Puraanic contexts of words like Kritasmara, Kriti, Krittikaa, Krittivaasa, Krityaa etc. are given here.

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कृतज्ञता विष्णुधर्मोत्तर ३.२७०.१४ ( कृतज्ञता गुण का निरूपण ) ।

 

कृतस्मर स्कन्द ७.१.२२.२ ( प्रभास क्षेत्र के अन्तर्गत कृतस्मर पर्वत पर चन्द्रमा द्वारा शिवाराधना का वर्णन ), ७.१.३३.६७ ( बडवानल को सागर की ओर ले जाती हुई सरस्वती के मार्ग को कृतस्मर पर्वत द्वारा अवरुद्ध करना, पर्वत की सरस्वती पर आसक्ति तथा विवाह हेतु प्रस्ताव, सरस्वती का युक्तिपूर्वक बडवानल को कृतस्मर के हाथ में देना, हाथ में ग्रहण करते ही बडवा द्वारा कृतस्मर के भस्म होने का वृत्तान्त ), ७.१.१९९+ ( कृतस्मर तीर्थ की उत्पत्ति का वर्णन, तीर्थ के दक्षिण में स्थित  कामकुण्ड में स्नान से सौन्दर्य प्राप्ति का कथन ), लक्ष्मीनारायण १.५४०.६ ( पर्वत रूप कृतस्मर नामक तीर्थ में स्थित कामकुण्ड में स्नान से सौन्दर्य प्राप्ति का कथन ) । kritasmara

 

कृताग्नि ब्रह्माण्ड २.३.६९.८ ( कनक - पुत्र ), भागवत ९.२३.२२ ( धनक के चार पुत्रों में से एक, यदु वंश ), मत्स्य ४३.१३ ( कनक के चार पुत्रों में से एक, यदुवंश ), विष्णु ४.११.१० ( धनक के चार पुत्रों में से एक, यदु वंश ) ।

 

कृतान्त गणेश २.९६.१२ ( उपनयन संस्कार के मध्य गणेश द्वारा गज रूप धारी कृतान्त व काल दैत्यों का वध ),ब्रह्माण्ड १.२.३६.१९ ( स्वारोचिष मनु के ९ पुत्रों में से एक ), मत्स्य १४८.३० ( दैत्यराज तारकासुर के राज्य में कृतान्त के अग्रेसर के स्थान पर नियुक्त होने का उल्लेख ), वायु ६२.१८ ( स्वारोचिष मनु के ९ पुत्रों में से एक ), कथासरित् १२.१९.१३७ ( कृतान्तसन्त्रास : पिता के शापवश प्रत्येक मास की अष्टमी व चर्तुदशी को शिवपूजन हेतु नगर से बाहर जाने पर मृगाङ्कवती का कृतान्तसन्त्रास नामक राक्षस द्वारा निगरण, राक्षस का पेट भेदकर मृगाङ्कवती का जीवित बाहर निकलना ) । kritaanta

 

कृताहार ब्रह्माण्ड २.३.७.१८० ( पुलह व श्वेता के दस वानरपुंगव पुत्रों में से एक ) ।

 

कृति गरुड ३.१६.७(प्रद्युम्न भार्या),  गर्ग ५.१५.३३ ( सुकृति : श्रीहरि के धर्मपालक कल्कि के रूप में प्रकट होने पर राधा के सुकृति रूप में प्रकट होने का उल्लेख ), ब्रह्माण्ड १.२.३६.७९, १०६ ( नड्वला व चाक्षुष मनु के १० पुत्रों में से एक ), २.३.६४.२३ ( बहुलाश्व - पुत्र, जनकवंशी अन्तिम सम्राट के रूप में कृति का उल्लेख ), २.३.६८.१२ ( नहुष के ययाति प्रभृति ६ पुत्रों में से एक ), ३.४.१.१४ ( बीस सुतपा देवों में से एक ), भागवत ६.१८.१४ ( हिरण्यकशिपु व कयाधु के चार पुत्रों में से एक संह्लाद नामक पुत्र की पत्नी, पञ्चजन - माता ), ९.१३.२६ ( बहुलाश्व - पुत्र, महावशी - पिता, मैथिल वंश ), ९.१८.१ ( नहुष के ६ पुत्रों में से एक, नहुष वंश ), ९.२१.२८ ( सन्नतिमान् - पुत्र, नीप - पिता, हिरण्यनाभ से योगविद्या की प्राप्ति, प्राच्यसाम नामक ऋचाओं की ६ संहिताओं का कथन ), ९.२४.२ ( बभ्रु - पुत्र, उशिक - पिता, विदर्भ वंश ), मार्कण्डेय ८.२१ ( असत्य वचन से कृति नामक स्वर्ग से च्युति का उल्लेख ), वायु ६१.४८ ( दो सर्वोत्कृष्ट सामगों में से एक ), ६२.६७ ( नड्वला व चाक्षुष मनु के १० पुत्रों में से एक ), ८९.२३ ( बहुलाश्व - पुत्र, जनकवंशीय अन्तिम सम्राट् ), विष्णु ४.५.३१ ( शतध्वज - पुत्र, अञ्जन - पिता, कुरुजित् - पितामह, जनक वंश ), ४.५.३१ ( बहुलाश्व - पुत्र, जनकवंशीय अन्तिम सम्राट ), ४.१०.१ ( नहुष के ६ पुत्रों में से एक ),   लक्ष्मीनारायण ४.१०१.८८ ( श्रीकृष्ण नारायण - पत्नी, सूद्योग नामक सुत तथा नयराजती नामक सुता - माता ), ४.१०१.११४ ( कृतिनी : श्रीकृष्ण नारायण - पत्नी विद्योतिनी की सुता ), भरतनाट्य १४.४५(२० या अधिक अक्षरों वाले शब्दों की कृति, प्रकृति, संकृति आदि संज्ञाएं) ; द्र. सुकृति । kriti

 

कृतिमान् भागवत ९.२१.२७ ( यवीनर - पुत्र, सत्यधृति - पिता, भरत वंश ), लक्ष्मीनारायण ४.१०१.१२४ ( श्री कृष्णनारायण की पत्नी प्रकृति का पुत्र ) ।

 

कृतिरथ भागवत ९.१३.१६ ( प्रतीपक - पुत्र, देवमीढ - पिता, निमि वंश ) ।

 

कृतिरात भागवत ९.१३.१७ ( महाधृति - पुत्र, महारोमा- पिता, निमि वंश ) ।

 

कृती ब्रह्माण्ड २.३.७.२४१ ( किष्किन्धा वासी वालि की वानरसेना के प्रधान वानरों में से एक ), ३.४.१.११४ ( भौत्य मनु के ९ पुत्रों में से एक ), भागवत ९.२२.५ ( च्यवन - पुत्र, उपरिचर वसु - पिता, कुरु वंश ) ।

 

कृतेयु वायु ९९.१२४ ( रौद्राश्व व घृताची के दस पुत्रों में से एक, पुरु वंश ) ।

 

कृतौजा ब्रह्माण्ड २.३.६९.८ ( हैहयवंशी कनक के कृतवीर्य आदि चार पुत्रों में से एक ), भागवत ९.२३.२२ ( हैहयवंशी धनक के कृतवीर्य आदि ४ पुत्रों में से एक ), मत्स्य ४३.१३ ( हैहयवंशी कनक के कृतवीर्य आदि ४ पुत्रों में से एक ), विष्णु ४.११.१० ( हैहय वंशी धनक के कृतवीर्य आदि ४ पुत्रों में से एक ) । kritaujaa

 

कृत्तिका अग्नि १८.३९ (कृत्तिका से कार्त्तिकेय तथा सनत्कुमार की उत्पत्ति का उल्लेख ), गणेश १.८५.३१ ( षट् कृत्तिकाओं द्वारा अग्नि से शिव के वीर्य को ग्रहण करना, ऋषियों द्वारा त्याग, कृत्तिकाओं द्वारा वीर्य का गङ्गा में त्याग ),पद्म १.४४.१३२ ( जलक्रीडा करते हुए हिमशैलजा पार्वती द्वारा कृत्तिकाओं का दर्शन, कृत्तिकाओं द्वारा प्रदत्त पद्मपत्र स्थित जलपान से कार्त्तिकेय के जन्म का वृत्तान्त ), ब्रह्म २.१२ ( शिव वीर्य धारण से ऋषियों द्वारा कृत्तिकाओं का निष्कासन, दुःखी कृत्तिकाओं का नारद के कथनानुसार कार्त्तिकेय के समीप गमन, कार्त्तिकेय के आदेशानुसार गौतमी में स्नान तथा देवेश्वर के पूजन से कृत्तिकाओं की मुक्ति, गौतमी तीर्थ की कृत्तिका तीर्थ रूप से प्रसिद्धि तथा तीर्थ माहात्म्य ), ब्रह्मवैवर्त्त ३.१४.३२ (६ कृत्तिकाओं द्वारा बालक को दुग्ध पान तथा पालन पोषण करने से कार्त्तिकेय नामकरण ), ब्रह्माण्ड १.२.१२.१७(कावेरी, कृष्णवेणा आदि १६ धिष्णियों /नदियों के कृत्तिकाचारिणी होने का उल्लेख ),१.२.२१.७७ ( अश्विनी, कृत्तिका व याम्य नक्षत्रों में सूर्य के उदय होने पर नागवीथी नाम से स्मरण किए जाने का उल्लेख ), १.२.२१.१४५ ( कृत्तिका नक्षत्र के प्रथम चरण में सूर्य के पहुंचने पर चन्द्रमा के विशाखा के चतुर्थ चरण में रहने तथा विशाखा के तीसरे चरण में सूर्य के जाने पर चन्द्रमा के कृत्तिका शिर पर पहुंचने का उल्लेख ), १.२.२४.१३० ( चाक्षुष मन्वन्तर में सूर्य के विशाखा नक्षत्र में तथा चन्द्रमा के कृत्तिका नक्षत्र में उत्पन्न होने का उल्लेख ), २.३.१०.४४ (कृत्तिकाओं द्वारा पोषित होने से कुमार के कार्तिकेय नाम से प्रथित होने का उल्लेख ), ३.४.३०.१०० ( महेश्वर के उग्र वीर्य के क्रमश: पृथ्वी, अग्नि, कृत्तिकाओं, गङ्गाजल तथा शरवण में प्रक्षिप्त होने का कथन ), भविष्य ४.१०३.२४ ( कृत्तिका व्रत विधि व माहात्म्य का वर्णन ), भागवत  ६.६.१४ ( कृत्तिका - पुत्र के रूप में स्कन्द का उल्लेख ), ६.६.२३ ( कृत्तिका प्रभृति २७ नक्षत्राभिमानिनी देवियों के चन्द्र - पत्नी होने का उल्लेख ), मत्स्य ५.२७ ( कृत्तिकाओं की संतति होने के कारण कुमार के कार्तिकेय नाम से प्रथित होने का उल्लेख ), १५८.३३ ( छह कृत्तिकाओं द्वारा पार्वती को पद्मपत्र में सरोवर का जल देना, जलपान से कुमार की उत्पत्ति ), वामन ५१.२०(सन्ध्यारागवती/रागवती का रूप?), ५७.८६ ( कृत्तिकाओं द्वारा स्कन्द को हंसास्य, कुण्डजठर, बहुग्रीव, हयानन तथा कूर्मग्रीव नामक पांच अनुचर प्रदान करने का उल्लेख ), वायु ६६.७८ ( अश्विनी, भरणी व कृत्तिका के नागवीथी नाम से स्मरण किए जाने का उल्लेख ), ७२.४३ ( कृत्तिकाओं द्वारा वर्धित होने से कुमार के कार्त्तिकेय नाम से प्रसिद्ध होने का उल्लेख ), ८२.२ ( कृत्तिका नक्षत्र के योग में श्राद्ध करने पर मनुष्य के विगत ज्वर होने का उल्लेख ), विष्णु १.१५.११६ ( कृत्तिका - पुत्र होने से कुमार के कार्त्तिकेय नाम से प्रसिद्ध होने का उल्लेख ), २.९.१५ ( कृत्तिका प्रभृति नक्षत्रों में सूर्य के स्थित रहने पर दिग्गजों द्वारा पवित्र जल छोडे जाने का उल्लेख ), विष्णुधर्मोत्तर १.२२८.१० ( गङ्गा द्वारा परित्यक्त षडानन का कृत्तिकाओं द्वारा पालन, चन्द्र से समायोग होने पर कृत्तिका पूजा विधि तथा माहात्म्य ), २.९६ ( गृहस्थों के काम्य कर्म के अन्तर्गत कृत्तिका में स्नानपूर्वक यथाशक्ति दान तथा मधुसूदन के पूजन का कथन ), वा.रामायण १.३७.२३ ( कुमार जन्म प्रसंग में कृत्तिकाओं द्वारा कुमार को स्तन - पान, एतदर्थ कुमार के कार्तिकेय नाम से प्रथित होने का उल्लेख ), शिव १.१६.५१ ( कृत्तिका नक्षत्र में वार अनुसार देवपूजन, द्रव्यदान व फल का कथन ), स्कन्द १.१.२७.७३ ( अरुन्धती द्वारा निवारित किए जाने पर भी कृत्तिकाओं की प्रज्वलित अग्नि में तापने की लालसा, गर्भवती होने पर ऋषि पतियों द्वारा परित्याग, षण्मुख उत्पत्ति का प्रसंग ), १.२.२९.२१० ( षट् कृत्तिकाओं द्वारा गुह से अक्षय स्वर्ग प्राप्ति की कामना करने पर कृत्तिकाओं को स्वर्ग प्राप्ति का उल्लेख ), ५.१.३४.७२ ( कृत्तिकाओं  द्वारा स्कन्द को शूल प्रदान करने का उल्लेख ), लक्ष्मीनारायण २.३२.१५( कृत्तिकाओं द्वारा नक्षत्रों में स्थान प्राप्ति व सप्तशीर्षा होने के कारणों का कथन ), २.३२.१८( विनता को ६ कृत्तिकाओं के शीर्ष स्थान की प्राप्ति ) । krittikaa / krittika

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कृत्तिवास नारद २.४९.६ (काशी में कृत्तिवासेश्वर लिङ्ग की पूजा की महिमा का वर्णन ), ब्रह्माण्ड १.२.९.६९ (ब्रह्मा की आज्ञा से कृत्तिवासेश्वर शिव द्वारा प्रजा सृजन का कथन ), २.३.२५.१४, २.३.७२.१८४ ( भार्गवकृत शिव स्तुति में शिव का एक नाम ), मत्स्य १८१.१४ (गजचर्म धारण करने से शिव का नाम ), वामन ९०.३५ ( रसातल में विष्णु के नामों में से एक ), वायु २१.५१ ( बाइसवें कल्प में मेघी विष्णु द्वारा कृत्तिवास महेश्वर को सहस्र दिव्य वर्ष तक धारण करने का उल्लेख ), शिव २.५.५७.६७ ( शिव द्वारा गजासुर का चर्म ग्रहण करने पर काशी क्षेत्र में कृत्तिवासेश्वर लिङ्ग की स्थापना ), स्कन्द ४.१.३३.१६६ ( कृत्तिवासेश्वर लिङ्ग का संक्षिप्त माहात्म्य ), ४.२.६८.२९ ( गजासुर - चर्म धारण से शिव का काशी में कृत्तिवासेश्वर नाम से निवास तथा कृत्तिवासेश्वर लिङ्ग के माहात्म्य का वर्णन ), ६.१०९.१२ ( एकाम्र तीर्थ में शिवलिङ्ग के कृत्तिवासेश्वर नाम का उल्लेख ), ७.१.७.१७ ( पञ्चम कल्प में शिव का नाम ) । krittivaasa

 

कृत्ती पद्म १.९.४०(पीवरी कन्या, पाञ्चालपति पत्नी, ब्रह्मदत्त माता), द्र. कृत्वी

 

कृत्य स्कन्द ५.३.१५७.१५ ( हुंकार तीर्थ में शुभ या अशुभ कृत्य के नष्ट न होने का उल्लेख ) ।

कृत्या गणेश २.६३.३८ ( ईशिता सिद्धि से निर्गत कृत्या द्वारा शुक्र का बन्धन व मोचन )२.६५.३ ( बुद्धि के मुख से नि:सृत कृत्या द्वारा देवान्तक असुर का स्वभग में बन्धन व मोचन ), देवीभागवत ७.७.१३ ( च्यवन द्वारा इन्द्र के निग्रहार्थ मद नामक भीषण आकृति युक्त कृत्या की उत्पत्ति, अश्विनौ के सोमपान का प्रसंग ), पद्म ६.१७.८४ ( शिव के तृतीय नेत्र से कृत्या की उत्पत्ति, शिव की आज्ञानुसार कृत्या द्वारा स्व - योनि में शुक्राचार्य को छिपाना, शिव द्वारा जालन्धर दैत्य के वध का प्रसंग ), ६.२५१.११६ ( पौण्ड्रक वासुदेव - पुत्र दण्डपाणि द्वारा शंकरोपासना से कृत्या की उत्पत्ति, श्रीकृष्ण के सुदर्शन चक्र द्वारा कृत्या का नाश ), ब्रह्म २.४०.१२५ ( पिप्पलाद द्वारा देवों के विरुद्ध बडवा कृत्या की उत्पत्ति, पांच नदियों द्वारा बडवा की समुद्र में स्थापना ), २.४६.२२ ( ऋषियों द्वारा बडवा कृत्या का मृत्यु से विवाह ), ब्रह्मवैवर्त्त २.१६.७५(कृत्या के सत्व, रजो व तमो गुणों का कथन), ४.८४.२६ ( तीन प्रकार की कृत्या स्त्रियों के लक्षणों का वर्णन ), भागवत ९.४.४६ ( क्रुद्ध दुर्वासा द्वारा अम्बरीष वध हेतु कृत्या की उत्पत्ति, श्रीकृष्ण के सुदर्शन चक्र द्वारा अम्बरीष की रक्षा तथा कृत्या को भस्म करने का वृत्तान्त ), १०.६६.३८ ( सुदक्षिण के अभिचार से माहेश्वरी कृत्या की उत्पत्ति, कृष्ण के सुदर्शन चक्र द्वारा कृत्या के नष्ट होने का वृत्तान्त ), विष्णु १.१८.३३( हिरण्यकशिपु के आदेश पर पुरोहितों द्वारा प्रह्लाद के वध हेतु कृत्या को उत्पन्न करना, कृत्या की असफलता, कृत्या द्वारा पुरोहितों का नाश, प्रह्लाद की प्रार्थना से पुरोहितों का पुन: संजीवन ), ५.३४.३१( काशिराज पौण्ड्रक के पुत्र द्वारा कृष्ण वध हेतु कृत्या की उत्पत्ति, सुदर्शन चक्र से कृत्या का नष्ट होना ), स्कन्द ३.१.५१.१९(कृत्या को आहारार्थ पाषाण दान),  ५.२.४.९ ( रुरु - पुत्र वज्र नामक दैत्य के वध हेतु देवों के अंश से कृत्या की उत्पत्ति का कथन ), ५.२.६६.२५ ( जल्प नामक राजा के सुबाहु आदि५ पुत्रों द्वारा एक दूसरे के वध हेतु कृत्याएं उत्पन्न करने तथा विनाश को प्राप्त होने का वृत्तान्त ), ५.३.४२.३८ ( पिप्पलाद बालक द्वारा आग्नेयी धारण से कृत्या उत्पन्न करने तथा कृत्या के कृत्यों का वर्णन ), ६.१६८.४६ ( विश्वामित्र द्वारा वसिष्ठ वधार्थ कृत्या की उत्पत्ति, वसिष्ठ से पराभव तथा धारा नाम प्राप्ति का कथन ), ७.१.३२.९० ( पिता दधीचि के वध से क्रुद्ध पिप्पलाद द्वारा देवों के हननार्थ वडवाग्नि रूप कृत्या की उत्पत्ति का कथन ), ७.१.९९.२३ ( पितृहन्ता वासुदेव के वध हेतु काशिराज - पुत्र द्वारा शिव को सन्तुष्ट करके कृत्या की प्राप्ति ), ७.१.२८२.१८ ( शक्र नाश हेतु च्यवन ऋषि द्वारा तपोबल से कृत्या की उत्पत्ति, कृत्या से मद नामक महासुर का उद्भव ), लक्ष्मीनारायण १.९०.४ ( इन्द्र के राज्य को नष्ट करने हेतु देवगुरु बृहस्पति द्वारा किए गए होम से क्रूर व भयानक आकृति युक्त कृत्या की उत्पत्ति ), १.४२४.२०( कृत्या के नाश हेतु रुद्र का उल्लेख ) । krityaa


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