Puraanic contexts of words like Kshetrapaala, Kshema, Kshemaka, Khanga/sword etc. are given here.

क्षेत्रपाल अग्नि ५१.१८ ( प्रतिमा निर्माण में क्षेत्रपालों को शूलधारी बनाने का निर्देश ), ३१३.१० ( त्रिपुरा भैरवी पूजन में हेतुक आदि आठ क्षेत्रपालों के पूजन का उल्लेख ), ३४८.१३ ( क्षेत्रपाल हेतु क्षो एकाक्षर के प्रयोग का निर्देश ), पद्म ३.१३.२२ ( नर्मदा तीर्थ के वर्णन में क्षेत्रपाल दर्शन के माहात्म्य ), ब्रह्माण्ड २.३.४१.३३ ( शिवमन्दिर में पार्षद प्रवर क्षेत्रपालों की संस्थिति का उल्लेख ), ३.४.१४.७ (महादेवी महेश्वरी के दर्शन हेतु भैरवों, क्षेत्रपालों आदि के आगमन का उल्लेख ), मत्स्य ४३.२७ ( कार्तवीर्य के पशुपाल, क्षेत्रपाल, पर्जन्य तथा अर्जुन आदि होने का उल्लेख ), वराह १६८.६ ( मथुरा में शिव के क्षेत्रपाल रूप से निवास का उल्लेख ), वायु ९४.२४ ( कार्त्तवीर्य अर्जुन के पशुपाल, क्षेत्रपाल, पर्जन्य आदि होने का उल्लेख ), स्कन्द १.२.६२ ( बालरुद्र से क्षेत्रपालों की उत्पत्ति, चौंसठ क्षेत्रपाल तथा क्षेत्रपाल आराधना विधि का वर्णन ), ७.१.४.८७ ( प्रभास क्षेत्र के रक्षक क्षेत्रपालों के नामों का कथन ), ७.१.१३७ ( कङ्काल भैरव क्षेत्रपाल का संक्षिप्त माहात्म्य ), ७.१.१८१ ( क्षेत्रपालेश्वर का संक्षिप्त माहात्म्य ), ७.१.२४३ ( महाप्रभ क्षेत्रपाल का संक्षिप्त माहात्म्य ), लक्ष्मीनारायण १.५८२.७९ ( पुरुषोत्तम क्षेत्र के कामाख्य नामक क्षेत्रपाल की सदैव स्थिति का उल्लेख ), २.१४८.२४ ( देवप्रतिष्ठा वर्णन में ५० क्षेत्रपालों के पूजन का कथन ), २.१५३.७९ ( वास्तुस्थ देवताओं के होम के वर्णनान्तर्गत क्षेत्रपाल होम का वर्णन ) । kshetrapaala

 

क्षेत्रशर्मा भविष्य ३.४.१२.६१ ( क्षेत्रशर्मा नामक ब्राह्मण श्रेष्ठ के रुद्र का अंश होने का उल्लेख ) ।

 

क्षेपणी अग्नि २५२.१८ ( क्षेपणी अस्त्र के कर्म का कथन ) ।

 

क्षेम ब्रह्माण्ड १.२.९.६१ ( धर्म व शान्ति - पुत्र ), १.२.३६.३५ ( गौतम मनु युग के बारह सत्य देवों में से एक ), २.३.७.९८ ( ब्रह्मधान के दस पुत्रों में से एक ), २.३.६७.४०( शिव द्वारा क्षेम नामक गणेश को वाराणसी को शून्य करने का निर्देश ; निकुम्भ का अपर नाम? ), २.३.६७.७३ ( सुनीथ - पुत्र, केतुमान् - पिता , काश्यप वंश ), २.३.७४.११६ ( शुचि - पुत्र, सुव्रत - पिता, मागध वंश ), भागवत ४.१.५२ ( धर्म व तितिक्षा - पुत्र ), ५.२०.३ ( प्लक्षद्वीप के सात वर्षों में से एक ), ९.२२.४७ ( शुचि - पुत्र, सुव्रत - पिता, मागध वंश ), मत्स्य ४९.७८ ( उग्रायुध - पुत्र, सुनीथ -पिता, पौरव वंश), २७१.२५ ( शुचि - पुत्र, सुव्रत - पिता, मागध वंश ), मार्कण्डेय ५०.२७( शान्ति - पुत्र ), वायु १०.३७ ( धर्म व शान्ति - पुत्र ), ६२.३२ ( औत्तम मनु युग के १२ सत्यदेवों में से एक ), ६७.३४ ( औत्तम मनु युग के १२ अजित देवों में से एक ), ६९.१३२ ( ब्रह्मधान के १० पुत्रों में से एक ), ९९.३०२ ( शुचि - पुत्र, सुव्रत - पिता, मागध वंश ), शिव २.४.२०८( सिद्धि व गणेश - पुत्र ), स्कन्द ४.१.२९.६८ ( क्षेमदा : गङ्गा सहस्रनामों में से एक ), ४.२.७७.७२ ( क्षेमेश्वर लिङ्ग के दर्शन से क्षेम प्राप्ति का उल्लेख ), ७.१.३२३ ( प्रभास क्षेत्र के अन्तर्गत क्षेमेश्वर तीर्थ का संक्षिप्त माहात्म्य ), ७.१.३१६ ( प्रभास क्षेत्र माहात्म्य के अन्तर्गत क्षेमादित्य तीर्थ का संक्षिप्त माहात्म्य ) । kshema

 

क्षेमक ब्रह्माण्ड १.२.१४.३७ ( प्लक्ष द्वीपाधिपति मेधातिथि के सात पुत्रों में से एक क्षेमक द्वारा क्षेमक राज्य की संस्थापना का उल्लेख ), १.२.१९.१६( वृषभ पर्वत के क्षेमक वर्ष का उल्लेख ), २.३.६७.२७ ( क्षेमक राक्षस द्वारा वाराणसी नगरी का विध्वंस, अलर्क राजा द्वारा क्षेमक वध तथा वाराणसी की पुनरस्थापना का वृत्तान्त ), भविष्य ३.१.४.२ ( म्लेच्छों द्वारा मारे गए राजा क्षेमक को यमलोक की प्राप्ति, नारद निर्दिष्ट तथा क्षेमक - पुत्र प्रद्योत द्वारा सम्पादित म्लेच्छ यज्ञ से क्षेमक को स्वर्गलोक की प्राप्ति ),मत्स्य १२२.२५( मैनाक वर्ष का दूसरा नाम ), वायु  ३३.३३ ( प्लक्ष द्वीपाधिपति मेधातिथि के सात पुत्रों में से एक ), ४९.१४( ऋषभ वर्ष का अपर नाम ), ६९.१६० ( मणिवर व देवजनी के यक्ष पुत्रों में से एक ), २.३०.२४ / ९२.२४ ( क्षेमक राक्षस द्वारा वाराणसी को जनशून्य करने का उल्लेख ), २.३०.३६ / ९२.३६ ( शिव द्वारा गणेश्वर क्षेमक को वाराणसी को जनशून्य करने का आदेश ), २.३०.६७-६९ / ९२.६७ ( अलर्क राजा द्वारा क्षेमक का वध ), विष्णु २.४.४ ( प्लक्षद्वीपेश्वर मेधातिथि के सात पुत्रों में से एक ), स्कन्द ४.२.५५.१७ ( वाराणसीस्थ क्षेमक नामक महागण के पूजन से क्षेम प्राप्ति तथा विघ्न शान्ति का कथन ), शिव ५.३४.५३ ( तृतीय सावर्णि मनु के पौत्रों में से एक ), हरिवंश १.२९.७७ ( राजा अलर्क द्वारा क्षेमक राक्षस को मारकर वाराणसी पुरी की पुनरस्थापना का उल्लेख ) । kshemaka

 

क्षेमङ्कर/क्षेमङ्करी गणेश १.१.२९ ( सोमकान्त नृप के मन्त्रियों में से एक ), पद्म १.५६.५ ( क्षेमङ्करी : पार्वती का क्षेमङ्करी रूप धारण कर शिव को अन्य स्त्रियों के साथ क्रीडा से रोकने का कथन ), ७.२०.२१ ( क्षेमङ्करी नामक भ्रष्टाचरण वाली ब्राह्मणी की दान से मुक्ति की कथा ), स्कन्द ४.२.७२.६३ ( क्षेमङ्करी देवी द्वारा क्षेत्र की रक्षा का उल्लेख ), ६.११८ ( आनर्त अधिपति - कन्या, रैवत - भार्या, रेवती - माता, तक्षक नाग की भार्या का अवतार, क्षेमङ्करी नाम प्राप्ति का कारण )स्कन्द ७.१.१२७ (  राजा क्षेममूर्ति द्वारा स्थापित क्षेमङ्करेश्वर लिङ्ग का माहात्म्य ), लक्ष्मीनारायण १.२६५.१३( नृसिंह की शक्ति क्षेमङ्करी का उल्लेख ) । kshemankaree/kshemankari

 

क्षो अग्नि ३४८.१३ ( नृसिंह, हरि व क्षेत्रपाल हेतु क्षो एकाक्षर मन्त्र के प्रयोग का उल्लेख ) ।

 

क्षौ अग्नि ३४८.१४( हयशीर्ष हेतु क्षौं एकाक्षर मन्त्र के प्रयोग का उल्लेख ) ।

 

क्षौद्र नारद १.९०.७५( क्षौद्र द्वारा सौभाग्य सिद्धि का उल्लेख )

 

क्षौम नारद २.२२.७८ ( एकान्तरोपवासी को क्षौम वस्त्र देने का निर्देश ) ।

 

क्ष्मा वामन ९०.१९ ( सूकराचल पर विष्णु का क्ष्माधर नाम से वास ), लक्ष्मीनारायण ३.२८.३९ ( क्ष्मा चोलक : निर्वाणिका - पति, दरिद्र विप्र क्ष्माचोलक द्वारा धन प्राप्ति हेतु स्त्री सहित लक्ष्मी - नारायण की आराधना ) । kshmaa

 

क्ष्वेळा मत्स्य १७९.२५ ( अन्धकासुर के रक्तपानार्थ महादेव द्वारा सृष्ट अनेक मानस मातृकाओं में से एक ) ।

 

ख अग्नि ३४८.४ ( शून्येन्द्रिय हेतु खं के प्रयोग का निर्देश ), महाभारत वन ३१३.५९ ( पिता के खं से उच्चतर होने का उल्लेख : यक्ष - युधिष्ठिर संवाद ) । kha

 

खखोल्क/खषोल्क भविष्य १.१५०.३ ( सूर्य पूजा विधि में सहस्रकिरणायुध खषोल्क को मण्डल के मध्य में स्थापित कर पूजा करने का कथन ), १.१८७.१७, २३ ( परमात्म वाचक तथा षड~ अक्षर युक्त खषोल्क सूर्यमन्त्र का माहात्म्य ), स्कन्द ४.१.५०.१३९, १४७ ( खखोल्क - आदित्य : विनता व गरुड द्वारा काशी में स्थापना व उपासना ), लक्ष्मीनारायण १.८३.५६( खखोल :काशी में दिवोदास के राज्य में स्थित १२ आदित्यों में से एक ) । khakholka/ khasholka

 

खग गणेश २.६८.२५( गणेश द्वारा प्रयुक्त खगास्त्र से गन्धर्वास्त्र का निवारण, देवान्तक के खड्गास्त्र से खगास्त्र का निवारण ) । khaga

 

खगण भागवत ९.१२.३ ( वज्रनाभ - पुत्र, विधृति - पिता, इक्ष्वाकु वंश ) ।

 

खगम देवीभागवत २.११.३३ ( मित्र द्वारा सर्प - भय उत्पन्न करने पर खगम नामक ब्राह्मण द्वारा मित्र को सर्प होने का शाप ), स्कन्द ४.२.९७.१६(खङ्गमेश्वर लिङ्ग का संक्षिप्त माहात्म्य), ५.२.६९(खङ्गमेश्वर का माहात्म्य, मत्स्य व श्येन का खङ्गमेश्वर लिङ्ग पर कल्याण, सुबाहु राजा द्वारा शिरोव्यथा के कारण का कथन), ५.३.१५८(खङ्गमेश्वर तीर्थ का माहात्म्य, पुण्यतोया - नर्मदा सङ्गम), लक्ष्मीनारायण २.१२७.२८(सात्त्विक, राजसिक व तामस खङ्गमों का कथन ) ।

 

खगर्ता स्कन्द ५.१.६३.३ ( खगर्ता - शिप्रा सङ्गम माहात्म्य : गङ्गा स्नान के फल की प्राप्ति ), ५.२.४३.१९ ( गङ्गा के खगर्ता नाम का कारण ) ।

 

 खङ्ग अग्नि ८१.१९ ( दीक्षा कर्म में कुश से बोधमय खङ्ग निर्माण का उल्लेख ), २४५.१६ ( ब्रह्मा के यज्ञ में अग्नि से प्राकट्य, विष्णु द्वारा नन्दक को खङ्ग रूप में ग्रहण करके लोह दैत्य का वध, देशानुसार खङ्गों की विशिष्टताएं, श्रेष्ठ खङ्गों के लक्षण ), २५२.४ ( खङ्ग द्वारा युद्ध की ३२ विधियों का नामोल्लेख ), २६९.२९ (खङ्ग प्रार्थना मन्त्र ), पद्म ६.१३५.११६ ( राजखङ्ग तीर्थ का माहात्म्य : वैकर्तन राजा को दिव्य शरीर की प्राप्ति ), ६.१४७ ( खङ्ग तीर्थ में स्नान व खङ्गेश्वर शिव के दर्शन से स्वर्गलोक की प्राप्ति ), ६.१५४ ( खङ्गधार तीर्थ का माहात्म्य : चण्ड नामक कोलिक द्वारा स्थापना की कथा ), ब्रह्म २.६९ ( खङ्ग तीर्थ का माहात्म्य : पैलूष द्वारा ज्ञान खङ्ग से दुर्गुणों के छेदन द्वारा मुक्ति की प्राप्ति ), ब्रह्मवैवर्त्त १.१२.२६ ( कृष्ण में मन लगाने पर भक्ति रूपी खङ्ग द्वारा मनुष्यों के कर्म रूपी वृक्षों के मूलोच्छेदन का उल्लेख ), ब्रह्माण्ड ३.४.३६.५२ ( खङ्गसिद्धि : आठ प्रकार की योगसिद्धियों में से एक ), भविष्य ४.१३८.६५ ( अस्त्र विशेष खङ्ग के आठ नाम तथा मन्त्र ), महाभारत कर्ण २५.२९ ( सुतसोम व शकुनि के द्वन्द्व युद्ध में सुतसोम द्वारा खङ्ग से युद्ध का वर्णन ), सौप्तिक ७.६६ ( महादेव के चरणों में स्वयं को समर्पित कर देने पर अश्वत्थामा को महादेव से निर्मल खङ्ग की प्राप्ति होने का उल्लेख ), आश्वमेधिक ४७.१४ ( देह रूपी वृक्ष को तत्त्वज्ञान रूपी असि / खङ्ग से छिन्न भिन्न करने का निर्देश ), शान्ति १६६ ( भीष्म द्वारा नकुल के प्रति खङ्ग की उत्पत्ति तथा प्राप्ति की परम्परा का वर्णन, खङ्ग के आयुधों में सर्वप्रथम प्रकट होने का उल्लेख ), विष्णुधर्मोत्तर २.१७.२० ( खङ्ग के लक्षणों का वर्णन ), २.१६०.२६ ( खङ्ग मन्त्र का कथन ), शिव २.५.३६.१३ ( खङ्ग प्रभृति शंखचूड - सेनानियों से आदित्यों के युद्ध का उल्लेख ), स्कन्द १.३.१.१२.४ ( आकाशवाणी के अनुसार देवी द्वारा शिलातल पर खङ्ग से प्रहार, गङ्गा, यमुना प्रभृति नव तीर्थों के आगमन से खङ्ग तीर्थ का निर्माण ), ३.३.१२.३४ ( ऋषभ योगी द्वारा राजपुत्र भद्रायु को तप व मन्त्र से अनुभावित खङ्ग प्रदान करने का उल्लेख ), ५.२.११.२१ ( सिद्धेश्वर लिङ्ग की आराधना से वसुमान राजा द्वारा खङ्ग सिद्धि प्राप्ति ), ७.१.८३.४४ ( खङ्ग मन्त्र का कथन ), हरिवंश ३.१२५.१४ ( डिम्भक और सात्यकि का परस्पर खङ्ग युद्ध तथा खङ्ग युद्ध के ३२ पैतरों का कथन ), लक्ष्मीनारायण २.१२७.३९ ( खङ्ग न्यास ), कथासरित् २.२.४५ ( विद्युत्प्रभा के कथनानुसार श्रीदत्त को मृगाङ्क नामक खङ्ग की प्राप्ति की कथा ), २.३.३७ ( महासेन द्वारा देवी की आराधना करने पर देवी द्वारा उत्तम खङ्ग प्रदान करना ), ५.३.२५९ ( गर्भस्थ शिशु के खङ्ग बनने का उल्लेख ), ७.८.१३३ ( इन्दीवरसेन द्वारा खङ्ग प्रहार से यमदंष्ट्र राक्षस का वध ), ९.६.१५ ( खङ्ग नामक वैश्य पुत्र की कथा द्वारा माता - पिता के विरोध से उत्पन्न दुष्परिणाम का कथन ), ९.६.२१४ ( पाशुपत द्वारा गुफा स्थित खङ्ग की सिद्धि हेतु सहायतार्थ याचना तथा खङ्ग प्राप्ति का वर्णन ), १२.१.६६ ( वामदत्त द्वारा श्रीपर्वत पर विद्या की साधना, सिद्ध विद्या द्वारा वामदत्त को उत्तम खङ्ग प्रदान करना ),  १२.५.३६९ ( खङ्ग व अश्व के प्रभाव से इन्दुकलश द्वारा कनककलश को राज्य से निर्वासित करना ), १२.१४.१०८ ( दैत्यसुता द्वारा राजा को अपराजित नामक खङ्ग प्रदान करना ), १२.२१.३० (  राजा वीरकेतु के खङ्ग विज्ञानी होने तथा युक्तिपूर्वक चोर के हाथ से शस्त्रों को ग्रहण करने का उल्लेख ), १५.१.२१ ( राजा नरवाहनदत्त को गुफा में जैत्र नामक खङ्गरत्न के सिद्ध होने का उल्लेख ), १७.२.१४३ ( भक्ति से प्रसन्न शिव द्वारा मुक्ताफलकेतु को अपराजित नामक खङ्ग प्रदान करना ) । khanga

 

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