Puraanic contexts of words like Keshava, Keshini, Keshi, Kesari, Kaikasi  etc. are given here.

Veda study on Keshi

केशिध्वज अग्नि ३७९.१५ ( केशिध्वज द्वारा खाण्डिक्य जनक को आत्म शिक्षा का उपदेश ), नारद १.४६.३७, १४७ ( कृतध्वज - पुत्र, होमधेनु की मृत्यु पर खाण्डिक्य जनक से प्रायश्चित्त विधान पूछना, दक्षिणा स्वरूप खाण्डिक्य को अध्यात्म ज्ञान का कथन ), भागवत ९.१३.२० ( कृतध्वज - पुत्र, भानुमान् - पिता, केशिध्वज के आत्मविद्या में प्रवीण होने का उल्लेख ), विष्णु ६.६, ६.७( कृतध्वज - पुत्र, केशिध्वज का होमधेनु की मृत्यु पर खाण्डिक्य जनक से प्रायश्चित्त विधान पूछना, दक्षिणा स्वरूप खाण्डिक्य को केशिध्वज द्वारा आत्म - ज्ञान का कथन ) । keshidhwaja/keshidhvaja

 

केशिनी नारद १.८.६३ ( और्व मुनि के वरदान स्वरूप सगर की प्रथम पत्नी केशिनी को वंशकारक एक पुत्र तथा द्वितीय पत्नी सुमति को साठ सहस्र पुत्रों की प्राप्ति, सगर - पुत्रों की दुश्चेष्टाओं के परिणामस्वरूप कपिल मुनि द्वारा सगर - पुत्रों के भस्म करने का वृत्तान्त ), पद्म ७.४.८९ ( भीमकेश - पत्नी केशिनी का बृहद्ध्वज राक्षस से समागम, गङ्गासागर सङ्गम महिमा से स्वर्ग गमन ),    ३.२१.४१ ( केशिनी तीर्थ में स्नान, उपवास से ब्रह्महत्या से मुक्ति का उल्लेख ), ब्रह्माण्ड २.३.७.१३९ ( खशा की सात पुत्रियों में से एक केशिनी द्वारा कपिल यक्ष से यक्षों व राक्षसों की उत्पत्ति का उल्लेख ), २.३.४९.२,५९ ( राजा सगर द्वारा विदर्भराज - पुत्री केशिनी के पाणिग्रहण तथा सुखोपभोग का उल्लेख ), २.३.५१.३७ ( सगर - पत्नी केशिनी द्वारा असमञ्जस नामक पुत्र की उत्पत्ति, पिता सगर द्वारा असमञ्जस के त्याग का वृत्तान्त ), २.३.६३.१५४ ( विदर्भ - पुत्री तथा सगर - पत्नी केशिनी को और्व मुनि के वरदानस्वरूप असमञ्ज नामक पुत्र की प्राप्ति, प्रजा के अहित में तत्पर होने पर राजा सगर द्वारा पुत्र का नगर से निष्कासन ), २.३.६६.२५ ( सुहोत्र - पत्नी, जह्नु - माता ), भागवत ७.१.४३ ( विश्रवा मुनि की पत्नी केशिनी से रावण व कुम्भकर्ण की उत्पत्ति का उल्लेख ), ९.८.१५ ( विदर्भराज - पुत्री, असमञ्जस - माता, सगर - पत्नी ), मत्स्य ४९.४४,४६ ( अजमीढ - पत्नी, कण्व -माता ), १७९.२३ ( अन्धकासुर के रक्तपानार्थ महादेव द्वारा सृष्ट मानस मातृकाओं में से एक ), वामन ५६.२७ ( कौशिकी का केशिनि से रक्तबीज दानव के रक्तपान का आग्रह ), वायु ६९.१७० ( खशा की सात पुत्रियों में से एक ), ८८.१५५ ( विदर्भराज - पुत्री, असमञ्ज - माता, सगर - पत्नी ), ९९.१६७ ( अजमीढ की तीन पत्नियों में से एक, कण्ठ - माता ), विष्णु ४.४.१( विदर्भराज - पुत्री तथा सगर - पत्नी केशिनी को और्व मुनि के वरदान स्वरूप असमञ्जस नामक पुत्र की प्राप्ति, असमञ्जस के असत् चरित्र के कारण पिता सगर द्वारा पुत्र के त्याग का वर्णन ), वा.रामायण १.३८.१३ ( सगर - पत्नी केशिनी द्वारा महर्षि भृगु से वंशकर्त्ता पुत्र प्राप्ति का वर ग्रहण करने तथा असमञ्ज नामक पुत्र को उत्पन्न करने का उल्लेख ), कथासरित् ८.२.३४७ ( महल्लिका द्वारा सूर्यप्रभ को अपनी बारह सखियों का परिचय देते हुए केशिनी का पर्वत मुनि की कन्या के रूप में उल्लेख ) । keshini/keshinee

केशिनी केशिनी परा शक्ति है । सुधन्वा आत्मा की शक्ति है जो समाधि अवस्था में प्राप्त होती है । विरोचन व्युत्थान की अवस्था है फतहसिंह

 

केशी गरुड ३.१२.९४(केशी दैत्य की आपेक्षिक श्रेष्ठता),  गर्ग ५.२.१ ( कृष्ण द्वारा अश्व रूप धारी केशी दैत्य का वध, केशी द्वारा दिव्य रूप धारण, शापवश इन्द्र के अनुचर कुमुद का केशी बनने का वृत्तान्त ), देवीभागवत ४.२२.४३ ( हयशिरा के अंशावतार रूप में केशी का उल्लेख ), ब्रह्मवैवर्त्त ४.१६.२१ ( दैत्येश्वर केशी द्वारा श्रीकृष्ण का वेष्टन तथा श्रीकृष्ण द्वारा उसके वध का उल्लेख ), भागवत ९.२४.४८ ( वसुदेव व कौशल्या - पुत्र ), १०.२.१ ( कंस के साथियों में केशी का उल्लेख ), १०.३६.२० ( कंस द्वारा केशी को कृष्ण व बलराम के वध का आदेश ), १०.३७.१ ( हय रूप धारण कर केशी नामक दैत्य का कृष्ण के समीप गमन, कृष्ण द्वारा केशी के उद्धार का वृत्तान्त ), मत्स्य २४.२३ ( दानवराज केशी द्वारा चित्रलेखा और उर्वशी का हरण करने पर पुरूरवा द्वारा केशी से युद्ध तथा केशी की पराजय ), वायु ९८.१०० ( २८वें द्वापर में अवतारों विष्णु द्वारा कंस, केशी प्रभृति मानव देहधारी दैत्यों के वध का उल्लेख ), विष्णु ५.१६.१+ ( कंस - दूत केशी का कृष्ण को मारने हेतु अश्वरूप धारण, कृष्ण द्वारा केशी के वध का वृत्तान्त ), ५.१.२४ ( कंस, केशी प्रभृति दैत्यों के भार से पीडित भूमि का पीडा हरण हेतु देवों के समीप गमन तथा प्रार्थना), विष्णुधर्मोत्तर १.१७६.१० ( शक्रपीडक केशी नामक असुर के विष्णु द्वारा वध का उल्लेख ), हरिवंश २.२४.६ (कंस द्वारा अश्व रूप धारी दैत्य केशी का वृन्दावन में प्रेषण, केशी की उच्छृंखलता, कृष्ण द्वारा केशी के वध का वर्णन ), ३.५१.६१ ( देवों से युद्ध हेतु तत्पर केशी दैत्य के रथादि का वर्णन ), ३.५३.२० ( देवासुर युद्ध में केशी दैत्य के धनेश्वर भीम से युद्ध का उल्लेख ), लक्ष्मीनारायण २.२८.२४ ( केशीय जाति के नागों के नाट्य कुशल होने का उल्लेख ), ३.२१८.२ (  मौक्तिकेशी : श्रीहरि द्वारा स्वभक्त  मौक्तिकेशी की परीक्षा और मोक्ष प्रदान की कथा ) ; द्र. गुणकेशी, मिश्रकेशी,  मौक्तिकेशी, विकेशी । keshi/keshee

Veda study on Keshi

 

केषणादी ब्रह्माण्ड २.३.७.३८० ( पिशाचों के १६ युग्मों में से १५ वें युग्म की पिशाची ) ।

 

केसट कथासरित् १८.४.१५७ ( पाटलिपुत्र - निवासी केसट नामक ब्राह्मण - पुत्र का रूपवती से विवाह, वियोग तथा पुनर्मिलन का वृत्तान्त ) ।

 

केसर नारद १.६७.६१( केसर पुष्प को शिव को अर्पण का निषेध ), पद्म १.४०.४ ( हिरण्मय पद्म के केसरों का पर्वतों के प्रतीक रूप में उल्लेख ), वायु ३८.४५ ( केसरद्रोणि : कुमुद और अञ्जन पर्वतों के मध्य भूभाग का केसरद्रोणी नामोल्लेख ), लक्ष्मीनारायण १.३१.१९( श्रीहरि की हिरण्यश्मश्रु से पूजा द्रव्य केसर की उत्पत्ति का उल्लेख ), कथासरित् ८.२.३५२ ( केसरावली : महल्लिका द्वारा सूर्यप्रभ को अपनी बारह सखियों का परिचय देते हुए केसरावली का पिङ्गल गण की पुत्री के रूप में उल्लेख ) । kesara

 

केसरि ब्रह्माण्ड १.२.२०.३९( षष्ठम तल शिलाभौम रसातल में दैत्यपति केसरि के नगर का उल्लेख ), वायु ५०.३८ (शिलाभौम नामक षष्ठम् रसातल में दैत्यपति केसरि के नगर का उल्लेख ), भविष्य ३.३.२३.३३ ( केसरिणी : चित्ररेखा - सखी, नाट्यात्मजा, कुतुक - शिष्या ) ।

 

केसरी ब्रह्म २.१४.३ ( अञ्जन पर्वत पर केसरी के वानरी रूप धारी अञ्जना तथा मार्जारी रूप धारी अद्रिका नामक भार्याओं के साथ निवास का उल्लेख ), ब्रह्माण्ड १.२.१९.९० ( शाकद्वीप के अनेक पर्वतों में से वनौषधि युक्त एक पर्वत ), २.३.७.२२३ ( कुञ्जर वानर की पुत्री अञ्जना के पति के रूप में केसरी का उल्लेख, हनुमान , श्रुतिमान्, केतुमान्, मतिमान् , धृतिमान् - पिता ), विष्णु २.४.६२ ( शाकद्वीप के पर्वतों में से एक ), वा.रामायण ४.६६.८ ( अप्सरा से कपि योनि में अवतीर्ण, कुञ्जर - पुत्री अञ्जना के पति रूप में केसरी का उल्लेख ), ६.२७.३८ ( सारण द्वारा रावण को वानर यूथपतियों का परिचय देते हुए महामेरु पर रमण करने वाले वानर यूथपति के रूप में केसरी का उल्लेख ), ६.३०.२१ ( इन्द्र के गुरु बृहस्पति के पुत्र तथा हनुमान् के पिता रूप में केसरी का उल्लेख ), लक्ष्मीनारायण २.१४०.२० ( प्रासाद वर्णनान्तर्गत केसरी नामक प्रासाद के स्वरूप का उल्लेख ), ४.७४.४ ( सुकेसरी : राजा सप्ताब्धिसिंह का रथवाह, सर्प दंशन से राजा के मृत होने पर सुकेसरी द्वारा मन्त्रधुन्य योग से राजा के संजीवन का वर्णन ) । kesari/kesaree

 

कैकय गर्ग ७.१५.३४ ( कैकय देश के अधिपति धृतकेतु द्वारा प्रद्युम्न के सत्कार का उल्लेख ), ब्रह्माण्ड २.३.७१.१५७ ( शूर की पांच पुत्रियों में से तृतीय श्रुतकीर्ति के पति, संतर्दन, चेकितान, बृहत्क्षत्र आदि के पिता, वृष्णि वंश ), भविष्य ३.३.३१.८१ ( काश्मीर के राजा कैकय के दस पुत्रों तथा मदनावती नामक कन्या का उल्लेख ), ३.३.३२.१६७ ( कैकय की पुत्रों सहित युद्ध में मृत्यु का उल्लेख ), भागवत २.७.३५ ( कैकय प्रभृति देशों के राजाओं के युद्ध में मृत्यु को प्राप्त कर परम धाम गमन का उल्लेख ), ९.२४.३८ ( कैकय देश के राजा धृष्टकेतु और श्रुतकीर्ति से सन्तर्दन आदि पांच कैकय राजकुमारों के उत्पन्न होने का उल्लेख ), महाभारत शान्ति ७७(राक्षस द्वारा अपहृत होने पर कैकयराज का राक्षस से संवाद), द्र. केकय, कैकेय । kaikaya

 

कैकस लक्ष्मीनारायण ३.११७.१ ( सात सहोदर कैकस नामक दैत्यों द्वारा सूर्य से वर प्राप्ति, ललिता द्वारा कैकसों के वध का वृत्तान्त ) ।

 

कैकसी पद्म १.३८.१०५ ( राम द्वारा विभीषण की माता कैकसी का अभिवादन , कैकसी का राम को आशीर्वाद कथन ), ५.६.१८ ( विश्रवा - पत्नी, विद्युन्मालि - पुत्री, रावण, कुम्भकर्ण, विभीषण -माता, कैकसी के रोषपूर्ण वचनों का श्रवण कर रावण द्वारा तपश्चर्या के निश्चय का वर्णन ), ब्रह्माण्ड २.३.८.४० ( सुमाली - कन्या, विश्रवा की चार पत्नियों में से एक, रावण, कुम्भकर्ण, विभीषण व शूर्पणखा की माता ), वायु ७०.३४ ( वही), विष्णुधर्मोत्तर १.२२० ( पिता सुमाली के कहने पर कैकसी का विश्रवस मुनि के समीप गमन, विश्रवस से कैकसी को रावण, कुम्भकर्ण तथा शूर्पणखा की प्राप्ति का कथन ), स्कन्द ३.१.४७.१२ ( सुमाली - कन्या, विश्रवा - भार्या, रावण, कुम्भकर्ण, विभीषण व शूर्पणखा की माता ), ५.३.१६८.१५ ( वही), वा.रामायण ७.५.४१ ( सुमाली व केतुमती की चार कन्याओं में से एक ), ७.९.६ ( सुमाली - पुत्री कैकसी का पिता के आदेश से मुनि विश्रवा से परिणय, रावण, कुम्भकर्ण, विभीषण तथा शूर्पणखा की उत्पत्ति, कुबेर सदृश बनने के लिए कैकसी की प्रेरणा से रावण द्वारा तपश्चर्या का वृत्तान्त ), लक्ष्मीनारायण २.८६.३९( विश्रवा की ४ पत्नियों में से एक, रावण आदि पुत्रों के नाम ) । kaikasi/kaikasee

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