Puraanic contexts of words like Kuurma, Kuushmaanda, Krikala, Krikalaasa, Krita etc. are given here.

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कूर्मग्रीव वामन ५७.८६ (कृत्तिकाओं द्वारा कार्तिकेय को प्रदत्त पांच गणों में से एक ), ५८.६३ ( कार्तिकेय - गण कूर्मग्रीव द्वारा दैत्यों के संहार का उल्लेख ) ।

 

कूर्मपुराण नारद १.१०६ ( कूर्म पुराण के अन्तर्गत विषयों का कथन ), भागवत १२.७.२४ ( अठ्ठारह पुराणों में से एक ), मत्स्य ५३.४८ ( कूर्म रूपी जनार्दन द्वारा वर्णित धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष के माहात्म्य से युक्त कूर्मपुराण को स्वर्ण निर्मित कूर्म के साथ दान करने से एक सहस्र गोदान के फल की प्राप्ति का कथन ), वायु १०४.९ ( १८ महापुराणों में से एक कूर्मपुराण के १७ हजार शलोकों से युक्त होने का उल्लेख ), विष्णु ३.६.२३ ( १८ महापुराणों में १५वें महापुराण के रूप में कूर्म का उल्लेख ) ।

 

कूर्मपृष्ठ स्कन्द ७.४.१७.३४ ( द्वारका के उत्तर द्वार पर स्थित दानव का नाम ) ।

 

कूष्माण्ड पद्म ४.२१.२४ ( कार्तिक व्रत में कूष्माण्ड भोजन से धन हानि का उल्लेख - कूष्मांडे धनहानिः स्यात्बृहत्यां न स्मरेद्धरिम्  ), ६.१२.४ ( जालन्धर - सेनानी सर्परोमा का कूष्माण्ड गण के साथ युद्ध का उल्लेख ), ब्रह्मवैवर्त्त ३.४.६३ ( पुण्यक व्रत विधान के अन्तर्गत पुत्र प्राप्ति हेतु कूष्माण्ड, नारिकेल प्रभृति फलों को श्रीहरि को समर्पित करने का उल्लेख ), ब्रह्माण्ड २.३.७.७४ ( अज व शण्ड नामक कूष्माण्डों द्वारा ब्रह्मधना व जतुधना नामक कन्याओं का राक्षस से विवाह करने का वर्णन- आससाद पिशाचौ वै त्वजः शण्ढश्च तावुभौ । कपिपुत्रौ महावीर्यौं कूष्माण्डौ पूर्वजावुभौ ॥ ), २.३.७.३७४, ३८४ (कपिशा के पुत्रों कूष्माण्डों के १६ गणों के नाम - छगलश्छगला चैव वक्रो वक्रमुखी तथा ॥ दुष्पूरः पूरणा चैव सूची सूचीमुखस्तथा । विपादश्च विपादी च ज्वाला चाङ्गारकस्तथा ॥ ), २.३.४१.२९ ( शिव मन्दिर में प्रवेश से पूर्व परशुराम द्वारा शिव द्वार पर यक्षों, विद्याधरों, भूत - प्रेतों, कूष्माण्डों आदि के दर्शन का उल्लेख ), २.३.७४.९९ ( कूष्माण्ड गौतम : कक्षीवान के सहस्र पुत्रों का नाम - ब्राह्मण्यं प्राप्य कक्षीवान्सहस्रमसृजत्सुतान् ॥  कूष्माण्डा गौतमास्ते वै स्मृताः कक्षीवतः सुताः । ), भविष्य १.२३.२३ (मितश्च सम्मितश्चैव तथा च शालकंटकः । कूष्माण्डो राजश्रेष्ठास्तेऽग्नयः स्वाहासमन्विताः ।। ), भागवत ६.८.२४ ( नारायण कवच में श्रीकृष्ण की कौमोद की गदा से कूष्माण्ड, यक्ष, राक्षसादि ग्रहों को कुचल डालने की प्रार्थना ), १०.६.२७ ( भगवान् विष्णु के नामोच्चारण से हाकिनी, राक्षसी और कूष्माण्डों आदि बालग्रहों के भयभीत होकर नष्ट हो जाने का उल्लेख ), मत्स्य ५८.३४ ( कूप, तडाग आदि प्रतिष्ठा विधान के अन्तर्गत दक्षिण द्वार पर स्थित यजुर्वेदी विद्वान् द्वारा रुद्र, सोम, कूष्माण्ड सम्बन्धी सूक्तों के जप का निर्देश ), ९६.५ ( सर्वफलत्याग व्रत के विधान में कूष्माण्ड प्रभृति १६ फलों को स्वर्ण से निर्मित कराने का निर्देश - कूष्माण्डं मातुलिङ्गञ्च वार्ताकम्पनसं तथा।......कालधौतानि षोडश  ),१८३.६३ ( अविमुक्त क्षेत्र में महादेव के साथ कूष्माण्ड, जयन्त तथा गजतुण्ड प्रभृति गणों के विराजमान होने का उल्लेख ), वराह १९७.४२ ( यमकिङ्करों में कूष्माण्डों का उल्लेख ), वायु ६९.२५७ ( कूष्माण्डी : पुलह व कपिशा - पुत्री कूष्माण्डी से १६ पिशाच युग्मों के उत्पन्न होने का उल्लेख ), ६९.२६५/२.८.२५९ ( कूष्माण्डों के १६ गणों के नाम, स्वभाव तथा वेषादि का वर्णन - अजामुखा वक्रमुखाः पूरिणः स्कन्दिनस्तथा।विपादाङ्गारिकाश्चैव कुम्भपात्राः प्रकुन्दकाः ॥.....), विष्णु १.१२.१३ ( विविध रूपधारी कूष्माण्डों तथा स्वयं इन्द्र द्वारा ध्रुव की समाधि भङ्ग करने का प्रयास - कूष्माण्डा विविधै रूपैर्महेन्द्रेण महामुने । समाधिभङ्गमत्यन्तमारब्धाः कर्तुमातुराः ॥ ), शिव १.१५.५० ( कूष्माण्ड दान से पुष्टि व सर्व - समृद्धि प्राप्ति का उल्लेख - सर्वं सर्वसमृद्ध्यर्थं कूष्मांडं पुष्टिदं विदुःप्राप्तिदं सर्वभोगानामिह चाऽमुत्र च द्विजाः ), स्कन्द २.४.३१.२ ( कार्तिक शुक्ल नवमी में विष्णु द्वारा कूष्माण्ड दैत्य का वध, कूष्माण्ड वल्ली की दैत्य रोमों से उत्पत्ति, कूष्माण्ड दान से फल प्राप्ति का कथन ), ४.२.५७.७२ ( महोत्पात प्रशान्ति हेतु कूष्माण्ड नामक विनायक की पूजा का निर्देश - प्राच्या देहलिविघ्नेशात्कूश्मांडाख्यो विनायकः ।। पूजनीयः सदा भक्तेर्महोत्पात प्रशांतये ।। ), ६.३६.३४ ( वशीकरण हेतु कूष्माण्डी जपने का निर्देश - वशीकरणहेतोर्यः कूष्मांडीः प्रजपेन्नरः ॥
शत्रवोऽपि वशे तस्य किं पुनः प्रमदादयः ॥
),६.२०६.११२ ( विश्वेदेवों  के अश्रुओं से कूष्माण्डों की उत्पत्ति, कूष्माण्ड शब्द की निरुक्ति, ब्रह्मा द्वारा कूष्माण्डों की भोजन व्यवस्था का निरूपण - कुशब्देन स्मृता भूमिः संसिक्ता चाश्रुणा यतः ॥ ततोंऽडानि च जातानि तेभ्यो जाता अमी घनाः ॥ कूष्मांडा इति विख्याता भविष्यंति जगत्त्रये ॥ ततस्तांश्च त्रिधा कृत्वा क्रमेणैवार्पयत्तदा ॥ ), लक्ष्मीनारायण १.५३७.६३ ( कूष्माण्ड मुनि के स्थान कूष्माण्डेश्वर में कृष्ण नारायण का आगमन तथा मुनि द्वारा सत्कार ), २.१२.२४,३५ ( दमनक दैत्य द्वारा कूष्माण्ड प्रभृति सेनानायकों को लोमश आश्रम से बालकृष्ण व कन्याओं के हरण का आदेश, कूष्माण्ड का बालकृष्ण के परमात्मत्व का वर्णन करते हुए कन्या हरण से विरत होने की प्रार्थना ), ३.२२.८९ ( अश्वमेध में अश्व की बलि के स्थान पर कूष्माण्ड फल की बलि देने का निर्देश - अश्वो योऽर्पित एवाऽपि देवाय देवतायनः ।। कुष्माण्डाख्यं फलं देयं वह्नये देवताजुषे ।) । kooshmaanda/ kuushmaanda/ kushmanda

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कृकण विष्णु ४.१३.२ ( भजमान के ६ पुत्रों में से एक ) ।

 

कृकल अग्नि ८७.५(शान्ति कला/तुर्यावस्था के २ प्राणों में से एक, अलम्बुषा नाडी में स्थित कृकल/कृकर वायु की प्रकृति का कथन ), २१४.१३( कृकल वायु के भक्षण का हेतु होने का उल्लेख ), पद्म २.४१+, २.५९ ( कृकल नामक वैश्य का अपनी पतिव्रता पत्नी सुकला का परित्याग कर तीर्थयात्रा हेतु गमन, कृकल का धर्म से संवाद तथा धर्म द्वारा कृकल को सुकला के श्रेष्ठ पातिव्रत्य तथा चरित्र की महानता के समक्ष तीर्थयात्रा की व्यर्थता को निरूपित करते हुए गृह में किए गए कृत्यों  से ही देवों , पितरों के संतुष्ट होने का वर्णन ) । krikala

 

कृकलास गरुड २.४६.२१(गुरुदाराभिलाषी के कृकलास बनने का उल्लेख), भागवत १०.६४.६ ( ब्राह्मण के प्रति हुए अपराध से राजा नृग को कृकलास / गिरगिट योनि की प्राप्ति, कृष्ण के करकमलों के स्पर्श से मुक्ति का वर्णन ), विष्णुधर्मोत्तर १.२२१.१० ( मरुत्त के यज्ञ में रावण द्वारा उत्पन्न त्रास से कुबेर के कृकलास रूप धारण कर पलायन करने का उल्लेख ), स्कन्द ३.१.५२.९०(कुपात्र दान से कृकलास बनने का उल्लेख), ५.३.१५९.२१ ( गुरु - दारा से गमन की अभिलाषा करने पर कृकलास योनि प्राप्ति का उल्लेख ), ७.४.१० ( कृकलास / नृग तीर्थ के माहात्म्य के प्रसंग के अन्तर्गत कृष्ण द्वारा राजा नृग के कूप से उद्धार की कथा ), वा.रामायण ७.१८.५ ( राजा मरुत्त के यज्ञ में रावण से भयभीत होने पर कुबेर देवता के कृकलास नामक तिर्यक् योनि में प्रवेश करने का उल्लेख ), लक्ष्मीनारायण १.१५५.५० ( अलक्ष्मी के कर्ण की कृकलास से उपमा ), १.२२२ ( राजा नृग को द्विज - प्रदत्त शाप के कारण कृकलास योनि की प्राप्ति, श्रीकृष्ण के स्पर्श से शाप से मुक्ति की कथा ), २.१९.६० ( कृकलासी : कर्कि राशि के देवता रूप में कृकलासी का उल्लेख ), २.१२२.२( कर्कायन ऋषि का जल में कृकलास रूप में वास करने का उल्लेख ) । krikalaasa

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कृकवाकु मत्स्य ११.१७ ( विमाता छाया के शाप से यम के शीर्ण - पाद होने पर पैरों के कृमि - भक्षण हेतु विवस्वान् द्वारा यम को कृकवाकु / मुर्गा प्रदान करने का कथन ), विष्णु ३.१६.१२ ( कृकवाकु, श्वान, सूकर प्रभृति के देख लेने पर श्राद्ध की अपवित्रता का उल्लेख ) । krikavaaku

 

कृच्छ्र गरुड २.४.१६३(कृच्छ्र वर्त की परिभाषा), मत्स्य २२७.४१ ( चोरी करने पर अर्धकृच्छ्रव्रत तथा कृच्छ्रसान्तपन व्रत आदि के अनुष्ठान से पापशुद्धि का उल्लेख ), वायु १८.१६ ( कृच्छ्रातिकृच्छ्र : अज्ञात रूप में पशु और मृग की हिंसा हो जाने पर यतियों हेतु विहित प्रायश्चित्त, विकल्प में चान्द्रायण के विधान का उल्लेख ), १८.२१ ( कृच्छ्र प्रायश्चित्त से पाप मुक्ति का उल्लेख ), स्कन्द ४.२.९६.५१ (व्यास द्वारा पादकृच्छ्र, पर्णकृच्छ्र, सौम्यकृच्छ्र, अतिकृच्छ्र, कृच्छ्रातिकृच्छ्र, तथा तप्तकृच्छ्र प्रभृति व्रतों के स्वरूप का कथन ), लक्ष्मीनारायण १.२६२.८ ( कार्तिक मास में करणीय कृच्छ्र व्रतों का निरूपण ) । krichhra

 

कृणु स्कन्द २.७.२१.६४ ( तप के कारण कृणु नामक मुनि के शरीर पर वल्मीक निर्माण से कृणु की वल्मीक नाम से प्रसिद्धि, वाल्मीकि नामक पुत्र की प्राप्ति ) ।

 

कृत ब्रह्माण्ड १.२.३५.४९ ( हिरण्यनाभ - शिष्य कृत द्वारा सामवेद का २४ खण्डों में विभाजन कर शिष्यों के अध्यापन का उल्लेख ), २.३.७.१३० ( देवजनी व मणिवर के अनेक यक्ष पुत्रों में से एक ), भागवत ९.१७.१७ ( जय -पुत्र, हर्यवन - पिता, क्षत्रवृद्ध वंश ), ९.२४.४६ ( वसुदेव व रोहिणी के अनेक पुत्रों में से एक ), १२.६.८० ( हिरण्यनाभ - शिष्य कृत द्वारा स्वशिष्यों को सामवेद की २४ संहिताएं पढाने का उल्लेख ), मत्स्य ४६.५ ( सुग्रीव- पिता, वसुदेव - भगिनी श्रुतदेवी के पति ), ४९.७५ ( सन्नतिमान्- पुत्र, हिरण्यनाभ कौसल्य - शिष्य कृत द्वारा सामवेद संहिताओं का चौबीस भागों में विभाजन, उग्रायुध - पिता, पौरव वंश ), वायु ९१.९६ ( विश्वामित्र के शुन:शेप आदि अनेक पुत्रों में से एक ), ९४.९ ( कनक के चार पुत्रों में से एक ), ९६.१३९ ( हृदिक के दस पुत्रों में से एक ), ९९.१८९ (सन्नतिमान्- पौत्र, सनति - पुत्र तथा हिरण्यनाभ - शिष्य कृत द्वारा सामवेद का २४ खण्डों में विभाजन ), ९९.२१९ ( च्यवन - पुत्र, विश्रुत - पिता, तुर्वस्वादि वंश ), १०१.११/२.३९.११( ७ कृत व ७ अकृत लोकों का कथन ), विष्णु ४.९.२६ ( विजय - पुत्र, हर्यधना - पिता, रजि वंश ), ४.१९.५० ( हिरण्यनाभ द्वारा सन्नतिमान् - पुत्र कृत को योगाध्यापन, कृत द्वारा २४ साम संहिताओं का निर्माण ), हरिवंश १.२०.४२ (सन्नति- पुत्र, उग्रायुध - पिता, हिरण्यनाभ - शिष्य, सामसंहिता के विभागकर्त्ता ), महाभारत शल्य ३३.८( दुर्योधन के कृती होने का उल्लेख ), कथासरित् ६.२.१३ (कृत नामक राजा की सात सुन्दरी कन्याओं के वैराग्य धारण तथा परहित साधन की कथा ) । krita

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कृतक ब्रह्माण्ड २.३.७१.१७२ ( वसुदेव व मदिरा के दस पुत्रों में से एक ), भागवत ९.२४.४८ ( वसुदेव व मदिरा के अनेक पुत्रों में से एक ), विष्णु ४.१५.२३ ( वसुदेव व मदिरा के दस पुत्रों में से एक ), ४.१९.७९ ( च्यवन - पुत्र, उपरिचर वसु - पिता ) ।*

 

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