Puraanic contexts of words like Kedaara, Kerala, Kevala, Kesha/hair, Keshava etc. are given here.



केतुमाली वायु २३.१९६ ( २१वें द्वापर में विष्णु के अवतार दारुक के चार योगी पुत्रों में से एक ), हरिवंश २.१०५.४९ ( प्रद्युम्न द्वारा शम्बर - सेनानी केतुमाली के वध का वर्णन ) ।

 

केतुशृङ्ग वायु २३.१४९ ( दसवें द्वापर के भगवदावतार भृगु के चार पुत्रों में से एक ), लक्ष्मीनारायण ३.१६४.३१ ( पञ्चम मन्वन्तर में रैवत मनु के केतुशृङ्ग प्रभृति पुत्रों तथा देवादिकों का शान्तशत्रु नामक दैत्य द्वारा पीडन, हंस रूप धारी श्रीहरि द्वारा दैत्य के वध का वर्णन ) । ketushringa

 

केदार देवीभागवत ७.३८.२३ ( केदार क्षेत्र में मार्गदायिनी देवी के वास का उल्लेख ), नारद २.६५.६२(वृद्ध केदार तीर्थ का माहात्म्य), पद्म ३.२६.६९ ( कपिलकेदार व कपिष्ठलकेदार तीर्थों का संक्षिप्त माहात्म्य ), ब्रह्मवैवर्त्त ४.१७.१९० ( वृन्दा - पिता, जैगीषव्य के उपदेश से तप करना ), ४.८६.५ ( नन्दसावर्णि - पुत्र, ध्रुव - पौत्र, वृन्दा - पिता ), भविष्य २.२.८.१२७( केदार तीर्थ में महाश्रावणी पूर्णिमा के विशेष फल का उल्लेख ), ३.२.२६.१ ( केदारमणिपुर के राजा चन्द्रचूड की शत्रुओं से पराजय, सत्यदेव भगवान की आराधना से पुन: राज्य प्राप्ति का वर्णन ), भागवत १०.८८.१७ ( केदार तीर्थ में वृकासुर द्वारा शिव प्रीत्यर्थ तप करने का उल्लेख ), मत्स्य १३.३० ( केदार तीर्थ में देवी के मार्गदायिनी नाम से निवास का उल्लेख ), २२.११ ( पितर श्राद्ध के लिए प्रशस्त तीर्थों में केदार तीर्थ का उल्लेख ), १८१.२९ ( शिव सन्निधि से पवित्र स्थानों में केदार का उल्लेख ), वामन ५७.९७ ( केदार तीर्थ द्वारा स्कन्द को सुषमा, एकचूडा, धमधमा, उत्क्राथिनी तथा वेदमित्रा नामक मातृकाओं को प्रदान करने का उल्लेख ), ६०.१० ( शिव के कपाल को विदीर्ण करके पृथ्वी पर गिरी हुई वीटा / गुल्ली द्वारा पर्वत का टूटकर पृथ्वी के समान समतल होना तथा केदार तीर्थ का निर्माण , शिव द्वारा केदार तीर्थ को वर प्रदान करना, केदार तीर्थ  का माहात्म्य ), ९०.३ ( केदार तीर्थ में विष्णु का माधव व शौरि नाम से वास ), वायु १०६.५६ ( गयासुर के मस्तक पर स्थापित शिला को निश्चल करने हेतु प्रपितामह द्वारा स्वयं को प्रपितामह, पितामह, फलग्वीश, केदार तथा कनकेश्वर रूप से पांच भागों में विभक्त कर शिला पर अवस्थित होना ), १११.७२ ( पितरों के उद्धार हेतु गया के उत्तर मार्ग में स्थित कनकेश, केदार, नारसिंह व वामन की पूजा का उल्लेख ), शिव ४.१९ ( नरनारायण की प्रार्थना पर ज्योति रूप शिव का केदार क्षेत्र में स्थायी वास, केदारेश्वर माहात्म्य का वर्णन ), स्कन्द १.१.१+ (केदार खण्ड संहिता का प्रारम्भ ), १.१.७.३०( मृत्युलोक में शिव की केदार लिङ्ग में स्थिति का उल्लेख ), १.२.५७ (महीनगर में केदारेश्वर लिङ्ग की स्थापना का कथन ), ४.१.३३.१७२ ( शिव शरीर के लिङ्ग का रूप ), ४.२.७७ ( केदारेश्वर लिङ्ग का माहात्म्य : वसिष्ठ व हिरण्यगर्भ की मुक्ति की कथा ), ५.२.६७ ( केदारेश्वर लिङ्ग का माहात्म्य : शीत पीडा निवृत्ति के लिए देवों द्वारा केदारेश्वर की पूजा, महिष रूप धारण ), ५.३.१८३ ( केदारेश्वर तीर्थ के माहात्म्य का वर्णन ), ५.३.१९८.६७ ( केदार तीर्थ में उमा की मार्गदायिनी नाम से स्थिति का उल्लेख ), ५.३.२३१.१४ ( रेवा - सागर सङ्गम पर ५ केदारेश्वर तीर्थों की स्थिति का उल्लेख ), ६.१२२ ( हिरण्याक्ष से पीडित देवों के समक्ष महिष रूप में प्रकट होकर शिव का प्रश्न, केदार की निरुक्ति व माहात्म्य ), ७.१.१०.७(केदार तीर्थ का वर्गीकरण जल),  ७.१.३९ ( केदारेश्वर लिङ्ग का माहात्म्य : शूद्र दम्पत्ति का शशबिन्दु राजा व राजपत्नी बनना ), ७.३.९ ( केदार माहात्म्य : शूद्र द्वारा कमलों से केदारेश्वर लिङ्ग की पूजा से जन्मान्तर में अजापाल राजा बनना ), महाभारत आदि ३.२९(  केदार खण्ड विदारण से आरुणि की उद्दालक नाम से ख्याति ), कथासरित् १२.५.२६० ( एक पर्वत ), लक्ष्मीनारायण १.३३०.७५( केदार - पुत्री बनकर वृन्दा का विष्णु को प्राप्त करना ), १.३११.२० ( ध्रुव - पौत्र, यज्ञकुण्ड से वृन्दा नामक कन्या का प्रकट होना ), १.५५३.३६ ( केदार कुण्ड तीर्थ, अजपाल राजा द्वारा निर्मित ) । kedaara / kedara

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केनाटक लक्ष्मीनारायण २.२००.१०० ( श्रीहरि के केनाटक प्रदेशों में आगमन का कथन ) ।

 

केयूर देवीभागवत ९.१९.२४( छाया से आहृत केयूर - युग्म की तुलसी को प्राप्ति ), ब्रह्मवैवर्त्त २.१६.१३५(छाया के केयूर युग्म के हरण का उल्लेख), ४.५९.४४(गंगा के केयूर युगल की श्रेष्ठता का उल्लेख),  वामन १.२७( शिव के केयूर रूपी सर्पों कम्बल व धनञ्जय का उल्लेख ), विष्णुधर्मोत्तर ३.३४१.१९६ ( केयूर दान से शत्रुपक्ष का क्षय होने का उल्लेख ), लक्ष्मीनारायण २.२८३.५८( मञ्जुला द्वारा बालकृष्ण को केयूर देने का उल्लेख ), गोपालोत्तरतापिन्युपनिषद १७( धर्मार्थकाम के केयूर होने का उल्लेख ) । keyoora/ keyuura/ keyura

 

केरल गर्ग ७.१०.१९ ( केरल के अधिपति अम्बष्ठ द्वारा प्रद्युम्न को भेंट प्रदान का उल्लेख ), १०.५१.४१( कुलिन्द द्वारा पालित केरलाधिपति - पुत्र चन्द्रहास का वृत्तान्त ), पद्म ६.१२९.७० ( केरलदेशीय वसु नामक ब्राह्मण की मुक्ति की कथा ), ब्रह्माण्ड २.३.७४.६( आण्डीर - पुत्र केरल के नाम पर केरल जनपद का नामोल्लेख ), मत्स्य ४८.५ ( आण्डीर - पुत्र केरल के देश का उसी के नाम से प्रसिद्ध होने का उल्लेख ), वायु ९९.६ ( जनापीड के चार पुत्रों में से एक केरल के नाम पर केरल जनपद के नामकरण का उल्लेख ) । kerala

 

केल स्कन्द १.२.६५.९६ ( केल भक्त के नाम पर देवी द्वारा केलेश्वरी नाम धारण का उल्लेख ) ।

 

केलि ब्रह्माण्ड २.३.७.९८ ( ९ ब्रह्मधानों में से एक ), भविष्य ३.४.२४.३२ ( केलिसिंह : कामशर्मा व देवहूति - पुत्र, वामन के अंश रूप में उल्लेख ), स्कन्द ६.१४९,१५० ( केलीश्वरी : शिव द्वारा अन्धक की पराजय हेतु अग्नि कुण्ड से केलीश्वरी देवी को उत्पन्न करना, अन्धक की पराजय, शुक्राचार्य द्वारा केलीश्वरी से अमृतविद्या की प्राप्ति, केलीश्वरी के माहात्म्य का वर्णन ) । keli

 

केवट भागवत ११.२०.१७ ( शरीर रूपी प्लव / नौका में गुरु के कर्णधार / केवट होने का उल्लेख ) ।

 

केवल गरुड ३.१६.९९(केवला - भारती का रूप, अन्य नाम काली, भीमसेन - भार्या),  पद्म ६.२२८.७ ( विरजा व परम व्योम के मध्य केवल लोक की स्थिति का उल्लेख ), ब्रह्मवैवर्त्त ४.९६.२३ ( काल की गति को पार करके ही कैवल्य की प्राप्ति का उल्लेख ), ब्रह्माण्ड १.२.१३.९४ ( स्वायम्भुव मन्वन्तर के सोमपायी गणों में से एक ), १.२.३५.२९ (याज्ञवल्क्य - शिष्य ), २.३.८.३६( नर - पुत्र, बन्धुमान् - पिता, मरुत्त वंश ), २.३.६१.९ ( नर - पुत्र, बन्धुमान् - पिता ), भागवत ९.२.३० (नर- पुत्र, बन्धुमान् - पिता , दिष्टवंश ), वायु ३१.७ ( स्वायम्भुव मन्वन्तरकालीन सोमपायी त्विषिमान् गण के देवों में से एक ), ८६.१४ ( नर - पुत्र, बन्धुमान् - पिता, वैवस्वत मनु वंश ), विष्णु ४.१.३८ ( सुवृद्धि - पुत्र, सुधृति - पिता ), ४.१.४२ ( नर -पौत्र, चन्द्र - पुत्र, बन्धुमान् - पिता ), स्कन्द ४.२.९८.३८ ( कैवल्य मण्डप का द्वापर में कुक्कुट मण्डप नाम से उल्लेख ) । kevala

 

केश अग्नि ३०२.२५ ( केश क्षरण रोधी औषधि योग का उल्लेख ), गरुड १.१७६ ( खल्वाट निवारण तथा केश कृष्ण चिकित्सा का वर्णन ), देवीभागवत ४.२२.५० ( श्रीहरि के श्याम व श्वेत केशों से क्रमश: कृष्ण व बलराम की उत्पत्ति का उल्लेख ), नारद १.५६.३४० ( क्षौर कर्म के काल का विचार ), २.६२.५०( गङ्गा के समीप पापों के केशों में समाने का कथन ), २.६५.५६(सीतावन में केश प्रक्षेपण का माहात्म्य),  पद्म ६.१३५.१३ ( कश्यप नामक द्विज के वास स्थान के रूप में केशरन्ध्र तीर्थ का उल्लेख ), ब्रह्म १.७२.२६ ( भू भार हरण हेतु पृथ्वी सहित देवताओं की श्रीहरि से प्रार्थना, भगवान् का अपने सित व कृष्ण केशों को खोलना तथा केशों का पृथ्वी पर अवतरित होकर भू भार का हरण ), ब्रह्मवैवर्त्त २.२१.३३(तुलसी के केश समूहों का तुलसी वृक्ष बनने का उल्लेख), ३.४.३३ ( केश सौन्दर्य के लिए लक्ष श्वेत चामर श्रीहरि को समर्पित करने का उल्लेख ), ब्रह्माण्ड २.३.१.४५ ( निचित केशों से पुलस्त्य व लम्बे केशों से पुलह के समुद्भव का उल्लेख ), भागवत २.१.३४( विराट् पुरुष के केशों के मेघ होने का उल्लेख ), मत्स्य १५४.१० ( देवों द्वारा ब्रह्मा की स्तुति करते हुए आकाश को उनका मस्तक, चन्द्र - सूर्य को नेत्र तथा सर्पों को केश रूप कहने का उल्लेख ), वामन ५७.८४ ( कुटिला द्वारा कार्तिकेय को सित केश व कृष्ण केश प्रभृति दस गणों को प्रदान करने का उल्लेख ), वायु ४३.२०( महाकेश : भद्राश्व वर्ष के जनपदों में से एक ), विष्णु ५.१.६० ( विष्णु के श्याम व सित केशों का पृथ्वी का भार हरण हेतु अवतार ग्रहण करने का उल्लेख ), विष्णुधर्मोत्तर १.४२.२३( केशों में रात्रि की स्थिति का उल्लेख ), शिव ३.५.४ ( केशलम्ब : ग्यारहवें द्वापर में कलौ? नाम से अवतार ग्रहण करने पर शिव के चार पुत्रों में से एक ), स्कन्द ४.१.१३.२१( शिव के केशों के जलद/मेघ होने का उल्लेख ), ४.१.४०.९९ ( केश वपन तथा केश रक्षण का विधान ), ७.१.२९.४ ( केश में सब पापों के स्थित हो जाने का उल्लेख ; तीर्थ में केश - त्याग के माहात्म्य का कथन ), हरिवंश २.८०.५ ( पतिव्रता स्त्री के केश लम्बे करने के उपाय का कथन ), ३.७१.४६ ( वामन के विराट रूप में सूर्य किरणों के केश होने का उल्लेख ), वा.रामायण ५.१७.६ ( हनुमान द्वारा अशोक वाटिका में सीता के समीप ध्वस्त केशी, अकेशी प्रभृति राक्षसियों के दर्शन का उल्लेख ), लक्ष्मीनारायण १.३७०.७४ ( नरक में केश कुण्ड प्रापक कर्मों का उल्लेख ), १.४३७.५०( मनोजव - पत्नी सुमित्रा के केश के होम से शत्रुनाशकारी अस्त्रों के उत्पन्न होने का कथन ), २.२४ ( मार्गशीर्ष त्रयोदशी में बालकृष्ण के चौल संस्कार विधान तथा चौल संस्कार हेतु का वर्णन ), २.२४.२४( चौल संस्कार के वर्णन में गर्भ केशों के पाप रूप होने का वर्णन ; बालकृष्ण के केशों से नारायणों की उत्पत्ति ), २.१०९.३२ ( श्रीहरि द्वारा कल्माषकेश के वधोपरान्त कल्माषकेश के रक्तकेश, कृष्णकेश, चित्रकेश, अग्निकेश तथा धूम्रकेश आदि पुत्रों का श्रीहरि की शरण में आने का उल्लेख ), २.१५८.५९( प्रासाद की ध्वज की नर के केशों से उपमा ), ३.१८२( सुरामिश्रित भोजन के अर्पण से मञ्जुलकेश भक्त द्वारा पाशुपतेश विप्र को उन्मत्त होने का शाप, श्रीहरि द्वारा विप्र के शाप के मोक्षण का वृत्तान्त ), कथासरित् २.२.७४ ( श्रीदत्त द्वारा राक्षसी के केशों को पकडते ही राक्षसी द्वारा दिव्य रूप धारण करना तथा कौशिक मुनि द्वारा प्रदत्त स्व शाप से मुक्त होने का कथन ), १०.५.१८१ ( धूर्त्तों द्वारा धनी मूर्खों के धन का अपहरण दर्शाने हेतु केशमूर्ख की कथा का वर्णन ); द्र. आदिकेश, ऊर्ध्वकेश, ऋषिकेश, गुडाकेश, दृढकेश, धूम्रकेश, भीमकेश, मञ्जुलकेश, विद्युत्केश, सुकेश, स्थूलकेश, हरिकेश, हिरण्यकेश, हृषीकेश । kesha

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केशर ब्रह्म १.४३.२९( नाभि जल में उत्पन्न पद्म में ब्रह्मा की पद्मकेशर के समान स्थिति का उल्लेख ) ।

 

केशव गरुड ३.२९.४८(पुण्ड्र धारण काल में केशव आदि १२ के स्मरण का निर्देश - पुण्ड्राणां धारणे चैव केशवादींश्च द्वादश ॥), नारद १.६६.८६ ( केशवादि मातृका न्यास का कथन ; केशव की शक्ति कीर्ति का उल्लेख - केशवः कीर्तिसंयुक्तः कांत्या नारायणस्तथा ), पद्म ६.१२१.५ ( धात्री माला धारण से शरीर में केशव के वास का उल्लेख - यावत्तिष्ठति कंठस्था धात्रीमाला नरस्य हि । तावत्तस्य शरीरे तु प्रतिष्ठति च केशवः । ), ६.१८८.४१ ( केशव नामक ब्राह्मण द्वारा विलोभना नामक स्व - स्त्री की हत्या, जन्मान्तर में केशव व विलोभना का शश व शुनी बनना, गीता के १४ वें अध्याय के जप से शश व शुनी को दिव्य लोक की प्राप्ति का वर्णन - तत्रासीद्ब्राह्मणो नाम्ना केशवः कितवाग्रणीः । विलोभनाभवत्तस्य जाया स्वैरविहारिणी । ), ब्रह्माण्ड २.३.४२.१९ ( परशुराम द्वारा गणेश का दन्तभङ्ग होने से पार्वती का क्रुद्ध होना , शिव के स्मरण मात्र से भगवान् केशव के राधा सहित आगमन का वृत्तान्त ), २.३.७१.२२१ (यशोदा से उत्पन्न पुत्री के केशव / कृष्ण रक्षार्थ एकादशा/एकानंशा देवी के नाम से विख्यात होने का उल्लेख - एकादशा तु जज्ञे वै रक्षार्थं केशवस्य ह ॥ ), ३.४.३४.७६ ( विष्णुलोक में माणिक्य मण्डप की पूर्व दिशा में केशव के विराजमान  होने का उल्लेख - जाम्बूनदप्रभश्चक्री पूर्वस्यां दिशि केशवः । पश्चान्नारायणः शङ्खी नीलजीमूतसंनिभः ॥), भविष्य ३.२.२.१२ ( केशव द्विज द्वारा मधुमती की अस्थियों का संग्रह, मधुमती की कथा ), ३.४.२२.२१ ( मुकुन्द के शिष्य केशव का जन्मान्तर में अकबर के सात शिष्यों में से एक गानसेन बनने का उल्लेख - केशवो गानसेनश्च वैजवाक्स तु माधवः । ), ३.४.२२.३४ ( मुकुन्द के शिष्य देववान् का जन्मान्तर में केशव नामक कवि बनने का कथन - देववान्केशवो जातो विष्णुस्वामिमते स्थितः । । ), भागवत ६.८.२० ( नारायण कवच के अन्तर्गत प्रात:काल में गदाधारी केशव से रक्षा की प्रार्थना का उल्लेख - मां केशवो गदया प्रातरव्याद्गोविन्द आसङ्गवमात्तवेणुः। ), मत्स्य १६.१ ( श्राद्धकाल, विधि, भेद तथा करणीय - अकरणीय कर्मों के विषय में मनु द्वारा भगवान् केशव से प्रश्न ), २२.९ ( पितृतीर्थ प्रयाग में योगनिद्राशायी भगवान् केशव के नित्य निवास का उल्लेख - वटेश्वरस्तु भगवान् माधवेन समन्वितः। योगनिद्राशयस्तद्वत् सदा वसति केशवः।। ), ६९.८ ( २८वें द्वापर के अन्त में भगवान् विष्णु द्वारा स्वयं को तीन भागों में विभक्त करके महर्षि द्वैपायन, बलराम तथा केशव रूप से अवतीर्ण होने का उल्लेख - द्वैपायन ऋषिस्तद्वद्रौहिणेयोऽथ केशवः। कंसादिदर्पमथनः केशवः क्लेशनाशनः।। ), १२२.१८ ( शाकद्वीप के सात पर्वतों में से एक, अपर नाम विभ्राज, केशव नाम के कारण का कथन – वह्नि का वायुरूप होना - यस्माद्विभ्राजते वह्निर्विभ्राजस्तेन स स्मृतः। सैवेह केशवेत्युक्तो यतो वायुः प्रवाति च।। ), १८५.६६ ( अविमुक्त / वाराणसी के पांच तीर्थों में से एक ), वराह १.२५ ( धरणी द्वारा केशव से पादों की रक्षा की प्रार्थना - केशवः पातु मे पादौ जङ्घे नारायणो मम । माधवो मे कटिं पातु गोविन्दो गुह्यमेव च ।।  ), १६३.१६ ( मथुरा रूपी पद्म की कर्णिका में केशव की स्थिति का उल्लेख - कर्णिकायां स्थितो देवि केशवः क्लेशनाशनः ।।कर्णिकायां मृता ये तु तेऽमरा मुक्तिभागिनः।। ), १६३.६८ ( दिन के चतुर्थ भाग में केशव में वराह तेज की व्याप्ति का उल्लेख - मध्याह्ने मामकं तेजो दीर्घविष्णौ व्यवस्थितम् ।। केशवे मामकं तेजो दिनभागे चतुर्थके ।। ), वामन ९०.१५ ( वाराणसी में विष्णु का केशव नाम से वास- तथैव विप्रप्रवर वाराणस्यां च केशवम्। ), विष्णु १.१५.५४ ( कण्डु मुनि द्वारा ब्रह्मपार स्तोत्र से भगवान केशव की अर्चना का उल्लेख - ब्रह्मपारं मुने श्रोतुमिच्छामः परमं स्तवम् । जपता कण्डुना देवो येनाराध्यत केशवः ॥  ), ५.१६.२३( केशी वध से जनार्दन को केशव नाम प्राप्ति का उल्लेख - यस्मात्त्वयैष दुष्टात्मा हतः केशी जनार्दन । तस्मात्केशवनाम्ना त्वं लोके ख्यातो भविष्यसि । ), विष्णुधर्मोत्तर १.७३.२२( त्रेता युग में केशव के रक्तता को प्राप्त होने पर नरों की आयु तथा यज्ञों की स्थिति का कथन ; अन्य युगों में केशव के पीत व कृष्ण वर्ण होने का उल्लेख  - त्रिपादविग्रहो धर्मो राम त्रेतायुगे तदा ॥ केशवे रक्ततां याते नरा दशशतायुषः ॥ ), १.१६८ ( पुष्पादि से केशव अर्चना का वर्णन - अरण्यादाहृतैः पुष्पैर्मूलपत्रफलाङ्कुरैः।। यथोपपन्नैः सततमभ्यर्चयति केशवम् ।।), १.२३७.४ ( केशव से जिह्वा की रक्षा की प्रार्थना - मनो मम हृषीकेशो जिह्वां रक्षतु केशवः।। ), ३.१७६.२(केशव के दशात्मा होने का कथन - विश्वेदेवा समाख्याता दशात्मा केशवो विभुः ।।), स्कन्द २.१.२८.३७ ( केशव नामक द्विज द्वारा ब्राह्मण हत्या, कटाह तीर्थ में स्नान से ब्रह्महत्या से मुक्ति की कथा - पुरा कश्चिद्द्विजो मोहात्केशवाख्यो बहुश्रुतम् ।। हत्वा खड्गेन दुर्बुद्ध्या ब्रह्महत्यामवाप्तवान् ।। ),  २.५.२.२३(ललाट में केशव के ध्यान का निर्देश - ललाटे केशवं ध्यायेन्नारायणमथोदरे।। वक्षःस्थले माधवं च गोविंदं कण्ठकूबरे।।), २.५.१५.२ (सहमास में कीर्तियुक्त केशव की पूजा का निर्देश - सहोमासे च देवो वै कीर्तियुक्तो हि केशवः ।।), २.७.२२.२७( क्लेशनाशक केशव के स्मरण से ही तुष्ट होने का उल्लेख - स्मरणात्तोषमायाति केशवः क्लेशनाशनः ।। ), ४.२.५१.७३ (काशी में आदिकेशव, केशवादित्य इत्यादि तीर्थों का माहात्म्य - अतः स केशवादित्यः काश्यां भक्ततमोनुदः ।। ), ४.२.५८.२९ ( आदि केशव की पूजा से गृह में ही वैकुण्ठ प्राप्ति का उल्लेख - आदिकेशवनाम्नीं तां श्रीमूर्तिं पारमेश्वरीम् ।। संपूज्य मर्त्यो वैकुंठं मन्यते स्वगृहांगणम् ।। ), ४.२.६१.४ ( पादोदक तीर्थ में आदिकेशव, श्वेतद्वीप में ज्ञानकेशव, तार्क्ष्यतीर्थ में तार्क्ष्यकेशव, नारदतीर्थ में नारदकेशव, प्रह्लाद तीर्थ में प्रह्लादकेशव, अम्बरीष तीर्थ में आदित्यकेशव, भार्गव तीर्थ में भृगुकेशव, वामनतीर्थ में वामनकेशव, हयग्रीवतीर्थ में हयग्रीवकेशव तथा वृद्धकालेश में भीष्मकेशव  प्रभृति नामों से विष्णु का अर्चन तथा फल प्राप्ति - आदौ पादोदके तीर्थे विद्धि मामादिकेशवम् ।। अग्निबिंदो महाप्राज्ञ भक्तानां मुक्तिदायकम् ।।  ), ४.२.६१.२१६ ( शङ्ख, चक्र, गदा तथा पद्म से युक्त मूर्ति के कैशवी होने तथा पूजित होने पर चिन्तितार्थ पूरक होने का उल्लेख - शंखचक्रगदापद्मैर्मूर्तिं जानीहि कैशवीम् ।। पूजिता या नृणां कुर्याच्चिंतितार्थमसंशयम्।।  ), ४.२.८४.१७ ( आदित्यकेशव तीर्थ का संक्षिप्त माहात्म्य - आदित्यकेशवं नाम तदग्रे तीर्थमुत्तमम् ।। कृताभिषेकस्तत्रापि लभेत्स्वर्गाभिषेचनम् ।। ), ४.२.९७.१५ ( आदि केशव के दर्शन से त्रिभुवन के दर्शन का कथन - वेदेश्वरादुदीच्यां तु क्षेत्रज्ञश्चादिकेशवः ।। दृष्टं त्रिभुवनं सर्वं तस्य संदर्शनाद्ध्रुवम् ।। ), ५.१.३३.१७ ( केशवार्क तीर्थ का संक्षिप्त माहात्म्य  - केशवार्कमुखं दृष्ट्वा पद्मरागसमप्रभम् ।। विमुक्तः सर्वपापेभ्यः सूर्यलोके महीयते ।।), ५.३.१४९.८ ( लिङ्गेश्वर तीर्थ में मार्गशीर्ष द्वादशी को केशव अर्चना का निर्देश, १२ मासों में १२ नामों से केशव की अर्चना - मासि मासि निराहारो द्वादश्यां कुरुनन्दन । केशवं पूजयेन्नित्यं मासि मार्गशिरे बुधः ॥ ), ५.३.१५५.११६ ( भास्कर से आरोग्य, जातवेदस् से धन, ईशान से ज्ञान तथा केशव से मोक्ष प्राप्ति का उल्लेख - आरोग्यं भास्करादिच्छेद्धनं वै जातवेदसः ॥ प्राप्नोति ज्ञानमीशानान्मोक्षं प्राप्नोति केशवात् ।), ), ६.२४७.४१(अश्वत्थ -- मूले विष्णुः स्थितो नित्यं स्कंधे केशव एव च ॥ नारायणस्तु शाखासु पत्रेषु भगवान्हरिः ॥), महाभारत शान्ति ३४१.४८( केशव की निरुक्ति : अग्नि, सोम व सूर्य की किरणों रूपी केशों से युक्त - अंशवो यत्प्रकाशन्ते ममैते केशसंज्ञिताः।।सर्वज्ञाः केशवं तस्मान्मामाहुर्द्विजसत्तमाः। ), लक्ष्मीनारायण १.८३.५७( केशवार्क : काशी में दिवोदास के राज्य में स्थित १२ आदित्यों में से एक ), १.४०५.६३ ( केशव नामक विप्र द्वारा ब्राह्मण की हत्या, भरद्वाज मुनि के कथनानुसार कटाह तीर्थ में स्नान से ब्रह्महत्या से मुक्ति की कथा ), २.२६१.३० ( केशव शब्द की निरुक्ति : केश जिसके अंश हैं - केशास्तदंशवः प्रोक्तास्तद्वान् कृष्णो हि केशवः ।।) । keshava

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