Puraanic contexts of words like Konkana, Kotaraa, Kotavi, Koti, Kola, kolaahala/noise etc. are given here.

कोङ्कण गर्ग ७.१०.१ ( प्रद्युम्न का विजयार्थ कोङ्कण प्रदेश की ओर गमन, कोङ्कण देशाधिपति मेधावी की मल्ल युद्ध में गद से पराजय, मेधावी द्वारा प्रद्युम्न को भेंट प्रदान करने का वर्णन ), नारद १.५६.७४२( कोङ्कण देश के कूर्म के पाद मण्डल होने का उल्लेख ), ब्रह्माण्ड १.२.१६.५९ ( भारत के दक्षिण देशों में से एक ), भागवत ५.६.७ ( ऋषभदेव के कोङ्क आदि प्रदेशों में विचरण का उल्लेख ), मत्स्य १६.१६ ( श्राद्ध काल में त्रिशङ्कु, बर्बर, द्राव, वीत, द्रविड तथा कोङ्कण देश निवासियों के वर्जन का उल्लेख ) । konkana

 

कोचरश पद्म ७.२३.१ ( एकादशी व्रत के प्रभाव से नित्योदय नामक शूद्र की अग्रजन्म में कोचरश नामक राजा बनने की कथा ) ।

 

कोटन स्कन्द १.२.६२.३६( यज्ञवाट् में कोटन जाति के क्षेत्रपाल की स्थिति का उल्लेख )

 

कोटरा पद्म ६.१५९.१३ ( कोटरा तीर्थ में कोटराक्षी देवी के निवास तथा कोटरा तीर्थ के माहात्म्य का कथन ), ब्रह्मवैवर्त्त ४.११५.४३ ( कोटरी : ग्राम देवी कोटरी द्वारा बाण को स्वेच्छया उषा को अनिरुद्ध को दे देने का परामर्श ), ब्रह्माण्ड ३.४.४४.५९ ( ३६ वर्ण शक्तियों में से एक ), भागवत १०.६३.२० ( बाणासुर की माता कोटरा द्वारा पुत्र प्राणों के रक्षार्थ श्रीकृष्ण के समक्ष नग्न प्राकट्य का उल्लेख ), वामन ५७.९८ ( प्रयाग द्वारा कार्त्तिकेय को प्रदत्त ६ मातृकाओं में से एक ), स्कन्द ५.१.६४.९ (कोटरी :९ मातृकाओं में से एक ), लक्ष्मीनारायण १.८३.३२( कोटरी : ६४ योगिनियों में से एक ), २.१४.२९ ( लोमश ऋषि - प्रेषित कन्यकाओं व राक्षसियों के परस्पर युद्ध में कोटरा राक्षसी द्वारा शालग्राम अस्त्र के निवारण व पांशु अस्त्र के मोचन का उल्लेख ) । kotaraa

 

कोटराक्षी पद्म ६.१५९ ( बाणासुर को जीतकर कृष्ण द्वारा द्वारका जाते हुए कोटराक्षी देवी की स्थापना, कोटराक्षी देवी की स्तुति से अनिरुद्ध की पाशमुक्ति, कोटराक्षी स्तोत्र पाठ से कष्टों, बन्धनों से मुक्ति तथा शिव सन्निधि का कथन ), स्कन्द ४.१.४५.३५ ( ६४ योगिनियों में से एक ), लक्ष्मीनारायण १.८३.२७( ६४ योगिनियों में से एक ) । kotaraakshi/ kotaraakshee/ kotarakshi

 

कोटवी देवीभागवत ७.३०.६८ ( कोटि तीर्थ में कोटवी नाम से देवी के वास का उल्लेख ), पद्म १.८१.१८ ( अन्धक से त्रस्त होकर पार्वती द्वारा कोटवी रूप धारण का उल्लेख ), मत्स्य १३.३७ (  कोटि तीर्थ में सती के कोटवी देवी रूप से विराजमान होने का उल्लेख ), स्कन्द ५.३.१९८.७४ ( कोटि तीर्थों में उमा की कोटवी नाम से स्थिति का उल्लेख ), हरिवंश २.१२० ( कोटवती : नागपाश में बद्ध अनिरुद्ध द्वारा मुक्ति हेतु कोटवती देवी की स्तुति, देवी द्वारा अनिरुद्ध को दर्शन देकर बन्धन मुक्त करने का वर्णन ), २.१२६.२३ ( कार्तिकेय की रक्षा हेतु कोटवी देवी का कृष्ण व कार्तिकेय के मध्य नग्न प्राकट्य का उल्लेख ), २.१२६.११२ ( बाणासुर की रक्षा हेतु कोटवी देवी के कृष्ण के समक्ष नग्न प्राकट्य का कथन ) । kotavee/kotavi

 

कोटि देवीभागवत ७.३०.६८ ( कोटि तीर्थ में कोटवी देवी के वास का उल्लेख ), पद्म ३.१८.८ ( कोटीश्वर युक्त कोटि तीर्थ का माहात्म्य : शिव द्वारा कोटि संख्यक राक्षसों के हनन से कोटि नाम धारण ), ३.२५.२५ ( रुद्रकोटि : देवदर्शन की इच्छा से आए हुए कोटि संख्यक ऋषियों को युगपद् दर्शन देने के लिए रुद्र द्वारा कोटि संख्यक रूप धारण करने से रुद्रकोटि नाम से प्रसिद्धि, तीर्थ में स्नान करने से अश्वमेध फल की प्राप्ति ), ब्रह्म २.७८ ( कोटि तीर्थ में किए गए समस्त कर्मों के कोटि गुण रूप होने से कोटि नाम धारण तथा कोटि तीर्थ का संक्षिप्त माहात्म्य ), मत्स्य १३.३७ ( कोटि तीर्थ में कोटवी रूप से सती के विराजमान होने का उल्लेख ), १०६.४४ ( कोटि तीर्थ में शरीर परित्याग का माहात्म्य ), १९१.७ ( कोटि दानवों के संहार तथा शूलपाणि महादेव के विराजित होने से कोटितीर्थ की कोटीश्वर नाम से प्रसिद्धि, कोटीश्वर तीर्थ का संक्षिप्त माहात्म्य ), वराह १४०.४७ ( कोकामुख क्षेत्र में कोटिवट तीर्थ के माहात्म्य का कथन ), १५२.६५ ( कोटि तीर्थ में स्नान से ब्रह्मलोक प्राप्ति का कथन ), १५४.३२ ( कोटितीर्थ में स्नान व प्राण - त्याग से ब्रह्मलोक प्राप्ति का कथन ), वायु ११२.३२ ( कोटि तीर्थ में पिण्ड दान से पितरों को स्वर्ग प्राप्ति तथा स्नान करके कोटीश्वर के दर्शन से कोटि जन्मों तक वेदपारग धनी ब्राह्मण होने का उल्लेख ), स्कन्द १.२.५२ ( कोटि तीर्थ के निर्माण के हेतु तथा माहात्म्य का वर्णन ), २.२.१२.९५ ( राजा इन्द्रद्युम्न द्वारा कोटीश्वर शिव का पूजन, कोटिलिङ्गेश द्वारा इन्द्रद्युम्न को वर प्रदान का उल्लेख ), ३.१.२७ ( कोटि तीर्थ का माहात्म्य : कृष्ण की मातुल वध दोष से मुक्ति ), ३.१.४४.११७ ( रावण वधोपरान्त ब्रह्महत्या से निवृत्ति हेतु राम द्वारा गन्धमादन पर्वत पर शिवलिङ्ग का निर्माण, लिङ्ग अभिषेक हेतु जल न मिलने पर राम द्वारा धनुष की कोटि से पृथ्वी का भेदन कर जल प्राप्ति, धनुष्कोटि से जल प्राप्त कर लिङ्गाभिषेक करने से कोटितीर्थ का निर्माण, कोटि तीर्थ में कृष्ण की मातुल वध दोष से निवृत्ति, कोटि तीर्थ के माहात्म्य का वर्णन ), ५.१.३६.२१ ( शिव के पादाङ्गुष्ठ का भूमि पर स्पर्श होने से कोटि पापों के नष्ट होने से कोटि तीर्थ की उत्पत्ति का उल्लेख ), ५.३.९६ ( कोटीश्वर :कोटि ऋषियों द्वारा स्थापित होने से कोटीश्वर नाम धारण , कोटीश्वर तीर्थ का संक्षिप्त माहात्म्य ), ५.३.११३ ( कोटि तीर्थ में कोटि ऋषियों को परम सिद्धि की प्राप्ति तथा कोटि तीर्थ का संक्षिप्त माहात्म्य ), ५.३.२०३ ( कोटि ऋषियों द्वारा शिव की स्थापना से कोटि नाम धारण, कोटि तीर्थ में किए गए दान, जप आदि के कोटि गुण होने का कथन ), ५.३.२१९, ५.३.२२४ ( कोटीश्वर तीर्थ का संक्षिप्त माहात्म्य ), ५.३.२३१.१२ ( रेवा - सागर सङ्गम पर कोटि तीर्थों की स्थिति का उल्लेख ), ६.५२.१३ ( रुद्रकोटि के माहात्म्य का वर्णन : कोटि  द्विजों को दर्शन देने हेतु रुद्र का युगपत् कोटि रूपों में प्राकट्य ), ७.१.१०.११(रुद्रकोटि तीर्थ का वर्गीकरण आकाश), ७.१.१०४ (कोटीश्वर लिङ्ग का संक्षिप्त माहात्म्य : कोटि ब्राह्मणों द्वारा लिङ्ग की स्थापना तथा पूजा से लिङ्ग का कोटीश्वर नाम ), ७.१.३५७ ( कोटीश्वर तीर्थ में स्नान व पूजन से कोटि यज्ञों के फल की प्राप्ति का उल्लेख ), ७.३.११ ( कोटीश्वर लिङ्ग का माहात्म्य : कोटि ऋषियों को कोटि लिङ्गों के रूप में युगपद् दर्शन ), ७.३.५० ( कोटि तीर्थ का माहात्म्य ), लक्ष्मीनारायण १.३८२.१६३(ऋषियों के शिष्यों की कोटि में गणना) ; द्र. धनुषकोटि । koti

 

कोटिनार लक्ष्मीनारायण ३.१९७.२ ( कोटिनार नगर के समीप स्थित पटोलक ग्रामवासी शाणधर कृषक को प्राग्जन्म के कर्म से कुष्ठ रोग प्राप्ति, हरिभक्ति से रोगमुक्ति तथा रक्षण का वर्णन ) ।

 

कोटीश्वर लक्ष्मीनारायण २.२१७.८५ ( एकद्वार प्रदेश के राजा कोटीश्वर द्वारा कृष्ण के सत्कार का उल्लेख ), कथासरित् ९.६.६४ ( बालकों का अन्वेषण करते हुए चन्द्रस्वामी ब्राह्मण का कोटीश्वर नामक वैश्य के साथ चित्रकूट गमन का उल्लेख ) ।

 

कोण गरुड ३.८.१२(निर्ऋति के कोणाधिप होने का उल्लेख), ३.२८.५७(कोणाधिप रूप में प्रवह वायु का उल्लेख), ब्रह्म १.२६.९ ( कोण आदित्य : भारतवर्ष के ओण्ड देश में सूर्य की कोण आदित्य नाम से प्रसिद्धि, कोण आदित्य तीर्थ का संक्षिप्त माहात्म्य तथा पूजा विधि का वर्णन ), भविष्य ३.३.३२.१८१ ( त्रिकोण : पृथ्वीराज - सेनानी त्रिकोण के वीरसिंह से युद्ध का उल्लेख ), मत्स्य १७९.२८( कोणा : अन्धकासुर युद्ध में अन्धकों के रक्तपान हेतु महादेव द्वारा सृष्ट अनेक मातृकाओं में से एक ), द्र. त्रिकोण । kona

 

कोदण्ड ब्रह्माण्ड ३.४.१७.४१( धनुर्वेद द्वारा देवी को चित्रजीव नामक कोदण्ड भेंट करने का उल्लेख ), ३.४.२९.११४ ( भण्ड से युद्ध के समय ललिता देवी द्वारा वाम हस्त की तर्जनी के नख से लक्ष्मण सहित कोदण्डराम की सृष्टि का उल्लेख ) ।

 

क्रोधनक लक्ष्मीनारायण २.९.५८ ( क्रोधनक नामक असुर का माया द्वारा कन्या बनकर बाल श्रीहरि का हरण, श्रीहरि द्वारा उत्पन्न अग्निदाह से क्रोधनक का पीडित होना तथा हरि की शरण में जाने का वर्णन ) ।

 

कोप स्कन्द १.१.१७.१३८( वृत्र व इन्द्र के संग्राम में अग्नि के तीक्ष्ण कोप से युद्ध का उल्लेख ), ३.१.७.१ ( महिषासुर - सेनानी चण्डकोप का देवी अम्बिका से युद्ध, देवी द्वारा चण्डकोप का वध ) ; द्र. यज्ञकोप ।

 

कोमल पद्म ५.६७.३९( कोमला : लक्ष्मीनिधि - पत्नी )

 

कोरञ्ज वायु ४३.१४ ( भद्राश्व देश के पांच कुलपर्वतों में से एक ) ।

 

कोरल स्कन्द ५.३.१८९.१४ ( विष्णु के वराह रूप द्वारा नर्मदा तट पर कोरल आदि ५ स्थानों में स्वयं को प्रकट करने का उल्लेख ) ।

 

कोल कूर्म २.४१.६३ ( अकोल्ल : अकोल्ल तीर्थ का संक्षिप्त माहात्म्य ), गणेश २.७६.३३ ( विष्णु द्वारा सिन्धु - सेनानी कोलासुर के हृदय में गदा से आघात करना ), गर्ग ५.२४.४ ( कंस के सखा तथा शूकरमुख कोल नामक दैत्य द्वारा राजा कोशारवि को जीतकर कोशारविपुर में निवास, प्रजा का पीडन, बलराम द्वारा कोल दैत्य का वध, राजा दृढाश्व का लोमश शाप से कोल दैत्य बनने का वर्णन ), पद्म ६.१५४.१३ ( कोल के वध हेतु श्रीवृक्ष पर आसीन भिल्ल द्वारा श्रीवृक्ष के पत्रों से अनायास शिवपूजा की कथा ), ६.१५७.९ ( कोल नामक असुर के हनन हेतु पिप्पलाद द्वारा कृत्या की उत्पत्ति, कृत्या द्वारा कोलासुर का वध ), मार्कण्डेय ८१.४/७८.४( कोलाविध्वंसी राजाओं द्वारा सुरथ राजा की पराजय तथा राज्य से च्युति का कथन ), शिव ५.४५.१७ ( कोला : शत्रु राजाओं द्वारा राजा सुरथ की कोला नामक राजधानी रौंदने का उल्लेख ), स्कन्द १.२.६२.२६( कोलाक्ष : क्षेत्रपालों के ६४ प्रकारों में से एक ), लक्ष्मीनारायण २.१६७.४१ ( कोलक : कोलक नृपति के लेपनाद ऋषि व कुटुम्ब के साथ यज्ञ में आगमन का उल्लेख ), २.१९८.९४ ( श्रीहरि के कोलक नृप के राष्ट्र में अभिगमन का उल्लेख ) । kola

 

कोलम्बा स्कन्द १.२.४७.२७ ( नव दुर्गाओं में एक, कोलम्बा देवी के माहात्म्य का वर्णन ) ।

 

कोलाट ब्रह्माण्ड ३.४.२१.८५ ( कोल्लाट : भण्ड के अनेक पुत्रों तथा सेनापतियों में से एक ), ३.४.२८.४२ ( भण्डासुर - सेनानी कोलाट के चण्डकाली से युद्ध का उल्लेख ) ।

 

कोलापुर ब्रह्माण्ड ३.४.४४.९७ ( ललिता देवी की ५१ पीठों में से एक ), शिव ५.४५.१७ ( शत्रु राजाओं द्वारा राजा सुरथ की कोला नामक राजधानी रौंदने का उल्लेख ), स्कन्द ४.१.५.७८ ( असुर वध के पश्चात् महालक्ष्मी के कोलापुर में वास का उल्लेख ) ; द्र. कोल्हापुर

 

कोलार लक्ष्मीनारायण २.८३.९४ ( कोलार प्रभृति ४ सरोवरों का श्रीहरि की शरण में जाकर परमपद प्रदान करने हेतु प्रार्थना, श्रीहरि की कृपा से कोलार आदि चारों सरोवरों को तीर्थ, भक्त तथा मुक्त रूपों की प्राप्ति का कथन ) ।

 

कोलाहल पद्म ६.१२.२३ ( जालन्धर - सेनानी कोलाहल के माल्यवान से युद्ध का उल्लेख ), ब्रह्माण्ड १.२.१६.२१ ( भारतवर्ष का एक पर्वत ), २.३.७२.७६ ( १२वें देवासुर सङ्ग्राम का नाम ), मत्स्य ४७.४५ ( १२वें देवासुर सङ्ग्राम का नाम ), ४८.११( सभानर - पुत्र, संजय - पिता, मनु वंश ), वामन ६५.१०९ ( कपि तथा घृताची द्वारा कोलाहल पर्वत पर आनन्दक्रीडा ), वायु १०६.५( गयासुर द्वारा कोलाहल पर्वत पर हजार वर्ष तक घोर तपस्या करने का उल्लेख ), विष्णु ३.१८.७३ ( पाषण्ड के साथ वार्तालाप से राजा तधनु के कोलाहल पर्वत पर शृगाल योनि में उत्पन्न होने का उल्लेख ), स्कन्द ४.२.६१.१९५ ( विष्णु के कोलाहल नृसिंह रूप द्वारा दैत्य दानवों के मर्दन तथा नामोच्चार से पापनाश का उल्लेख ) । kolaahala/ kolahala

 

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