Puraanic contexts of words like Kaumaari, Kaumudi, Kaushalyaa, Kaushaambi, Kaushika etc. are given here.

कौमारी अग्नि ५०.१९ ( कौमारी देवी की प्रतिमा निर्माण में लक्षणों का उल्लेख ), १४६.१५ ( कौमारी देवी की आठ शक्तियों हुताशना आदि के नामोल्लेख ), देवीभागवत ५.२८.२२ ( शुम्भ से युद्ध के समय कुमार कार्तिकेय की शक्ति कौमारी का मयूर पर आरूढ होकर युद्ध में सहायतार्थ चण्डिका के पास गमन का उल्लेख ), ब्रह्माण्ड ३.४.१९.७ ( चक्रराज रथेन्द्र के पूर्वार्ध भाग में स्थित आठ शक्ति देवियों में से एक ), ३.४.३६.५८ ( ललिता देवी के चिन्तामणि गृह में ब्राह्मी, माहेश्वरी, कौमारी प्रभृति अष्ट देवियों की स्थिति का उल्लेख ), मत्स्य १७९.९ ( अन्धकासुर के रक्तपानार्थ महादेव द्वारा सृष्ट मानस मातृकाओं में से एक ), २६१.२७ ( कुमार के समान ही कौमारी की प्रतिमा में देवी को मयूर पर आसीन, लाल वस्त्र से सुशोभित, शूल शक्तिधारी तथा शर व केश से विभूषित करने का कथन ), वामन ५६.५ ( चण्डिका देवी के कण्ठ से कौमारी मातृका की उत्पत्ति का उल्लेख ), वराह २७.३६ (अष्ट मातृकाओं के अन्तर्गत कौमारी मातृका के मोह रूप होने का उल्लेख ), विष्णुधर्मोत्तर २.१३२.१०,१५ ( कौमारी नामक शान्ति के ताम्र वर्णीय तथा अन्तरिक्ष स्थानीय होने का उल्लेख ), २.१३३.१४ ( बालकों से सम्बन्धित उपद्रव उपस्थित होने पर कौमारी शान्ति कराने का उल्लेख ), स्कन्द ४.२.७०.२९ ( स्कन्देश्वर के समीप मयूरारूढा कौमारी देवी के दर्शन से महाफल प्राप्ति का उल्लेख ), ५.१.३७.२० ( अन्धकासुर के रुधिर से असुरों के उत्पन्न होने पर देवों द्वारा मातृकाओं की सृष्टि प्रसंग में कुमार द्वारा कौमारी देवी की उत्पत्ति का उल्लेख ), लक्ष्मीनारायण १.५४३.२३ ( अष्ट मातृकाओं में से एक, मत्सर से उत्पत्ति ) । kaumaaree/kaumaari/ kaumari

 

कौमुदी भविष्य २.२.८.१३२( आश्विन् पूर्णिमा के कौमुदी नाम का उल्लेख ), ४.१४० ( दीपावली पर बलि उत्सव का कौमुदी नाम तथा कौमुदी शब्दार्थ कथन ), लिङ्ग १.४९.६३( कौमुद वन में विष्णु प्रभृति महात्माओं के निवास का उल्लेख ), स्कन्द २.२.३९.३२ ( कौमुदी नामक भगवद् उत्थापन महोत्सव का वर्णन ), २.४.९.६९ टीका ( कौमुदी शब्द की निरुक्ति ), २.४.१०.५५( कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा को कौमुदी उत्सव की विधि, बलि पूजा व महत्त्व का वर्णन ), ४.२.५८.११२( विज्ञान कौमुदी नामक पुराङ्गना द्वारा बौद्ध धर्म के अनुकूल देह सौख्य का प्रतिपादन ), लक्ष्मीनारायण १.१९८.५०( आनाभिपत्तल माला की कौमुदी से उपमा ), ३.४.४७ (धूम्र असुर द्वारा चन्द्रमा को उदरस्थ करना, नारायण द्वारा युक्तिपूर्वक धूम्र असुर का वध, धूम्र के उदर से चन्द्रमा तथा कौमुदी के बहिरागमन का वर्णन ), ४.१०१.८४ ( कौमुदी का श्रीकृष्ण नारायण की पत्नी सरस्वती की सुता रूप में उल्लेख ), द्र. कुमुद kaumudee/kaumudi

 

कौमोदकी भागवत ८.४.१९ ( कौमोदकी गदा के विष्णु रूप होने का उल्लेख ), ८.२०.३१ ( सुदर्शन चक्र, शार्ङ्ग धनुष तथा कौमोदकी गदा आदि के वामन रूप धारी हरि की सेवा में उपस्थित होने का उल्लेख ), १०.७८.८ ( कृष्ण द्वारा कौमोदकी गदा से करूष - नरेश दन्तवक्त्र के वध का उल्लेख ), विष्णु ५.२२.६ ( जरासन्ध से युद्ध हेतु शार्ङ्ग धनुष, कौमोदकी गदा, हल तथा मुसल के कृष्ण - बलराम की सेवा में उपस्थित होने का उल्लेख ), हरिवंश २.९०.३७ ( कृष्ण - निकुम्भ युद्ध में कृष्ण द्वारा कौमोदकी गदा से प्रहार का कथन ) । kaumodakee/ kaumodaki

 

कौरर ब्रह्माण्ड २.३.७.४५४ ( कौरर पर्वत पर गरुड गण के निवास का उल्लेख ) ।

 

कौरव भविष्य ३.३.३२.१६ ( कलियुग में अनेक राजपुत्रों के रूप में कौरवांशों की उत्पत्ति का वर्णन ), स्कन्द ७.१.३५० ( कौरवेश्वरी देवी का संक्षिप्त माहात्म्य ) ।

 

कौर्म मत्स्य २९०.६ ( तीस कल्पों में से १५वें कौर्म कल्प के ब्रह्मा की पूर्णिमा तिथि होने का उल्लेख ) ।

 

कौलपति वामन ४७.५२ ( स्थाणु तीर्थ के मठ में देवकृत्य में रत कौलपति नामक महन्त की अधर्मपूर्ण कर्मविपाक से श्वान योनि में उत्पत्ति का उल्लेख ) ।

 

 नामक आठ देवियों में से एक ) ।

 

कौलेय स्कन्द ४.२.७४.५४ ( कौलेय प्रभृति गणों द्वारा काशी में पूर्व दिशा की रक्षा का उल्लेख ) ।

 

कौशल ब्रह्माण्ड १.२.१४.२४ ( क्रौञ्च द्वीपाधिपति द्युतिमान् के पुत्र कुशल के नाम पर कौशल राज्य के नामकरण का उल्लेख ), भागवत ११.१६.२४ (विभूति योग के अन्तर्गत कृष्ण के कौशलों में आन्वीक्षिकी होने का उल्लेख ) । kaushala

 

कौशल्या भविष्य १.११५ ( गौतमी द्वारा कौशल्या के सौख्यादि का कारण पूछने पर कौशल्या का आदित्य पूजा को ही समस्त सौख्यादि का हेतु बतलाना ), ४.१००.१७ ( वैशाखी कार्तिकी, माघी प्रभृति तिथियों के माहात्म्य के प्रसंग में लक्ष्मण व सीता सहित राम के वन चले जाने पर भी अविश्वस्त कौशल्या को तिथि श्रवण से सहसा विश्वास प्राप्ति का कथन ), भागवत ९.२४.४८ ( वसुदेव - पत्नी , केशी - माता ), मत्स्य ४४.४७ ( सात्वत - पत्नी, भजि, भजमान, वृष्णि आदि की माता ), ४७.१४ ( श्रीकृष्ण की रुक्मिणी प्रभृति सोलह हजार पत्नियों में से एक ), १९६.९ ( कौशल्य ?:अङ्गिरस वंश के गोत्र प्रवर्तक ऋषियों में से एक ), वायु ९९.६१ ( सात्वत - पत्नी, भजिन, भजमान,देवावृध, अन्धक, वृष्णि प्रभृति की माता ) । kaushalyaa

 

कौशाम्बी गर्ग ५.२४.१३ ( कोल दैत्य से पीडित प्रजा द्वारा रक्षा हेतु बलराम से प्रार्थना, बलराम का कौशाम्बी नगरी में गमन तथा कोल दैत्य के वध का वृत्तान्त ), ७.२२.२१ ( कौशाम्बी नगरी के राजा कुशाम्ब द्वारा प्रद्युम्न को भेंट प्रदान न करने पर प्रद्युम्न की आज्ञा से रुक्मिणी - कुमारों द्वारा कौशाम्बी पर आक्रमण, भय विह्वल कुशाम्ब द्वारा प्रद्युम्न को भेंट प्रदान का कथन ), भागवत ९.२२.४० ( गङ्गा द्वारा हस्तिनापुर नगर के डुबा दिए जाने पर असीम कृष्ण के पुत्र नेमिचक्र द्वारा कौशाम्बी पुरी में निवास करने का उल्लेख ), मत्स्य ५०.७९ ( गङ्गा द्वारा हस्तिनापुर नगर के डुबा दिए जाने पर अधिसोमकृष्ण के पुत्र विवक्षु द्वारा कौशाम्बी नगरी में निवास करने का उल्लेख ), वायु ९९.२७१ ( गङ्गा द्वारा नाग / हस्तिनापुर नगर के डुबा दिए जाने पर अधिसामकृष्ण के पुत्र निर्वक्त्र द्वारा कौशाम्बी पुरी में निवास करने का उल्लेख ), विष्णु ४.२१.८ (गङ्गा द्वारा हस्तिनापुर के डुबा दिए जाने पर अधिसीमकृष्ण के पुत्र निचक्नु द्वारा कौशाम्बी पुरी में निवास का उल्लेख ), कथासरित् २.६.८ ( वत्सराज उदयन का वासवदत्ता के साथ विन्ध्य - शिविर से अपने नगर कौशाम्बी की ओर प्रस्थान करने का उल्लेख ), ६.४.३८ ( वत्स देश की कौशाम्बी नामक नगरी में वत्सेश्वर के राज्य करने का उल्लेख ), ६.५.४४ ( वत्सराज से मिलने हेतु कलिङ्गसेना के कौशाम्बी नगरी में गमन का उल्लेख ), ८.१.४८ ( सूर्यप्रभ को वरण करने वाली ७ राजकुमारियों में कौशाम्बी नगरी - पति जनमेजय की परपुष्टा नामक कन्या का उल्लेख ) ; द्र. कोशाम्बी, निष्कौशाम्बी kaushaambee/ kaushaambi/ kaushambi

 

कौशिक अग्नि १८४.१३ ( बुधाष्टमी व्रत की कथा में धीर व रम्भा के पुत्र कौशिक द्विज का बुधाष्टमी व्रत के प्रभाव से अयोध्या का राजा बनने तथा अपने माता - पिता को नरक यातना से मुक्त कर स्वर्ग पहुंचाने का वर्णन ), गणेश १.५२.२६ ( कौशिक द्वारा क्षत्रिय को गजानन की महिमा का वर्णन ), गरुड १.१३२.९ ( बुधाष्टमी व्रत के प्रभाव से वीर व रम्भा के पुत्र कौशिक को अयोध्या के राज्य की प्राप्ति का कथन ), २.२.७५(मित्रहन्ता के कौशिक बनने का उल्लेख),  देवीभागवत १२.४.९( जङ्घाओं में कौशिक का न्यास ), ब्रह्म २.२३.७ ( अनावृष्टि से पुत्र, पत्नी, शिष्यादि को क्षुधा पीडित देखकर कौशिक / विश्वामित्र का शिष्यों को भोजन हेतु कुछ भी ले आने के लिए आदेश, शिष्यों का मृत कुत्ते को लाना, कुत्ते को पकाना तथा सर्वप्रथम देवों को अर्पित करना, इन्द्र द्वारा मांस के स्थान पर मधु समर्पित करना, विश्वामित्र का मधु को अस्वीकार करना, भयभीत इन्द्र द्वारा अमृत - जल की वृष्टि, प्रजा के तृप्त हो जाने पर देवों को अमृत जल से तृप्त करके अन्त में पुत्रों , शिष्यों तथा भार्या सहित कौशिक द्वारा अमृत जल के पान का वृत्तान्त ), ब्रह्माण्ड १.२.२०.१९ (अतल नामक प्रथम तल में कौशिक नाम के नगर का उल्लेख ), १.२.३५.५३ ( सामगश्रेष्ठ कृत के अनेक शिष्यों में से एक ), २.३.६६.७३ ( कौशिक गोत्र नामों का उल्लेख ), २.३.७१.१७४, १९३ ( वसुदेव तथा वैशाली - पुत्र, वसुदेव द्वारा कौशिक को सन्तान रहित वृक को दान करने का उल्लेख ), भागवत १.९.७ ( शरशय्या पर लेटे हुए भीष्म से मिलने हेतु कौशिक प्रभृति ऋषियों के आगमन का उल्लेख ), ६.८.३८ ( कौशिक गोत्री ब्राह्मण द्वारा नारायण कवच धारण तथा प्रभाव का कथन ), ६.१८.६४ ( इन्द्र का एक नाम ), मत्स्य ९.३२ ( सावर्णि मन्वन्तर के सात ऋषियों में से एक ), २०, २१ ( कौशिक ऋषि के सात पुत्रों को श्राद्धकर्म प्रभाव से पांच जन्मों में ही उत्तम योग साधन द्वारा परमपद की प्राप्ति का वृत्तान्त ), १४५.९३ ( परमर्षि, महर्षि , ऋषि, ऋषिक तथा ऋषि- पुत्रक नामक पांच प्रकार के ऋषियों में ऋषि के अन्तर्गत कौशिक का उल्लेख ), मार्कण्डेय १६.१४ ( कौशिक नामक कुष्ठी ब्राह्मण के पाद ताडन से माण्डव्य को व्यथा प्राप्ति, माण्डव्य  द्वारा कौशिक को शाप प्रदान ), लिङ्ग २.१.९ ( भगवद् भक्ति से कौशिक प्रभृति विप्रों को विष्णु के सान्निध्य की प्राप्ति का वृत्तान्त ), वायु ६१.४६ ( २४ संहिताओं के प्रणेता हिण्यनाभ के अनेक शिष्यों में से एक ), ६४.२५ ( वैवस्वत मन्वन्तर के सिद्ध सप्तर्षियों में कौशिक का उल्लेख ), ९५.३६-३८ ( विदर्भ - पुत्र, चेदि - पिता, क्रोष्टु वंश ), ९६.१७२ ( वसुदेव व वैशाखी - पुत्र, वृष्णि वंश ), ९६.१८२ ( वसुदेव व सैव्या - पुत्र, वृष्णि वंश ), ९६.१८९ ( अपुत्र वस्तावनि को दत्तक रूप में प्राप्त एक पुत्र ), १०६.३५ ( गयासुर के शरीर पर यज्ञकर्म सम्पादन हेतु ब्रह्मा द्वारा सृष्ट मानस पुरोहितों में से एक ), विष्णु ४.७.११ ( इन्द्र के ही कौशिक रूप में उत्पन्न होने का उल्लेख ), ४.१५.२५ ( वसुदेव व वैशाली - पुत्र ), हरिवंश १.१९.४ ( भरद्वाज - पुत्रों का योगभ्रष्ट होकर कुरुक्षेत्र में कौशिक के पुत्रों के रूप में उत्पन्न होने का उल्लेख ), १.२१+ ( कौशिक / विश्वामित्र के सात पुत्रों को श्राद्धकर्म के प्रभाव से उत्तम जन्मों की प्राप्ति तथा अन्त में उत्तम योग साधन द्वारा परमपद की प्राप्ति का वृत्तान्त ), ३.३७.३ ( उत्पन्न होते ही ब्राह्मणों द्वारा कुशों से धारण करने के कारण इन्द्र द्वारा कौशिक नाम प्राप्ति का उल्लेख ), स्कन्द ३.१.११.२७(वरुण का कौशिक असुर से युद्ध), ३.२.९.६८ ( कौशिक गोत्र में ऋषियों के प्रवर व गुण का उल्लेख ), ५.२.२१.२ ( कौशिक राजा द्वारा कुक्कुटों का भक्षण, कुक्कुटराज ताम्रचूड द्वारा कौशिक राजा को दिन में मनुष्य तथा रात्रि में कुक्कुट हो जाने का शाप, कुक्कुटेश्वर लिङ्ग के पूजन से कौशिक की शाप से मुक्ति का वर्णन ), ७.१.२१४ ( कौशिकेश्वर लिङ्ग का संक्षिप्त माहात्म्य : कौशिक द्वारा वसिष्ठ - पुत्रों की हत्या के दोष से मुक्ति हेतु स्थापना ), वा.रामायण १.३४.६ (  कुश नामक कुल में उत्पन्न होने के कारण विश्वामित्र के कौशिक नाम का उल्लेख ), लक्ष्मीनारायण १ .३९१.९ ( कुष्ठ रोग से ग्रस्त कौशिक नामक ब्राह्मण के पतिव्रता पत्नी के प्रभाव से रोग मुक्त होने का वृत्तान्त ), ३.५८.१० ( कौशिक - प्रभृति गायकों के दृष्टान्त द्वारा जनार्दन के चरणों में सर्वार्पण से हरिपद प्राप्ति का वृत्तान्त ), कथासरित् २.२.७५ ( कौशिक ऋषि की तपस्या में विघ्न उपस्थित करने पर क्रुद्ध ऋषि द्वारा रूप यौवन सम्पन्न स्त्री को राक्षसी होने का शाप, केश ग्रहण होने पर शाप से  मुक्ति का कथन ) ; द्र. प्रज्ञप्तिकौशिक । kaushika

 

कौशिकाम्ब लक्ष्मीनारायण २.७४.१२ ( कौशिकाम्ब ऋषि के सहयोग तथा प्रभु भक्ति से त्र्यष्ट कारु अन्त्यज के पत्नी सहित ब्रह्मलोक गमन का वृत्तान्त ), २.७५.३४ ( हिरण्यकेशी ऋषि के गुरुकुलस्थ बालकों का सन्तापनादि दैत्यों द्वारा नाश हो जाने पर कौशिकाम्ब ऋषि का सहायतार्थ आगमन तथा रक्षा हेतु हरि मन्दिर में गमन का वृत्तान्त ) । kaushikaamba

 

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