्ण को साम्ब पुत्र की प्राप्ति का वर्णन ), स्कन्द २.२.१२.५० ( सुदर्शन चक्र द्वारा काशिराज के शिर छेदन का उल्लेख ), ३.१.२७.३२ ( कृष्ण द्वारा कंस के वध तथा नारद के कथनानुसार कोटि तीर्थ में स्नान से मातुल वध दोष से निवृत्ति का वृत्तान्त ), ४.२.६१.२३२ ( कृष्ण मूर्ति के शङ्ख, गदा, पद्म तथा चक्र से युक्त होने का उल्लेख ), ५.१.२७ ( सान्दीपनि - पुत्र प्राप्ति हेतु कृष्ण द्वारा ग्राह रूपी पञ्चजन दैत्य का वध, शङ्ख प्राप्ति, वरुण से रथ प्राप्ति, यम से युद्ध तथा गुरु - पुत्र की प्राप्ति का वृत्तान्त ), ५.१.३३ ( उज्जयिनी में कृष्ण द्वारा केशवादित्य की स्थापना तथा १०८ नाम स्तोत्र पठन ), ५.१.४१.१८ ( कृष्ण शब्द की निरुक्ति : चराचर जगत का विलेखन ), ५.३.४८.१५ (शची हरण प्रसंग में अन्धक द्वारा कृष्ण की स्तुति ), ५.३.१३२.११ ( कृष्ण को एक बार प्रणाम से १० अश्वमेधों के तुल्य फल प्राप्ति का कथन ), ५.३.१९२.१० ( धर्म व साध्या के ४ पुत्रों में से एक ), ६.२१३.९१( कृष्ण से जानुयुगल की रक्षा की प्रार्थना ), ७.१.११८.११ ( हंस रूप कृष्ण की १६  कलाओं रूपी गोपियों का नामोल्लेख ), ७.१.२४० ( कृष्ण के देहत्याग के स्थान पर पूजन से स्वर्ग प्राप्ति का उल्लेख ), ७.३.३४ ( कृष्ण तीर्थ के निर्माण के हेतु का कथन तथा ब्रह्मा - विष्णु की लिङ्ग के अन्त का दर्शन करने की स्पर्धा की कथा ), ७.४.२ ( कृष्ण और रुक्मिणी द्वारा रथ का वाहन बनकर दुर्वासा ऋषि को द्वारका में लाने की कथा ), ७.४.१७ ( कृष्णपूजा विधि के अन्तर्गत कृष्णपुरी के द्वारपालों व क्षेत्रपालों के पूजन का कथन ), ७.४.२१.१०  ( विभिन्न मासों व तिथियों में कृष्ण पूजा का फल ), ७.४.२३ ( कलियुग में कृष्ण कथा के श्रवण, पठन से यमलोक गमन से मुक्ति तथा कृष्ण पूजा के माहात्म्य का वर्णन ), हरिवंश २.४.१२ ( अभिजित् मुहूर्त में देवकी के गर्भ से कृष्ण का प्राकट्य ), २.६ ( शकट भङ्ग तथा पूतना वध रूप कृष्ण लीला का वर्णन ), २.७ ( यमलार्जुन भङ्ग रूप कृष्ण लीला का वर्णन ), २.११( कृष्ण की अङ्ग शोभा तथा कालियनाग के निग्रह का विचार ), २.१२ ( कृष्ण द्वारा कालिय नाग के दमन का वर्णन ), २.१९ ( इन्द्र द्वारा कृष्ण की स्तुति तथा गोविन्द पद पर  अभिषेक का वर्णन ), २.२४.६५ ( केशी  वध से केशव नाम प्राप्ति ), २.३९ ( मथुरा से पलायन का प्रसंग ), २.५० ( क्रथ कैशिक द्वारा कृष्ण को राज्य का समर्पण तथा कृष्ण के राजेन्द्र पद पर  अभिषेक का वर्णन ), २.६०.४० ( कृष्ण द्वारा रुक्मी की पराजय, रुक्मिणी आदि के साथ विवाह, कृष्ण - संततियों का वर्णन ), २.७४.२२ ( कृष्ण द्वारा बिल्वोदकेश्वर शिव की पूजा व स्तुति का वर्णन ), २.१०१ ( नारद द्वारा यादवों की सभा में कृष्ण के प्रभाव का वर्णन ), २.१०३ ( कृष्ण सन्तति का वर्णन ), २.११४ ( कृष्ण द्वारा अर्जुन को अपने यथार्थ स्वरूप का परिचय ), २.११५ ( कृष्ण के पराक्रमों का संक्षिप्त वर्णन ), ३.७३+ ( कृष्ण की कैलास यात्रा का प्रसंग ), ३.७७+ ( बदरिकाश्रम में कृष्ण का आगमन, ऋषियों द्वारा आतिथ्य-सत्कार, कृष्ण की समाधि का वर्णन ), ३.८४+ ( कृष्ण द्वारा कैलास पर तप, देवों सहित शिव का आगमन, कृष्ण द्वारा महादेव की स्तुति का वर्णन ), ३.८९ ( शङ्कर प्रोक्त कृष्ण महिमा का वर्णन ), ३.१००+ ( कृष्ण का द्वारका में आगमन, पौण्ड्रक से संवाद, कृष्ण व पौण्ड्रक का युद्ध, कृष्ण  द्वारा पौण्ड्रक के वध का वर्णन ), लक्ष्मीनारायण १.२०४.७७ ( कृष्ण की कृषक रूप में व्याख्या ), १.२०४.१०९ ( कृष्ण नाम की निरुक्तियां ), १.२६४.१४( कृष्ण की शक्ति सुलक्षणा का उल्लेख ), १.३८५.२(कृष्ण शब्द की निरुक्तियां), २.६.७ ( कृष्ण शब्द की निरुक्ति ), २.३६.७( कृष्ण द्वारा गुरु से प्राप्त विद्याओं के नाम ), २.६०.३१( कृष्ण द्वारा उदय राजा को विराट रूप के दर्शन, राजा द्वारा कृष्ण की स्तुति ), २.६८.७५ (  सभाजनों द्वारा कृष्ण के विराट व दिव्य रूप का दर्शन ), २.७९.१६( कृष्ण के मनोहर रूप का वर्णन ), २.१६५.३७ (२८ कन्याओं द्वारा कृष्ण की स्तुति ), २.२५२.१०५( दिवस में कृष्ण व रात्रि में हरि के भजन का उल्लेख ) , २.२६१.१४ (कृष्ण शब्द की निरुक्ति ), २.२९७.८२( विभिन्न पत्नियों के गृहों में कृष्ण द्वारा विभिन्न कृत्य सम्पन्न करने का वर्णन ), ३.१०८ ( सर्वबाधानाशक, सर्वेष्टप्रद कृष्ण सहस्रनाम स्तोत्र का कथन ), ३.१९० ( लुण्ठकों द्वारा त्रस्त सौराष्ट्र देशीय भक्तों की कृष्ण से रक्षार्थ प्रार्थना का वर्णन ), ३.१९१ ( विभिन्न रूपों में कृष्ण द्वारा भक्तों पर कृपा का वर्णन ), ३.२३५.३१ ( कृष्ण द्वारा रक्षित भक्तों के नामों का कथन ), ४.१०१( कृष्ण की १०८ पत्नियों व पुत्र - पुत्रियों के नामों का कथन ), कथासरित् १.७.१५ ( भरद्वाज मुनि के शिष्य कृष्ण नामक ऋषि के ही शापवश राजा सातवाहन के रूप में पृथ्वी पर अवतीर्ण होने का उल्लेख ); द्र. जयकृष्ण, मीनार्ककृष्ण, रामकृष्ण । Krishna

कृष्ण संसार में कर्षण है, संघर्ष है सफलता - असफलता का, मान - अपमान का, सुख - दुःख का । जहां यह द्वन्द्व समाप्त हो जाता है , वह कृष्ण है । - फतहसिंह

 

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