Puraanic contexts of words like Kratu, Kratusthalaa, Kratha, Kriyaa/action, Kreedaa/game etc. are given here.

क्रतुञ्जय विष्णु ३.३.१५ ( सत्रहवें द्वापर के व्यास ) ।

 

क्रतुजित् ब्रह्माण्ड २.३.५.३९ ( कालनेमि के चार पुत्रों में से एक ) ।

 

क्रतुध्वज वामन ७२.२४ ( स्वारोचिष मनु के पुत्र ) ।

 

क्रतुभुज भविष्य २.१.१७.१५ ( अग्नि - नाम - वर्णनान्तर्गत पर्वताग्नि का क्रतुभुज नाम से उल्लेख ) ।

 

क्रतुमान् भागवत ९.१६.३६ ( विश्वामित्र - पुत्र ) ।

 

क्रतुस्थला ब्रह्माण्ड २.३.७.१०१ ( यक्ष द्वारा वसुरुचि नामक गन्धर्व रूप में क्रतुस्थला अप्सरा से रमण, रजतनाभ पुत्र की उत्पत्ति ), वायु ५२.४ ( क्रतुस्थली : क्रतुस्थली अप्सरा का चैत्र मास में सूर्य के साथ सूर्य रथ पर रहने का उल्लेख ), ६९.१३६ ( यक्ष द्वारा वसुरुचि गन्धर्व का रूप धारण कर क्रतुस्थली अप्सरा के साथ समागम, नाभि नामक पुत्र की उत्पत्ति ), विष्णु २.१०.३ ( क्रतुस्थला अप्सरा के चैत्र मास में सूर्य रथ पर अधिष्ठित होने का उल्लेख ) । kratusthalaa

 

क्रथ गरुड ३.१२.९८(क्रथ असुर की आपेक्षिक श्रेष्ठता),  ब्रह्माण्ड २.३.७०.३७ ( विदर्भ - पुत्र, कैशिक व लोमपाद - भ्राता, कुन्ति -पिता, धृष्टि - पितामह ), भागवत ९.२४.१ ( विदर्भ व भोज्या - पुत्र, कुश व रोमपाद - भ्राता, कुन्ति - पिता, विदर्भ वंश ), मत्स्य ४४.३८ ( विदर्भ - पुत्र, कुन्ति - पिता, कैशिक व लोमपाद - भ्राता, क्रोष्टु वंश ), वामन ५७.७७ ( गौतमी नदी द्वारा कुमार को क्रथ व क्रौञ्च नामक गण प्रदान करने का उल्लेख ), विष्णु ४.१२.३७ ( विदर्भ - पुत्र, कैशिक व रोमपाद - भ्राता, कुन्ति - पिता, धृष्टि - पितामह ), स्कन्द ६.११४.१२ ( देवरात - पुत्र क्रथ द्वारा रुद्रमाल नाग की हत्या, हत्या से क्रुद्ध नागों द्वारा चमत्कारपुर में भीषण दंशन ), ७.१.२३.९७ ( चन्द्रमा के यज्ञ में नेष्टा पद पर  अधिष्ठित एक ऋषि ), ७.४.१७.१५ ( कृष्ण की पूजा विधि के अन्तर्गत आग्नेय दिशा में स्थित रक्षकों में क्रथ का उल्लेख ), हरिवंश २.३६.२ (वृष्णिवंशियों तथा जरासन्ध सैनिकों के द्वन्द्व युद्ध में वसुदेव से क्रथ का युद्ध ), २.५०.८ ( विदर्भ - नगराधिपतियों क्रथ और कैशिक भ्राताओं द्वारा श्रीकृष्ण को राज्य समर्पण ), लक्ष्मीनारायण २.१७४.१ ( क्रथक : क्रथक राजा की ओंकारेष्टा नगरी में कृष्ण का आगमन, मन्दिर निर्माण हेतु शुभ काल विषयक उपदेश ) । kratha

 

क्रथन ब्रह्माण्ड २.३.७.१३३ ( खशा व कश्यप के अनेक पुत्रों में से एक ), मत्स्य १६१.८० ( हिरण्यकशिपु की सेवा में तत्पर दैत्यों, दानवों में से एक ), वायु ५०.२२ ( पाण्डुभौम नामक द्वितीय तल में क्रथन दानव के पुर का उल्लेख ), वा.रामायण ६.२७.२३ ( राम के वानर सेनानियों में से एक, सारण द्वारा रावण को परिचय ) ।

 

क्रन्दन द्र. संक्रन्दन ।

 

क्रम ब्रह्माण्ड ३.४.१.८८ ( दस सुकर्मा देवों में से एक ), ३.४.१५.४ ( विवाह के चार प्रकारों में से एक क्रमक्रीता के दासी होने का उल्लेख ), वायु १००.९३ (वही), कथासरित् १२.६.९.५ ( क्रमसर : सुनन्दन नामक अनुज को राज्य सौंपकर राजा भूनन्दन के क्रमसर नामक तीर्थ में गमन का उल्लेख ), महाभारत शान्ति २३२.२८टीका ( आत्मसिद्धि हेतु १० क्रमों का उल्लेख ) ; द्र. विक्रम । krama

 

क्रमु ब्रह्माण्ड १.२.१९.१९ ( प्लक्षद्वीप की सात श्रेष्ठ नदियों में से एक ), स्कन्द २.२.४४.७ ( क्रमुक : फाल्गुन आदि बारह सामों में क्रमश: दाडिम, नारिकेल, क्रमुक / सुपारी आदि १२ फलों से श्री हरि के १२ रूपों की अर्चना का निर्देश ) ।

 

क्रय - विक्रय अग्नि १२१.३३ ( क्रय -विक्रय हेतु मुहूर्त - नक्षत्र विचार ), विष्णुधर्मोत्तर ३.३३५ ( क्रय - विक्रय निर्णय का वर्णन ), स्कन्द ५.३.१५९.२२( क्रय वञ्चन से उलूक योनि प्राप्ति का उल्लेख )

 

क्रव्याद ब्रह्माण्ड १.२.१२.३७ (क्षामाग्नि - पुत्र, मृत मनुष्यों का भक्षण करने वाली अग्नि का क्रव्यादग्नि नामोल्लेख ), वायु २९.३५ ( वही), भागवत ५.२६.१२ ( महारौरव नरक में आए हुए पुरुष का क्रव्याद रुरुओं द्वारा भक्षण का उल्लेख ), लक्ष्मीनारायण ३.३२.१९ ( क्षाम अग्नि - पुत्र ), अन्त्येष्टिदीपिका पृ. २१(देवव्रत साम में क्रव्येभ्यश्च विरिंफेभ्यश्च नमः, क्रव्य का विरिंफ से साम्य?)

 द्र. क्रिवि


क्राथ भविष्य ३.३.३२.३९ ( तोमर वंशीय मद्रकेश के कौरवांश दस पुत्रों में से एक ), वामन ६.९० ( सम्प्रदाय - प्रचारक आपस्तम्ब के शिष्य क्राथेश्वर द्वारा सम्प्रदाय के विशेष प्रचार का उल्लेख ) । kraatha

 

क्रान्त द्र. विक्रान्त ।

 

क्रान्ति द्र. संक्रान्ति ।

 

क्रिमि विष्णु २.६.१५ ( पिता, ब्राह्मण, देवता या रत्न का अनादर करने वाले को क्रिमिभक्ष नामक नरक की प्राप्ति का उल्लेख ), लक्ष्मीनारायण २.२२६.६४( स्वेद से उत्पन्न क्रिमि व धातु से उत्पन्न पुत्र में साम्य का उल्लेख ), द्र. कृमि

 

क्रिमीश विष्णु २.६.१५ ( देव, द्विज, पितृद्वेष्टा तथा रत्नदूषक को क्रिमीश नामक नरक की प्राप्ति का उल्लेख ) ।

 

क्रिया गणेश २.१४१.१ ( क्रिया योग व संन्यास में श्रेष्ठता का प्रश्न : वरेण्य - गजानन संवाद ), गरुड १.२१.४ ( वामदेव की १३ कलाओं में से एक ), नारद १.६६.८८ ( सन्ध्यादि निरूपण में मातृका न्यास के सन्दर्भ में क्रिया नामक शक्ति से युक्त त्रिविक्रम के ध्यान का निर्देश ), पद्म ७.१+ ( पद्म पुराणान्तर्गत सप्तम क्रिया योग सार खण्ड का वर्णन ), ब्रह्माण्ड १.२.९.६० ( धर्म - पत्नी, दम व शम - माता ), १.२.१६.२९ ( ऋक्षवान् पर्वत से नि:सृत नदियों में से एक ), ब्रह्मवैवर्त्त १.१०.१ ( क्रतु - भार्या , बालखिल्य - माता ), २.१.११५ ( प्रकृति की कलाओं में से एक क्रिया का उद्योग की पत्नी के रूप में उल्लेख ), ब्रह्माण्ड ३.४.१.२४( दक्ष - कन्या क्रिया के ४ पुत्रों के भविष्य के मनु बनने का उल्लेख ), भागवत ३.२४.२३,४.१.३९ ( कर्दम - पुत्री, क्रतु - पत्नी, साठ हजार बालखिल्यों की माता ), ४.१.४९, ५१ ( दक्ष - पुत्री, धर्म - पत्नी, योग - माता ), ५.५.५ ( क्रिया के कारण ही मन के अस्तित्व का कथन ), ६.४.४६( क्रिया के भगवान् की आकृति होने का उल्लेख ), ६.१८.४ ( विधाता - पत्नी, पुरीष्य नामक पांच अग्नियों की माता ), मार्कण्डेय ५०.२०, २६ ( प्रसूति व दक्ष की २४ कन्याओं में से एक, धर्म - पत्नी, दण्ड, नय तथा विनय - माता ), वायु १०.२५, ३५ ( दक्ष - पुत्री, नय, दण्ड व समय की माता ), २३.७६/१.२३.८४( महेश्वरी के क्रिया रूप होने पर द्विपादा होने व परिणाम स्वरूप नरों के द्विपाद व द्विस्तन होने का कथन ), विष्णु १.७.२३, २९ ( दक्ष व प्रसूति की २४ कन्याओं में से एक ; दण्ड, नय, विनय - माता ), १.८.१८( विष्णु के धर्म और लक्ष्मी के सत्क्रिया होने का उल्लेख ), शिव १.१७.८७( शिव के वाहन क्रिया वृषभ के स्वरूप का कथन ), २.३.५४.७०( सत्क्रिया पतिव्रता, फल पति होने का उल्लेख ), ५.५१ ( उमा के क्रिया योग का वर्णन ; ज्ञान, क्रिया व भक्ति के संदर्भ में चित्त के बाह्यार्थ संयोग का क्रिया नाम होने का उल्लेख ), ७.२.१०.३१ ( ज्ञान, क्रिया, चर्या व योग नामक चतुष्पाद धर्म में षडध्व शुद्धि की क्रिया संज्ञा होने का उल्लेख ), स्कन्द ४.१.१३.१८ ( ज्ञान रूप शिव व इच्छा रूप पार्वती के मिलन से क्रिया शक्ति की उत्पत्ति, क्रिया शक्ति से जगत् के प्राकट्य का कथन ), ७.१.५८.१( क्रिया शक्ति रूप भैरवी का माहात्म्य : अजापाल राजा द्वारा व्याधियों से मुक्ति हेतु पूजा आदि ), योगवासिष्ठ ६.१.८७.१५ ( ज्ञान व क्रिया में श्रेष्ठता के प्रश्न का उत्तर ), ६.२.८४.२५ ( क्रिया रूपी चिति शक्ति की जडता का कथन ), ६.२.८५.२ ( क्रिया रूपी चिति शक्ति के आयुधों का कथन ), लक्ष्मीनारायण १.३२३.५१( असिक्नी व दक्ष - पुत्री, धर्म - पत्नी, नय, दण्ड व समय - माता ), १.३८२.१९( विष्णु के धर्म व लक्ष्मी के सत्क्रिया होने का उल्लेख ), द्र. भद्रक्रिय । kriyaa

 

क्रियायोग भागवत १२.११.३+ ( क्रियायोग के यथावत् ज्ञान प्राप्ति हेतु शौनक का सूत से प्रश्न, सूत द्वारा क्रियायोग का वर्णन ), मत्स्य ५२.५ ( ऋषियों के पूछने पर सूत द्वारा कर्मयोग का निरूपण, २५८.२+ ( देवार्चन रूप क्रियायोग का वर्णन ) ।


 क्रिवि उपरि टिप्पणी


क्रीड वायु ६९.१६६ ( खशा के प्रधान राक्षस पुत्रों में से एक ) ।

 

क्रीडा नारद १.७९.११० ( हरि - हर की जल क्रीडा का वर्णन ), पद्म २.५७.१ ( काम की सखी क्रीडा द्वारा सती सुकला को पथभृष्ट करने का प्रयत्न करना ), ५.११४.१५० ( विष्णु - महेश्वर तथा मुनीश्वरी की जल क्रीडा का वर्णन ), ब्रह्मवैवर्त्त ४.२८.७७ ( श्रीकृष्ण द्वारा राधा तथा गोप - गोपियों के साथ रास क्रीडा का वृत्तान्त ), भविष्य ३.४.२४.३३ (क्रीडावती :भोगसिंह व केलिसिंह का मयनिर्मित क्रीडावती नगरी में वास ), भागवत १०.६.२५ ( बालक कृष्ण के अङ्गों में बीजन्यास प्रसंग में क्रीडा के समय गोविन्द से रक्षा की प्रार्थना ), मत्स्य १२०.१ ( राजा पुरूरवा द्वारा गन्धर्वों के साथ अप्सराओं के क्रीडा विहार का दर्शन ), महाभारत आदि २२१.२० ( यमुना तट पर स्थित विहार स्थान में श्रीकृष्ण व अर्जुन के साथ अन्य जनों द्वारा विभिन्न क्रीडाएं करने का कथन ), वायु ३६.१०( देवों के ४ आक्रीडनक : पूर्व में चैत्ररथ, दक्षिण में नन्दन, पश्चिम में वैभ्राज व उत्तर में सवितृ वन ), विष्णुधर्मोत्तर १.१३१.३१ ( रम्भा द्वारा क्रीडावन में स्थित वृक्षों की उर्वशी के अङ्गों से उपमा ), १.१५३ ( गन्धर्वों के साथ अप्सराओं की जल क्रीडा का वर्णन, पुरूरवा द्वारा दर्शन ), शिव २.५.५९.११ ( गौरी के कन्दुक क्रीडा करते हुए विदल, उत्पल दैत्यों का आगमन, गौरी द्वारा दैत्य वध ), ७.१.९.१( जगत् का निर्माण कर परमेश्वर द्वारा उसमें परम क्रीडा करने का उल्लेख ), स्कन्द ४.२.७९.६८ ( काशी में शिव के जल क्रीडा स्थान का संक्षिप्त माहात्म्य ), हरिवंश २.८८ ( बलराम, कृष्ण व यादवों की पिण्डारक तीर्थ में जलक्रीडा का वर्णन ), ३.१११.४ ( द्वारका में सात्यकि आदि कुमारों के साथ कृष्ण की गोल क्रीडा का कथन ) ; द्र. द्यूतक्रीडा । kreedaa

 

क्रीत द्र. यवक्रीत ।

 

क्रुष्ट द्र. क्रोष्टा, क्रोष्टु, क्रोष्टुकि

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