Puraanic contexts of words like Kaushiki, Kausalyaa, Kaustubha, Kratu etc. are given here.

कौशिकी देवीभागवत ५.२३.२ ( देवों की सहायतार्थ पार्वती के शरीर से नि:सृत अम्बिका का लोक में  कौशिकी नाम से प्रसिद्ध होने का उल्लेख ), पद्म १.४४.९३ ( पार्वती द्वारा त्यक्त कालिमा से कौशिकी देवी का प्राकट्य, ब्रह्माज्ञा से कौशिकी का विन्ध्य पर्वत पर गमन ), ३.२६.९० ( कौशिकी तथा दृषद्वती नदियों के सङ्गम पर स्नान से पाप मुक्ति का उल्लेख ), ब्रह्मवैवर्त्त १.१३.६६ ( उपबर्हण गन्धर्व की पत्नी महापतिव्रता मालावती का पति की मृत्यु पर देवों को शाप देने के लिए कौशिकी नदी के तट पर गमन का उल्लेख ), ब्रह्माण्ड १.२.१२.१५ ( हव्यवाहन अग्नि की सोलह नदी पत्नियों में से एक ), १.२.१६.२६ ( हिमालय के पाद से नि:सृत अनेक नदियों में से एक ), २.३.७.३५५ ( कौशिकी से समुद्रपर्यन्त गजों के गहन वन का उल्लेख ), २.३.१३.१०९ ( कौशिकी ह्रद में किए गए श्राद्ध के महाफलदायक होने का उल्लेख ), २.३.६६.५९ ( सत्यवती के कौशिकी नदी रूप होने का उल्लेख ), भागवत १.१८.३६ ( राजा परीक्षित द्वारा शमीक मुनि का अपमान किए जाने पर शमीक - पुत्र द्वारा कौशिकी नदी के जल से आचमन करके परीक्षित के प्रति वाणी रूप वज्र के प्रयोग का कथन ), ५.१९.१८ ( भारतवर्ष की प्रमुख नदियों में से एक ),  ९.१५.१२ ( ऋचीक मुनि की पत्नी सत्यवती के कौशिकी नदी रूप होने का उल्लेख ), १०.७९.९ ( तीर्थयात्रा प्रसंग में बलराम द्वारा कौशिकी नदी में स्नान का उल्लेख ), मत्स्य २२.६३ ( श्राद्ध हेतु प्रशस्त स्थानों में कौशिकी नदी का उल्लेख ), ५१.१४ ( आहवनीय अग्नि की १६ नदी पत्नियों में से एक ), ११४.२२ ( हिमालय की उपत्यका से नि:सृत नदियों में से एक ), १६३.६० ( हिरण्यकशिपु द्वारा प्रकम्पित नदियों, पर्वतों, प्रदेशों में कौशिकी नदी का उल्लेख ), १९४.४० ( नर्मदा तट पर स्थित कौशिकी तीर्थ में स्नान तथा वास से ब्रह्महत्या के पाप से मुक्ति का कथन ),  मार्कण्डेय ८५.४० ( पार्वती के शरीरकोश से नि:सृत अम्बिका की कौशिकी नाम से प्रसिद्धि का उल्लेख ), वामन ५४.२५ ( पार्वती के कृष्ण कोश से उत्पन्न होने के कारण कौशिकी नाम धारण, विन्ध्य पर्वत पर वास से विन्ध्यवासिनी नाम से प्रसिद्धि का उल्लेख ), ५५.२८, ४४ ( चण्ड दैत्य द्वारा शुम्भ तथा निशुम्भ के समक्ष कौशिकी के सौन्दर्य का वर्णन, शुम्भ द्वारा कौशिकी को स्वपत्नी बनाने के प्रस्ताव का प्रेषण ), ५७.७७ ( कौशिकी द्वारा कार्तिकेय को मार्जार प्रदान करने का उल्लेख ), ९०.२ ( कौशिकी तीर्थ में विष्णु का पापनाशन/कूर्म? नाम से निवास ), वायु २९.१४ (हव्यवाहन अग्नि की १६ नदी पत्नियों में से एक ), ४५.९७ ( हिमालय के पाददेश से नि:सृत नदियों में से एक ), ९१.५४ ( कौशिका : सुहोत्र - पत्नी, जह्नु - माता, चन्द्र वंश ), ९१.८८ ( ऋचीक - पत्नी तथा जमदग्नि - माता सत्यवती के कौशिकी नदी रूप में परिवर्तित होने का उल्लेख ), १०८.८१ ( मुण्डपृष्ठ की उपत्यका में लोमश ऋषि द्वारा आवाहित अनेक नदियों में कौशिकी का उल्लेख ), विष्णुधर्मोत्तर १.२१५.४८ ( कौशिकी नदी द्वारा वराह वाहन से जनार्दन के अनुगमन का उल्लेख ), शिव ५.४७.१४ ( कौशिका : निशुम्भ - शुम्भ दैत्यों से पीडित देवों द्वारा स्तुति करने पर देवों की सहायतार्थ देवी के शरीर कोश से निर्गत देवी की कौशिका नाम से प्रसिद्धि का उल्लेख ), स्कन्द १.२.२९.५१ ( पार्वती के शरीर दोष से कौशिकी की उत्पत्ति, ब्रह्माज्ञा से कौशिकी का विन्ध्य पर्वत पर वास ), ५.१.६१ ( कौशिकी नदी में स्नान से हत्या दोष से मुक्ति का उल्लेख ), हरिवंश २.१०३.१८ ( श्रीकृष्ण - भार्या कौशिकी से वनस्तम्ब, स्तम्बवन, निवासन, अवनस्तम्ब व स्तम्बवती की उत्पत्ति का उल्लेख ), वा.रामायण १.३४.८ ( गाधि - पुत्री सत्यवती के ही लोकहितार्थ कौशिकी नामक महानदी के रूप में प्रकट होकर प्रवाहित होने का उल्लेख ), लक्ष्मीनारायण १.१६६.२० (देवों की प्रार्थना पर पार्वती का स्वशरीर से कोशरूपा कन्या को खींचकर देवों को प्रदान करना, कौशिकी कन्या को लेकर देवों का विन्ध्याचल पर्वत पर गमन ) । kaushikee/kaushiki

 

कौशिल्य ब्रह्माण्ड १.२.३३.८ ( ऋषि- पुत्रों में से एक श्रुतर्षि ), वायु २३.१७६ (१९वें द्वापर में विष्णु  के अवतार जटामाली के ४ पुत्रों में से एक ), शिव ३.५.२४ ( कौशल्य : उन्नीसवें द्वापर में शिव के अवतार जटीमाली के चार पुत्रों में से एक ), ७.२.९.१७ ( कौशल्य : शिव के योगाचार्य शिष्यों में से एक ) ।

 

कौषारव भागवत ३.४.२६ ( उद्धव द्वारा विदुर को तत्त्वज्ञान हेतु कौषारव / कुषारु मुनि - पुत्र मैत्रेय की सेवा करने का निर्देश ) ।

 

कौषीतक पद्म ६.१६१.५ ( कौषीतक ऋषि की तपस्या से प्रसन्न होकर महेश्वर का आगमन, ऋषि के अभीष्ट को पूर्ण करते हुए महेश्वर द्वारा लिङ्ग से प्रकट होकर सोमेश्वर नाम से नित्य निवास, सोमतीर्थ के निर्माण का कथन ) ।

 

कौष्माण्ड मत्स्य ४८.८८ ( गौतम - पुत्र कक्षीवान् के हजारों पुत्रों के कौष्माण्ड तथा गौतम नाम से विख्यात होने का उल्लेख ) ।

 

कौसल्या ब्रह्माण्ड २.३.३७.३१( २४ वें त्रेतायुग में कौसल्या व दशरथ के पुत्र रूप में राम के अवतार ग्रहण का उल्लेख ), ३.४.४०.११२ ( राजा दशरथ का देवी कौसल्या को स्वप्न के वृत्तान्त का निवेदन, कौसल्या तथा दशरथ द्वारा कामाक्षी देवी की आराधना, देवी द्वारा ४ पुत्रों की प्राप्ति का भविष्य कथन ) ; द्र. कौशल्या

 

कौस्तुभ अग्नि २५.१४ ( कौस्तुभ माला पूजा हेतु बीज मन्त्र का उल्लेख- वं शं मं क्षं पाञ्चजन्यं छं तं पं कौस्तुभाय च।ओं धं वं वनमालायै महानन्ताय वै नमः । ), गणेश २.११३.२९ ( सिन्धु राज - मन्त्री, वीरभद्र व षडानन से युद्ध, वीरभद्र द्वारा कौस्तुभ का वध - कौस्तुभोऽथ मयूरेशं यातो मैत्रश्च पातितुम ), ब्रह्मवैवर्त्त २.१०.१४९(कृष्ण द्वारा सरस्वती को कौस्तुभ देने का उल्लेख - कृष्णः कौस्तुभरत्नं च सर्व रत्नात्परं वरम् ।),  ब्रह्माण्ड ३.४.९.७३ (समुद्र मन्थन से उत्पन्न कौस्तुभ मणि को जनार्दन द्वारा ग्रहण करने का उल्लेख - कौस्तुभाख्यं ततो रत्नमाददे तज्जनार्दनः ।), भागवत २.२.१० ( श्रीहरि के कण्ठ में कौस्तुभ मणि सुशोभित होने का उल्लेख - श्रीलक्षणं कौस्तुभरत्‍नकन्धरं अम्लानलक्ष्म्या वनमालयाचितम् ॥ ), ८.४.१९ ( कौस्तुभ मणि के विष्णु रूप  होने का उल्लेख - श्रीवत्सं कौस्तुभं मालां गदां कौमोदकीं मम ), ८.८.५ ( समुद्र मन्थन से कौस्तुभ नामक पद्मरागमणि के प्राकट्य का उल्लेख - कौस्तुभाख्यमभूद्रत्नं पद्मरागो महोदधेःतस्मिन्मणौ स्पृहां चक्रे वक्षोऽलङ्करणे हरिः ), ११.२७.२७ ( भावना द्वारा श्रीहरि की पूजा करते हुए वक्ष:स्थल पर यथास्थान कौस्तुभ मणि की पूजा का उल्लेख - मुसलं कौस्तुभं मालां श्रीवत्सं चानुपूजयेत् ॥), १२.११.१० ( भगवान् द्वारा कौस्तुभ मणि के व्याज से जीव - चैतन्य रूप आत्मज्योति को ही धारण करने का उल्लेख - कौस्तुभव्यपदेशेन स्वात्मज्योतिर्बिभर्त्यजःतत्प्रभा व्यापिनी साक्षात्श्रीवत्समुरसा विभुः ), मत्स्य २५०.४ ( समुद्र मन्थन से कौस्तुभ मणि के प्राकट्य का उल्लेख ), २५१.३ ( समुद्र मन्थन से प्रकट हुई लक्ष्मी तथा कौस्तुभ मणि को विष्णु द्वारा  ग्रहण करने का उल्लेख ), विष्णु १.२२.६८ ( श्रीहरि द्वारा कौस्तुभ मणि के रूप में निर्लेप अगुण अमल आत्मा को धारण करने का उल्लेख - आत्मानमस्य जगतो निर्लेपमगुणामलम् । बिभर्ति कौस्तुभमणिस्वरूपं भगवान्हरिः ॥ ), स्कन्द ४.२.६१.२४३ (अग्निबिन्दु मुनि का कौस्तुभ मणि से एकाकार होने का उल्लेख - ज्योतीरूपोथ स मुनिः कौस्तुभे ज्योतिषां तनौ । एकीभूतः कलशज बिंदुमाधवसेवनात्।।  ), ४.२.९७.८४ ( कौस्तुभेश्वर लिङ्ग के अर्चन से रत्ननिधि से युक्त होने का उल्लेख - बाष्कुलीशाद्दक्षिणतो लिंगं वै कौस्तुभेश्वरम् ।। तस्यार्चनेन रत्नौघैर्न वियुज्येत कर्हिचित् ।। ) । kaustubha


क: भागवत ६.१.४२( देही के धर्म - अधर्म के साक्षियों में से एक ), ६.६.३४( कश्यप की क: संज्ञा), वायु ४.४३/१.४.४१( क: शब्द की निरुक्ति )

 

क्रकच लक्ष्मीनारायण २.१७६.६८ ( ज्योतिष में एक योग ) ।

 

क्रतु कूर्म १.२०.४४ ( क्रतु ऋषि द्वारा सुमना राजा को मुक्ति के उपाय का कथन ), गरुड ३.७.६३(क्रतु द्वारा हरि स्तुति) पद्म १.३४.१६ ( ब्रह्मा के यज्ञ में क्रतु के अच्छावाक् पद पर अधिष्ठित होने का उल्लेख ), ३.२१.९( क्रतु तीर्थ में स्नान से अभीष्ट कामनाओं की प्राप्ति का कथन ), ब्रह्मवैवर्त्त १.८.२४ ( ब्रह्मा के वाम नेत्र से उत्पत्ति, दक्ष नेत्र से अत्रि ), ४.९३.७६ ( सौ वापी से क्रतु के श्रेष्ठ होने तथा सौ क्रतुओं से पुत्र के श्रेष्ठ होने का उल्लेख ), ब्रह्माण्ड १.१.५.७६ ( ब्रह्मा के अपान से प्राकट्य, प्राणादि से दक्ष आदि ), १.१.५.७९ ( क्रतु का ऊर्ध्वरेतस महर्षि के रूप में उल्लेख, ऋभु से साम्य?, तुलनीय : लिंङ्ग १.७०.१७० ), १.२.९.५६ ( दक्ष द्वारा स्व - पुत्री संतति को क्रतु ऋषि को प्रदान करने का उल्लेख ), १.२.११.३६ ( क्रतु व सन्नति से बालखिल्यों की उत्पत्ति ), १.२.१३.९२ ( बारह याम देवगणों में से एक ), १.२.१६.३१ ( ऋक्षवान् पर्वत से नि:सृत एक नदी ), १.२.३२.९६ ( ब्रह्मा के दस मानस पुत्रों में से एक ), १.२.३५.९२ ( क्रतु - पुत्रों बालखिल्यों के देवर्षि होने का उल्लेख ), १.२.३६.१२ ( स्वारोचिष मन्वन्तर में क्रतु - पुत्रों के सोमपायी होने का उल्लेख ), १.२.३६.३१ ( बारह प्रर्तदन देवों के गण का एक प्रतर्दन देव ), २.३.१.२१ ( ब्रह्मा के आठ पुत्रों में से एक ), २.३.१.८९ ( भृगु के बारह पुत्र देवों में से एक ), २.३.३० ( विश्वा व धर्म से उत्पन्न दस विश्वेदेवों  में से एक ), २.३.८.७२ ( वैवस्वत मन्वन्तर में क्रतु के संतानरहित होने का उल्लेख ), २.३.६४.२२ ( विजय - पुत्र, सुनय - पिता, मैथिल वंश ), ३.४.१.१४ ( बीस सुतप देवों में से एक ), भविष्य ४.६९.३७ ( गौ की मज्जा में क्रतुओं की स्थिति का उल्लेख ), भागवत ४.१.३९ ( क्रतु - पत्नी क्रिया द्वारा साठ हजार बालखिल्यादि ऋषियों को जन्म देने का उल्लेख ), ४.१३.१७ ( उल्मुक व पुष्करिणी के ६ पुत्रों में से एक, ध्रुव वंश ), ६.४.४६( अङ्गों के क्रतु होने का उल्लेख ), १०.६१.१२ ( श्रीकृष्ण व जाम्बवती के १० पुत्रों में से एक ), १०.७४.८ ( युधिष्ठिर के राजसूय यज्ञ में आमन्त्रित वेदवादी ब्राह्मणों में से एक ), १२.११.४० ( तपस्य / फाल्गुन मास में सूर्य के कार्य निर्वाहक गणों में क्रतु यक्ष का उल्लेख ), मत्स्य ४.४३ ( आग्नेयी व उरु के ६ पुत्रों में से एक ), १३३.६७ ( त्रिपुर को नष्ट करने हेतु त्रिपुरारि के रथ का अनुगमन करते हुए क्रतु आदि महर्षियों द्वारा शिवस्तुति करने का उल्लेख ), १४५.९० ( ब्रह्मा के पुत्रभूत महर्षियों में क्रतु का उल्लेख ), १७१.२७( ब्रह्मा से उत्पन्न महर्षियों में से एक ), १९५.१३ ( भृगु व पौलोमी के १२ पुत्रों में से एक ), २०२.८ ( वैवस्वत मन्वन्तर में क्रतु के संतानहीन होने पर अगस्त्य - पुत्र इध्मवाह को पुत्र रूप में स्वीकार करने का उल्लेख ), २४८.६७(यज्ञवराह के क्रतुदन्त होने का उल्लेख), वराह २१.१६( दक्ष यज्ञ में क्रतु के प्रस्तोता बनने का उल्लेख ), वायु ६.१६ (वराह के वक्षस्थल का क्रतु / यज्ञ से साम्य ), २१.३० ( सप्तम कल्प का नाम ), २९.२६(क्रतु का विभु से साम्य?), ३१.६ ( बारह याम देवों में से एक ), ३१.१६ ( स्वायम्भुव युग के सप्तर्षियों में से एक ), ४९.१७ ( प्लक्ष द्वीप की सात महानदियों में से एक ), ४९.९३ ( शाक द्वीप की सप्त महागङ्गाओं में से एक ), ६१.८४ ( क्रतु - पुत्र बालखिल्यों के देवर्षि होने का उल्लेख ), ६२.११ ( स्वारोचिष मनु युग में तुषिता नाम से प्रसिद्ध क्रतु - पुत्र गणों के सोमपायी होने का उल्लेख ), ६५.४४ ( क्रतु / यज्ञ में उत्पन्न होने से क्रतु नामोल्लेख ), ६५.८७ ( भृगु के बारह पुत्र देवों में से एक ), ६६.३१ ( विश्वा व धर्म से उत्पन्न दस विश्वेदेवों  में से एक ), ६७.३४ ( अजिता में रुचि से उत्पन्न बारह अजित देवों में से एक ), ७०.६६ ( वैवस्वत मन्वन्तर में क्रतु के नि:सन्तान होने का उल्लेख ), १०१.३५, १०१.४९ ( प्रलय काल में लोकों के दग्ध हो जाने पर क्रतु आदि प्रजापतियों के जन लोक में विद्यमान रहने का उल्लेख ), विष्णु १.७.५ ( ब्रह्मा के भृगु आदि ९ मानस पुत्रों में से एक ), १.११.४८ ( क्रतु द्वारा ध्रुव को परम पद प्राप्ति के उपाय का कथन ), २.१०.१४ ( पौष मास में क्रतु के भास्कर मण्डल में निवास का उल्लेख ), विष्णुधर्मोत्तर १.५६.११ ( विभूति वर्णन में जनार्दन का भृगुओं में प्रधान क्रतु होने  का उल्लेख ), १.११८.८ ( सन्तान रहित होने से क्रतु ऋषि द्वारा अगस्त्य - पुत्र इध्मवाह को पुत्र रूप में स्वीकार करने का उल्लेख ), शिव २.२.३.५७( क्रतु ऋषि से सोमप पितरों की उत्पत्ति का कथन ), ७.१.१७.२८( सन्नति - पति, वालखिल्य गणों के पिता ), ७.२.४.५२ ( क्रतुध्वंसी शिव के क्रतु रूप होने का उल्लेख ), स्कन्द ३.२.६.४४(५ क्रतुओं का कथन), ४.१.१९.११४ ( क्रतु द्वारा ध्रुव को यज्ञपुरुष विष्णु की आराधना का निर्देश ), ७.१.२३.९८ ( चन्द्रमा के यज्ञ में ग्रावस्तुत् पद पर अधिष्ठित एक ऋषि ), ७.४.१४.४८(क्रतु के लिए जाम्बवती नदी), लक्ष्मीनारायण १.२५१.४१ ( यज्ञान्न - भक्षक क्रतु द्वारा एकादशी व्रत के पारण में असमर्थता व्यक्त करने पर श्री हरि द्वारा क्रतु को मात्र ज्येष्ठ शुक्ल निर्जला एकादशी व्रत के पारण का आदेश ) ;, तैत्तिरीय ब्राह्मण ३.१२.२.१ टीका(यूपसहित यज्ञ क्रतु, यूपरहित इष्टि), द्र. शतक्रतु । kratu

References on Kratu

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